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प्रश्न

हम कैसे जानते हैं कि बाइबल परमेश्‍वर का वचन है, और यह अपोक्रिफा अर्थात् अप्रमाणिक ग्रंथ, कुरान, मॉरमन बाइबल इत्यादि नहीं है?

उत्तर


कौन सी (यदि कोई है तो) धार्मिक पुस्तक परमेश्‍वर का सच्चा वचन है, जानना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वृत्तीय तार्किकता में चलने वाले तर्क से बचने के लिए, पहला प्रश्‍न हमें यह पूछना चाहिए : कैसे हम यह जानते हैं कि परमेश्‍वर ने ही सबसे पहले अपनी ओर से सन्देश दिया? ठीक है, परमेश्‍वर को ऐसे तरीके में होकर वार्तालाप करना था कि जिससे लोग उसे समझ सकें, परन्तु साथ ही इसका अर्थ यह है कि लोग स्वयं के लिए सन्देश प्राप्त कर सकें और बड़ी सरलता से यह दावा कर सकें कि यह परमेश्‍वर की ओर से आए हैं। इसलिए यह सोचना तर्कयोग्य है कि यदि परमेश्‍वर चाहता था कि उसका सन्देश प्रामाणिक हो तो उसे एक ऐसे तरीके से इसकी पुष्टि करनी चाहिए कि जिसकी नकल मनुष्यों — दूसरे शब्दों में आश्चर्यकर्मों के द्वारा न उतारी जा सके। यह हमारे अध्ययन क्षेत्र को बड़े पैमाने पर छोटा कर देता है।

बाइबल की शुद्धता (पाण्डुलिपि प्रमाण) और इसकी ऐतिहासिकता (पुरातात्विक प्रमाण) के प्रमाणों के अतिरिक्त, सबसे महत्वपूर्ण प्रमाण इसकी प्रेरणा का है। पूर्ण प्रेरणा प्रदत्त सत्य के होने के बाइबल के दावे का वास्तविक निर्धारण उसके अलौकिक होने के प्रमाण में है, जिसमें भविष्यद्वाणी भी सम्मिलित है। परमेश्‍वर ने भविष्यद्वक्ताओं को अपना वचन बोलने और लिखने में प्रयोग किया था और परमेश्‍वर भविष्यद्वाणी जैसे आश्चर्यकर्मों का उपयोग अपने सन्देशवाहकों को प्रमाणित करने के लिए करता है। उदाहरण के लिए, उत्पत्ति 12:7, परमेश्‍वर प्रतिज्ञा करता है कि इस्राएल की भूमि अब्राहम और उसके वंशजों के लिए थी। 1948 में इस्राएल इतिहास में दूसरी बार यहूदी लोगों को वापस लौटा दिया गया। यह आपके लिए इतना अधिक आश्चर्यचकित करने वाला नहीं होगा जब तक आप यह नहीं साकार कर लेते कि इतिहास में ऐसी कोई भी जाति ऐसी नहीं हुई है, जो अपनी भूमि को छोड़ कर बिखर गई थी और फिर पुन: उस में लौट आई! इस्राएल ने ऐसा दो बार किया है। दानिय्येल की पुस्तक बड़ी सटीकता के साथ चार बड़े राज्यों के बेबीलोन में से मादी-फारसी, यूनानी, रोमी राज्य के रूप में उदय होने, इससे पहले कि ये राज्य आए और कैसे शासन करेंगे और कैसे नष्ट हो जाएँगे, की भविष्यद्वाणी उनके आगमन के विवरण सहित सदियों पहले से ही कर देती है। इमें सिकन्दर महान् और अन्तिखुस इपीफेनुस का शासनकाल भी सम्मिलित है।

