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प्रश्न

क्या यीशु की सृष्टि हुई थी?

उत्तर


बाइबल शिक्षा देती है कि यीशु की सृष्टि नहीं हुई थी अपितु वह स्वयं ही सृष्टिकर्ता है। "उसी में [यीशु मसीह में] सारी वस्तुओं की सृष्‍टि हुई... सारी वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं" (कुलुस्सियों 1:16)। मसीह की शाश्वतता का धर्मसिद्धान्त बाइबल आधारित मसीही विश्वासी के विशेष धर्मसिद्धान्तों में से एक है।

जबकि यीशु को मुसलमानों, मॉर्मनवादियों, यहोवा विट्नेस्स अर्थात् यहोवा के साक्षियों, और विभिन्न धार्मिक मान्यताओं वाले लोगों के द्वारा उच्च सम्मान में दिया जाता है, तथापि ये समूह यह शिक्षा देते हैं कि यीशु सृष्टि किया हुआ प्राणी था। यह बाइबल सम्मत मसीहियत है, जो यह पुष्टि करती है कि मसीह पूर्ण रूप से ईश्वरीय है और उसके पास सृष्टि न किया हुया स्वभाव है, जो मसीहियत को अन्य सभी धर्मों और दर्शनों की तुलना में अद्वितीय बना देता है। विश्व के विभिन्न धर्म कुछ महत्वपूर्ण विषयों के ऊपर सहमत हो सकते हैं जैसे कि एक अनुभवातीत, वस्तुनिष्ठक नैतिकता और एक दृढ़ पारिवारिक जीवन का मूल्य, परन्तु प्रश्न का उत्तर "यीशु मसीह कौन है?" बाइबल आधारित मसीहियत के पीछे चलने वालों को शीघ्रता से उनसे अलग कर देता है, जो इसमें विश्वास नहीं करते हैं।

कलीसिया के आरम्भिक विश्वास वचन बिना किसी समझौते को किए हुए यह शिक्षा देते हैं कि यीशु की सृष्टि नहीं हुई थी, अपितु वह एक ईश्वरीय व्यक्ति, परमेश्वर का पुत्र है। मुस्लिम शिक्षा देते हैं कि यीशु एक कुँवारी-से-जन्म लिए हुआ मानवीय भविष्यद्वक्ता था, परन्तु वह शेष सभी लोगों की तरह ही अस्तित्व में आया। मॉर्मनवादी, जो एरियनवाद के आधुनिक रूप का पालन करते हैं, का मानना है कि यीशु का आरम्भ हुआ था, ठीक उसी तरह जैसे कि परमेश्वर के पिता का आरम्भ हुआ था। यहोवा के साक्षियों का कहना है कि यीशु, यहोवा की पहली सृष्टि थी और मूल रूप से उसे प्रधान स्वगर्दूत मीकाइल कहा जाता था। इस तरह यीशु किस ओर सृष्टिकर्ता/सृष्टि किया हुआ की श्रेणी में आता है? क्या यीशु एक सृजा हुआ प्राणी है, और इस प्रकार सृजी हुई व्यवस्था का हिस्सा है, या वह, पिता और पवित्र आत्मा के साथ, सभी निर्मित वस्तुओं का सृष्टिकर्ता है? क्या यीशु पिता की तुलना में हेटेरियोसियस ("एक भिन्न तत्व वाला") था, जैसा कि 4थीं शताब्दी में झूठी शिक्षा देने वाले एरियस ने माना था; या मसीह पिता का होमोसियस ("एक ही तत्व") था, जैसा मान्यता एथानसियस और नीकिया की महासभा ने थामे रखी थी?

