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प्रश्न

मुझे बाइबल पर विश्‍वास क्यों करना चाहिए?

उत्तर


बाइबल ब्रह्माण्ड के निर्माण, परमेश्‍वर के स्वभाव के बारे में दावा करती है, जिसने ब्रह्माण्ड को रचा और वह इस के ऊपर और मानव जाति के गंतव्य के ऊपर सर्वोच्चता से शासन करता है। यदि ये दावे सत्य हैं, तो मानव जाति के इतिहास में बाइबल ही सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक है। यदि बाइबल सत्य है, तो यह जीवन के सबसे बड़े प्रश्नों के उत्तर को अपने में रखे हुए है: "मैं कहाँ से आया?" "मैं यहाँ क्यों हूँ?" और "जब मैं मर जाऊँगा तो मेरे साथ क्या होगा?" बाइबल के सन्देश की विशेषता यह मांग करती है कि इसे इसके सन्देश की सच्चाई को देखने योग्य, जाँच करने योग्य और जाँच का सामना करने में सक्षम है।

बाइबल के लेखकों का दावा है कि बाइबल परमेश्‍वर का वचन है। प्रेरित पौलुस लिखता है कि "पूरा पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है" (2 तीमुथियुस 3:16)। ऐसा कहने का अर्थ यह हुआ कि पवित्रशास्त्र के मूल लेखों में लिपिबद्ध सारे शब्द बाइबल के लेखकों के मन और लेखनी तक पहुँचने से पहले परमेश्‍वर के मुँह से निकले थे। प्रेरित पतरस यह भी लिखता है कि "क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई, पर भक्‍त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे" (2 पतरस 1:21)। वाक्यांश "उभारे जाना" हवा से चलने वाली एक पाल की ओर संकेत देता है। इसका अर्थ यह हुआ कि पवित्रशास्त्र का लेख पवित्र आत्मा के द्वारा निर्देशित किया गया था। बाइबल मनुष्य के साथ उत्पन्न नहीं होती है और इसलिए यह परमेश्‍वर का एक उत्पाद है और परमेश्‍वर के अधिकार को अपने में रखती है।

इस स्थान पर, यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम बाइबल पर विश्‍वास करने के लिए चलित तर्क के औचित्य को प्रस्तुत न करें। हम यह नहीं कह सकते कि किसी को बाइबल पर इसलिए विश्‍वास करना चाहिए, क्योंकि बाइबल कहती है कि उस पर विश्‍वास किया जाना चाहिए। यद्यपि, बाइबल के दावे सच्चे प्रमाणित होते हैं, जब भी उनकी सत्यता का परीक्षा करना सम्भव होता है या ऐतिहासिक और वैज्ञानिक खोज के समय सच प्रमाणित होते हैं, तब तो बाइबल की विश्‍वासयोग्यता के आन्तरिक दावे स्वीकार किए जाने के लिए और भी अधिक मजबूर कर देते हैं। आन्तरिक प्रमाण बाहरी प्रमाणों के साथ मिलकर कार्य करते हैं।

पवित्रशास्त्र की सत्यता के आन्तरिक प्रमाण कई मजबूर कर देने वाले तर्कों को प्रदान करते हैं कि क्यों किसी को बाइबल पर विश्‍वास करना चाहिए। सबसे पहले, बाइबल का अनूठा सन्देश इसे अन्य धार्मिक ग्रन्थों से अलग कर देता है। उदाहरण के लिए, बाइबल सिखाती है कि मानव जाति स्वाभाविक रूप से बुरी और अनन्तकालीन मृत्यु को पाने के योग्य है। यदि मनुष्य बाइबल की विषय वस्तु के लिए उत्तरदायी होता, तो मनुष्य का दृष्टिकोण इतना अधिक अन्धकारमयी नहीं होगा — हम में स्वयं को अच्छा बनाने की प्रवृति है। बाइबल यह भी सिखाती है कि मनुष्य अपनी स्वाभाविक अवस्था को ठीक करने के लिए स्वयं कुछ भी नहीं कर सकता है। यह बात भी मानवीय घमण्ड के विरूद्ध चली जाती है।

बाइबल के सन्देश का एकता में आगे बढ़ना ही वह कारण है कि किसी को बाइबल पर विश्‍वास क्यों करना चाहिए। बाइबल लगभग 1,550 वर्षों की अवधि में लिखी गई थी, जिसमें कम से कम 40 मानवीय लेखकों के साथ, जिनमें से अधिकतर एक-दूसरे को नहीं जानते थे और अलग-अलग पृष्ठभूमियों (राजा, मछुआरे, कर संग्रहकर्ता, चरवाहा इत्यादि) से आए थे। बाइबल विभिन्न वातावरणों में लिखी गई थी (रेगिस्तान, जेल, राज दरबार, इत्यादि)। बाइबल लिखने के लिए तीन अलग-अलग भाषाओं का उपयोग किया गया, और विवादास्पद विषयों के लिखे होने के बाद भी, इसमें एक सामंजस्यपूर्ण सन्देश है। बाइबल के लेखों के आस-पास की परिस्थितियों में इसकी अचूकता की गारन्टी देती हुई प्रतीत होती हैं, तौभी उत्पत्ति से प्रकाशितवाक्य का सन्देश अलौकिक ढंग से तर्कयुक्त है।