यहेजकेल 26 में हम एक आश्चर्यचकित कर देने वाले विवरण को देखते हैं कि कैसे सूर का देश नष्ट हो जाएगा, कैसे इसे गिरा दिया जाएगा, और कैसे इसके मलबे को समुद्र में फेंक दिया जाएगा। जब सिकन्दर महान् ने इस क्षेत्र में चढ़ाई की तब उसका सामना वहाँ पर स्थित तट पर एक गढ़ में लोगों के साथ हुआ। वह समुद्र को पार नहीं कर सका, इसलिए वह उस गढ़ के लोगों के साथ नहीं लड़ सका। इसकी अपेक्षा उसने उनके बाहर निकल आने की प्रतीक्षा की, गर्वित विजेता की सेना ने उस गढ़ तक पहुँचने के लिए एक भूमि आधारित पुल बनाने के लिए पत्थरों को समुद्र में फेंका और उनका यह तरीका सफल हो गया। उनकी सेना ने समुद्र को पार किया और गढ़ के रहने वालों को निकाल बाहर किया। परन्तु उसे इतना अधिक पत्थर कहाँ से मिला? जो चट्टानें भूमि आधारित पुल को बनाने के लिए उपयोग की गई थी, वे सूर के शहर का मलबा ही था...इसके पत्थरों को समुद्र में फेंक दिया गया था!

मसीह के सम्बन्ध में बहुत सी भविष्यद्वाणियाँ (लगभग 270!) पाई जाती हैं, जिन्हें सूचीबद्ध करने के लिए बहुत अधिक पृष्ठों की आवश्यकता पड़ेगी। इसके अतिरिक्त, यीशु का उनमें से बहुतों के ऊपर कोई नियन्त्रण नहीं था, जैसे कि उसके जन्म स्थान से लेकर उसके जन्म का समय इत्यादि। दूसरा, इनमें से एक व्यक्ति का अन्तर अकस्मात् यहाँ तक कि 16 की पूर्ति करने के लिए 10^45 में से 1 का है। यह अन्तर कितना अधिक है? क्योंकि यह तुलना में, पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त 10^82 परमाणुओं से भी कम है! और यीशु, जिसने बाइबल को परमेश्‍वर के वचन के रूप में पुकारा, ने अपनी विश्‍वसनीयता और पुनरुत्थान (एक ऐसा ऐतिहासिक तथ्य जिसे आसानी से अनदेखा नहीं किया जा सकता है) के द्वारा स्वयं के ईश्‍वरत्व को प्रमाणित कर दिया है।

अब आइए कुरान — के लेखक पैगम्बर मुहम्मद पर विचार करें, जिसने अपने सन्देश को प्रमाणित करने के लिए कोई आश्चर्यकर्म को प्रगट नहीं किया (यहाँ तक कि जब इसकी मांग उसके अनुयायियों के द्वारा की गई थी — सूरा 17:91-95; 29:47-51)। केवल बहुत समय पश्चात् शरीयत (हदीथ) में कथित आश्चर्यकर्म मिलते हैं और ये सभी बहुत ही अधिक कल्पनीय हैं (जैसे मुहम्मद ने चाँद को आधा काट दिया) और इसकी पुष्टि के लिए एक भी विश्‍वसनीय गवाही नही पाई जाती है। इसके अतिरिक्त, कुरान में स्पष्ट ऐतिहासिक त्रुटियाँ पाई जाती हैं। मुसलमान विश्‍वास करते हैं कि बाइबल प्रेरित तो है, परन्तु इसके सम्पादन में कुछ त्रुटियाँ हैं (सूरा 2:136 साथी ही सूरा 13, 16, 17, 20, 21, 23, 25 को भी देंखे)। वे इस प्रश्‍न का उत्तर सही रूप से नहीं दे सकते हैं : "बाइबल में मिलावट कब हुई थी?" यदि वे कहते हैं कि ऐसा 600 ईस्वी सन् में हुआ, तब कैसे कुरान मुसलमानों को इसे पढ़ने का परामर्श दे सकती है? यदि वे दावा करते हैं कि 600 ईस्वी सन् के पश्चात्, तब तो वे तवे पर से तो बाहर कूद गए हैं, परन्तु अब वे आग में कूद गए हैं, क्योंकि हमें पूर्ण रीति से कोई सन्देह नहीं है कि बाइबल की पाण्डुलिपियाँ अपनी सटीकता के साथ कम से कम 3री शताब्दी के आगे की हैं। चाहे मसीहियत झूठी ही क्यों न होती, तौभी कुरान के पास अभी भी एक अति कठिन समस्या है क्योंकि यह मसीहियों के विरूद्ध ऐसी बातों को विश्‍वास करने के लिए दोषी ठहराते हैं, जिनमें वे विश्‍वास नहीं करते (न ही उन्होंने उनमें कभी विश्‍वास किया है)। उदाहरण के लिए, कुरान शिक्षा देती है कि मसीही विश्‍वासी पिता, माता (मरियम) और पुत्र (सूरा 5:73-75, 116) से मिलकर बने हुए त्रिएकत्व में विश्‍वास करते हैं, और कुरान साथ ही यह शिक्षा भी देती है कि परमेश्‍वर ने एक पुत्र की प्राप्ति के लिए मरियम के साथ सम्भोग किया था (सूरा 2:116; 6:100-101; 10:68; 16:57; 19:35; 23:91; 37:149-151; 43:16-19)। यदि कुरान वास्तव में परमेश्‍वर की ओर से होती, तब कम से कम यह सटीकता के साथ यह तो लिपिबद्ध करती कि मसीही विश्‍वासी क्या विश्‍वास करते हैं।

