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प्रश्न

मुझे विवाह क्यों करना चाहिए?

उत्तर


आज संसार की कई संस्कृतियाँ उस समझ को गवाँ रही हैं, जिसमें विवाह को रूपरेखित किया गया था। हम एक ऐसे संसार में रहते हैं, जो कहता है कि हमें वह प्राप्त करना चाहिए, जिसे हम चाहते हैं कि हम इसे प्राप्त कर सकते हैं। विवाह को कभी-कभी कैद के रूप में देखा जाता है, जो हमारी उस क्षमता को अंपग कर देता जिस की सहायता से हम जिसे चाहते थे, उसे प्राप्त कर सकते थे। विवाह को आज कभी-कभी एक पुरातन संस्थान के रूप में ठट्ठों में उड़ाया जाता है, जिस के कारण इसने अपनी प्रासंगिकता को ही खो दिया है।

इसलिए विवाह क्या है? क्या यह पुराना हो गया है? सबसे पहले यह समझना अति महत्वपूर्ण है कि विवाह मानव-निर्मित अवधारणा नहीं है। जब परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में उत्पत्ति 1:27 (उत्पत्ति 1:27; 2:7) में बनाया, तो उसने उस पुरूष को वह सब कुछ दिया, जो उसे सन्तुष्ट रखने के लिए आवश्यक था। तौभी, परमेश्‍वर ने कहा, "आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं है। मैं उसके लिए एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उस से मेल खाए" (उत्पत्ति 2:18)। इसलिए परमेश्‍वर ने आदम की पसली में से एक स्त्री को बनाया और उसे पुरूष के पास ले आया। पहला विवाह तब सम्पन्न हुआ जब परमेश्‍वर ने एक स्त्री को मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बनाया, जिस से कि जब वे वाचा में सम्मिलित हुए, तो वे एक शरीर हो गए। "एक शरीर" होने का विचार एक जीवन पर्यन्त अटूट मुहरबन्द किए हुए सम्बन्ध के तात्पर्य को लिए हुए है। जब यीशु से तलाक के बारे में पूछा गया, तो उसने उत्तर दिया, "इस कारण मनुष्य अपने माता-पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे... अत: वे अब दो नहीं, परन्तु एक तन हैं। इसलिये जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे"(मत्ती 19:5-6)। ध्यान दें कि यह परमेश्‍वर है, जो विवाह में एक पुरुष और स्त्री को जोड़ता है। मलाकी 2:14 में, परमेश्‍वर हमें स्मरण दिलाता है कि वह स्वयं "तेरे और तेरी उस जीवन संगिनी के बीच साक्षी हुआ था।" परमेश्‍वर विवाह को बहुत अधिक गम्भीरता से लेता है।

विवाह वह पहली संस्था था, जिसे परमेश्‍वर ने बनाया था। यह कलीसिया या सरकार की स्थापना से पहले बनाई गई थी। विवाह पहला सामाजिक संस्थान था। मनुष्यों तब अच्छी रीति से कार्य करता है, जब वह दूसरों के साथ स्वस्थ तरीके से जुड़ा हुआ होता है, और विवाह के लिए परमेश्‍वर की योजना दृढ़ परिवार को स्थापित करना है। बाइबल में परिवार के सदस्यों के लिए बहुत अधिक निर्देश पाए जाते है कि उन्हें एक दूसरे के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए ताकि उनकी भावनात्मक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके (इफिसियों 5:21-33; 6:1-4; कुलुस्सियों 3:18-21; 1 कुरिन्थियों 7:2-5, 10-16)। परमेश्‍वर ने जीवन पर्यन्त एक पुरूष और एक स्त्री के साथ बने रहने के लिए विवाह की रचना की, और उस योजना से कोई विचलन उसकी मंशा में विकृति को ले आना है (मत्ती 19:8; रोमियों 1:26-27)।

पहला कुरिन्थियों 7:1-2 हमें विवाह करने का सबसे अच्छा कारण बताता हैं: "उन बातों के विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है कि पुरुष स्त्री को न छूए। परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरुष की पत्नी, और हर एक स्त्री का पति हो।" परमेश्‍वर ने सेक्स अर्थात् यौन सम्बन्धों को केवल विवाह की सीमाओं के भीतर ही रहकर आनन्द प्राप्ति के लिए रचा है। उन सीमाओं के बाहर कोई भी यौन गतिविधि पाप है (गलातियों 5:19; कुलुस्सियों 3:5)। यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक सेक्स की उत्तेजना से भरा हुआ है, तो सामान्य रूप से वासना को कम करने और अनैतिकता से बचने के लिए विवाह करना अच्छा विचार है (याकूब 1:13-15)। अपने जीवन साथी को छोड़ किसी अन्य के साथ यौन गतिविधि में सम्मिलित होना पाप है और यह मन की पीड़ा और विनाश की ओर ले जाता है (नीतिवचन 6:26-29; 1 कुरिन्थियों 6:18)।

यद्यपि, पवित्रशास्त्र में ऐसा कोई आदेश नहीं दिया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को विवाह करना चाहिए। वास्तव में, प्रेरित पौलुस ने परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए और अधिक समय देने के लिए अकेला रहने का पक्ष लिया (1 कुरिन्थियों 7:7-9, 32-35)। कुछ ऐसे भी हैं, जो विवाह करने की आवश्यकता को महसूस नहीं करते हैं, और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। अकेले लोग जीवन भर कार्य कर सकते हैं और मित्रों, परिवार और सेवकाइयों के अवसरों के माध्यम से भावनात्मक समर्थन को पा सकते हैं। यद्यपि, हमारे समाज ने यौन अनैतिकता के साथ अकेलेपन को समानता देना आरम्भ कर दिया है, और यह बहुत ही अधिक गलत है। पौलुस के द्वारा अकेलेपन का बढ़ावा इसलिए था ताकि एक व्यक्ति मसीह की बातों के ऊपर अपना पूरा ध्यान दे सके। यौन सम्बन्धी पाप में बने रहने के बहाने से अकेलेपन का कभी भी उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। परन्तु यदि कोई भी व्यक्ति अपनी काम वासना को नियन्त्रित कर सकता है और नैतिक रूप से शुद्ध जीवन जी सकता है, तो विवाह करने के लिए दबाव डालने की कोई आवश्यकता नहीं है (1 कुरिन्थियों 7:37)।

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