एक और कारण है कि किसी को बाइबल पर विश्‍वास क्यों करना चाहिए वह इसकी सटीकता है। बाइबल को विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि बाइबल उन विषयों के ऊपर बात नहीं करती है, जो अपने स्वभाव में वैज्ञानिक हैं। जल चक्र की वैज्ञानिक खोज होने से शताब्दियों पहले ही इसका वर्णन पवित्रशास्त्र में किया गया है। कुछ विषयों में विज्ञान और बाइबल एक दूसरे के विरूद्ध प्रतीत होती है। तौभी, जब विज्ञान उन्नत हो गया है, वैज्ञानिक सिद्धान्तों गलत प्रमाणित हुए हैं और बाइबल सही प्रमाणित हुई है। उदाहरण के लिए, यह बीमारी के उपचार के लिए रोगी के खून का बहाना मानक चिकित्सीय अभ्यास होता था। अत्यधिक खून बहने के कारण बहुत से लोग मारे गए हैं। अब चिकित्सीय डॉक्टरों से पता चला है कि अधिकांश बीमारियों का उपचार अधिक लहू को बहाने के विपरीत है। बाइबल ने सदैव यह शिक्षा दी है कि "एक प्राणी का जीवन उसके लहू में है" (लैव्यव्यवस्था 17:11)।

विश्‍व इतिहास से सम्बन्धित बाइबल के सच्चाई के दावों को भी प्रमाणित किया गया है। सन्देहवादी हित्ती लोगों के उल्लेख को करते हुए बाइबल की आलोचना करते थे (उदाहरण के लिए, 2 राजा 7:6)। हित्ती संस्कृति के अस्तित्व का समर्थन करने के लिए किसी पुरातात्विक साक्ष्य की कमी को अक्सर पवित्रशास्त्र के विरूद्ध एक विवाद के रूप में उद्धृत किया गया था। यद्यपि, 1876 में, पुरातत्त्वविदों ने हित्ती राष्ट्र के प्रमाणों को खोजा और 20 वीं शताब्दी के आरम्भ में हित्ती राष्ट्र की विशालता और प्राचीन ससार में इसके प्रभाव का सामान्य ज्ञान प्रचलित था।

बाइबल की वैज्ञानिक और ऐतिहासिक सटीकता बाइबल की विश्‍वासयोग्यता का महत्वपूर्ण प्रमाण है, परन्तु बाइबल में पूरी हो चुकी भविष्यद्वाणियाँ भी सम्मिलित हैं। बाइबल के कुछ लेखकों ने सदियों से भविष्य की घटनाओं के घटित होने बारे में दावे किए हैं। यदि भविष्यद्वाणी की गई घटनाओं में से कोई भी घटित हुआ था, तो यह आश्‍चर्यजनक होगा। परन्तु बाइबल में बहुत सी भविष्यद्वाणियाँ हैं। कुछ भविष्यद्वाणियाँ थोड़े समय में ही पूरी हो गई थीं (अब्राहम और सारा के एक पुत्र हुआ था, पतरस ने यीशु का तीन बार इन्कार कर दिया था, पौलुस रोम में यीशु के लिए गवाह था)। सैकड़ों वर्षों पश्‍चात् अन्य भविष्यद्वाणियाँ पूरी हुईं। प्रतिज्ञात् मसीह के लिए की गई 300 भविष्यद्वाणियों को एक व्यक्ति यीशु के द्वारा सटीकता से पूरा नहीं किया जा सका जब तक कि कोई शक्तिशाली सामर्थ्य इसमें सम्मिलित नहीं है। यीशु का जन्म स्थान, गतिविधियाँ, मृत्यु का तरीका, और पुनरुत्थान जैसी विशेष भविष्यद्वाणियाँ पवित्रशास्त्र के पहले से ही स्वाभाविक रूप से शुद्ध होने का प्रदर्शन करता है।

जब बाइबल की जाँच की जाती है, तो बाइबल हर क्षेत्र में सच प्रमाणित होती है। इसकी सच्चाई आत्मिक क्षेत्र तक फैली हुई है। इसका अर्थ है कि जब बाइबल कहती है कि हित्ती राष्ट्र अस्तित्व में था, तो हम विश्‍वास कर सकते हैं कि हित्ती थे, और जब बाइबल सिखाती है कि "सभी ने पाप किया है" (रोमियों 3:23) और "पाप की मजदूरी मृत्यु है" (रोमियों 6:23), तो हमें उस पर भी विश्‍वास करने की आवश्यकता है। और, जब बाइबल हमें बताती है कि, "परन्तु परमेश्‍वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा" (रोमियों 5:8) और यह कि "जो कोई उस में [यीशु] विश्‍वास करेगा वह नाश नहीं होगा परन्तु अनन्त जीवन पाएगा" (यूहन्ना), हम तौभी उस पर विश्‍वास कर सकते हैं और हमें करना चाहिए।

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