जोसफ स्मिथ, मॉरमन की पुस्तक के लेखक, ने कुछ आश्चर्चकर्मों को प्रगट करने के प्रयास किए हैं, जैसे कि भविष्यद्वाणी (व्यवस्थाविवरण 18:21-22 में एक सच्चे भविष्यद्वक्ता की जाँच के लिए यह एक चिन्ह के रूप में दिया गया है) परन्तु वह बहुत बार असफल हुआ। उसने कलीसिया के इतिहास (एच सी) 2:382 में मसीह के दूसरे आगमन के बारे में पहले से ही बता दिया। जोसफ स्मिथ ने प्रचार किया कि प्रभु का आगमन — 56 (लगभग 1891) में हो जाएगा। द्वितीय आगमन 1891 में नहीं हुआ, और मॉरमन कलीसिया ने भी दावा नहीं किया कि यह घटित हुआ है। न ही यह उसके पश्चात् अभी तक घटित हुआ है। उसने साथ ही अपनी पुस्तक धर्मसिद्धान्त और वाचाएँ (डी और सी) 84:114-115 में भविष्यद्वाणी की है कि बहुत से शहर नष्ट हो जाएँगे। न्यू यार्क, अल्बनी और बोस्टन नष्ट हो जाएँगे यदि वे स्मिथ के सुसमाचार को स्वीकार करने से इन्कार कर देते हैं। जोसफ स्मिथ स्वयं न्यू यार्क, अल्बनी और बोस्टन गए थे और वहाँ पर उन्होंने प्रचार किया था। इन शहरों ने उसके सुसमाचार को स्वीकार नहीं किया था, तथापि, वे नष्ट नहीं हुए हैं। जोसफ स्मिथ की एक और प्रसिद्ध झूठी भविष्यद्वाणी उसकी पुस्तक डी और सी — 97 में "जातियों के अन्त" नामक अध्याय में विभिन्न राष्ट्रों में होने वाले युद्ध में दक्षिण कैरोलिना में होने वाले विद्रोह के सम्बन्ध में है। दक्षिणी राज्य अपनी सहायता के लिए ग्रेट ब्रिटेन को बुलाता है, और इसके परिणामस्वरूप, सभी राष्ट्रों के ऊपर युद्ध आ जाएगा; दास विद्रोह करेंगे; पृथ्वी के निवासियों को शोक होगा; अकाल, विपत्ति, भूकम्प, गड़गड़ाहट, बिजली गिरना, और सभी देशों का पूर्ण अन्त इसके परिणामस्वरूप हो जाएगा। दक्षिणी राज्य ने अन्त में 1861 में विद्रोह किया, परन्तु दास लोग नहीं उठ खड़े हुए, युद्ध सभी जातियों के ऊपर नहीं उण्डेला गया, न ही विश्‍वव्यापी अकाल, विपत्ति, भूकम्प इत्यादि आए, और न ही इनके परिणाम स्वरूप "जातियों का अन्त" आया।

पुस्तकों का वह संग्रह जिसे प्रोटेस्टैंट अपोक्रिफा (रहस्यमयी पुस्तकें) कह कर पुकारते हैं, उन्हें रोमन कैथोलिक द्वितीय धर्मवैधानिक ग्रंथ (दूसरे या बाद वाले) कह कर पुकारते हैं। ये पुस्तक 300 ईसा पूर्व और 100 ईस्वी सन् में लिखी गई थी, जो कि बाइबल के दोनों नियम के मध्य की अवधि में लिखी हुई प्रेरणादायी पुस्तकें है, अर्थात् पुराने नियम के भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितों और नए नियम में उनके समकालीन के मध्य में लिखी हुई प्रेरणा प्रदत्त पुस्तकें हैं। इन्हें बाइबल में रोमन कैथोलिक कलीसिया के द्वारा ट्रेंट की महासभा में 1546 ईस्वी सन् में "अचूक" के रूप में स्वीकृत किया गया था। अब अपोक्रिफा भी बाइबल को प्रमाणित करने वाले प्रमाण के अधीन आ गया कि इसका लेखनकार्य वास्तव में प्रेरित था — परन्तु प्रमाण ऐसी सूचना के होने का आभास देते हैं कि यह प्रेरित नहीं है। बाइबल में हम पाते हैं कि परमेश्‍वर के भविष्यद्वक्ताओं, के सन्देश आश्चर्यकर्मों या भविष्यद्वाणियों के द्वारा पुष्टि हुए हैं, जो कि सत्य प्रमाणित हुए हैं, और जिनके सन्देश को तुरन्त लोगों के द्वारा स्वीकार किया गया था (व्यवस्थाविवरण 31:26; यहोशू 24:26; 1 शमूएल 10:25; दानिय्येल 9:2; कुलिस्सियों 4:16; 2 पतरस 3:15-16)। अपोक्रिफा में हम जो पाते हैं, वह इसके बिल्कुल विपरीत है — अपोक्रिफा की कोई भी पुस्तक भविष्यद्वक्ता के द्वारा नहीं लिखी गई है। इसकी किसी भी पुस्तक को इब्रानी पवित्र शास्त्र में सम्मिलित नहीं किया गया है। अपोक्रिफा की किसी भी पुस्तक के लेखकों का कोई समर्थन नहीं मिलता है। उत्तरोत्तरकाल के बाइबल के लेखकों के द्वारा अपोक्रिफा की किसी भी पुस्तक को अधिकारिक नहीं बताया गया है। किसी भी अपोक्रिफा की पुस्तक में से कभी कोई भी भविष्यद्वाणी पूरी नहीं हुई है। अन्त में, यीशु ने पुराने नियम के शास्त्र के प्रत्येक अंश में से उद्धृत किया है, एक बार भी अपोक्रिफा में से कोई टिप्पणी नहीं दी है। न ही किसी चेले ने ऐसा कभी किया।

बाइबल परमेश्‍वर का प्रकाशन होने के नाते अब तक की आने वाली प्रत्येक प्रतिस्पर्धा के स्रोत में सबसे ऊपर चमकती हुई दिखाई देती है कि यदि यह परमेश्‍वर का वचन नहीं है, तब तो बची हुई पुस्तकों में से चुनना असम्भव प्रतीत होगा। यदि बाइबल परमेश्‍वर का वचन नहीं है, तब तो हमारे पास ऐसा कोई भी स्पष्ट मानदण्ड नहीं बाकी बचा जिसके द्वारा किसी भी जानकारी की पुष्टि का पता लगाया जा सके।

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