जब "क्या यीशु की सृष्टि हुई थी" के प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया जाता है, तो यीशु की तुलना में देखने के लिए उस से उत्तम और कोई व्यक्ति नहीं मिलता है। अपनी सार्वजनिक सेवकाई के समय, यीशु ने निरन्तर स्वयं के लिए ईश्वरीय विशेषाधिकार को ग्रहण किया है। उसने निरन्तर ऐसे अधिकारों का प्रयोग किया, जो एक सृजे हुए होने वाले के लिए उचित नहीं होंगे। उसने कहा कि वह "सब्त का प्रभु" था (मरकुस 2:28), और, क्योंकि सब्त को परमेश्वर के द्वारा स्थापित किया गया था, इसलिए यीशु स्वयं को सब्त का "प्रभु" होने का दावा प्रस्तुत करता है, जो कि केवल परमेश्वर के लिए उचित था। यीशु ने पिता के बारे में अपने विशेष, निकटता से भरे हुए ज्ञान (मत्ती 11:27) और उस महिमा के बारे में बात की, जिसे वह पिता के साथ "जगत की सृष्टि से पहले" साझा करता था (यूहन्ना 17:5)। यीशु ने दूसरों की उपासना को स्वीकार किया (मत्ती 14:32-33) और भविष्य के उस समय का वर्णन किया जब वह सभी जातियों के न्याय को करने के लिए बैठेगा (मत्ती 25:31-44)। लूका हमें बताता है कि यीशु एक स्त्री के पापों को व्यक्तिगत् रूप से क्षमा करने के लिए बहुत दूर चला गया — कुछ ऐसा जिसे केवल परमेश्वर ही कर सकता है — और उसकी क्षमा को उसमें विश्वास किए जाने के प्रति सम्बोधित करता है (लूका 7:48–50)!

यीशु के शिष्य यीशु के ईश्वरत्व और उसके न सृजे हुए स्वभाव के बारे में अपने विश्वास को लेकर स्पष्ट थे। यूहन्ना हमें बताता है कि, "आदि में वचन था, और वचन परमेश्‍वर के साथ था, और वचन [यीशु] परमेश्‍वर था" (यूहन्ना 1:1)। प्रेरित थोमा ने यीशु का सामना करने के बाद उससे ऐसे कहा, "हे मेरे प्रभु और हे मेरे परमेश्वर!" (यूहन्ना 20:28)। प्रेरित पौलुस ने मसीह को "सब के ऊपर परम परमेश्वर" के रूप में सन्दर्भित किया (रोमियों 9:5) और कहा है कि "उसमें [मसीह में] ईश्‍वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है" (कुलुस्सियों 2:9)। कलीसिया के आरम्भिक दिनों में, यीशु दोनों ही कार्यों अर्थात् प्रार्थना की विषय-वस्तु था (प्रेरितों के काम 7:59) और वह जिसके नाम पर पापों की क्षमा की घोषणा की जाती थी (प्रेरितों के काम 2:38; 10:43)। मृत्यु के खतरे के अधीन मसीहियों से पूछताछ करने के बाद, रोमी प्रशासक प्लिनी द यंगर ने सम्राट ट्राजन (ई. सन् 110) को अपने पत्र में ऐसे लिखते हुए कहा कि "[मसीहियों] में एक निर्धारित किए हुए निश्चित दिन में दिन उदय होने से पहले मुलाकात करने की आदत थी, जिसमें वे वैकल्पिक वचनों को मसीह के लिए एक भजन के रूप में गाते थे, मानो कि यह एक ईश्वर के लिए गाया जा रहा हो" (पत्र 10.96)।

यीशु, परमेश्वर पुत्र, की सृष्टि नहीं हुई थी। वह सदैव से ही अस्तित्व में है; उसका कोई आरम्भ या अन्त नहीं है। पुत्र ने मानवीय इतिहास में समय के एक विशेष बिन्दु पर मानवीय शरीर को धारण किया (यूहन्ना 1:14)। मसीही विश्वासी इस घटना को देहधारण ("शरीर धारण किए जाने का कार्य") के रूप में सन्दर्भित करते हैं। यह कार्य हमारे उद्धार के लिए अभिन्न अंग था (गलातियों 4:4-5; 2 कुरिन्थियों 5:21; इब्रानियों 9:22)। देहधारण से आगे, अनन्त, सृष्टि न किया हुआ पुत्र दोनों ही है अर्थात् वह वास्तव में परमेश्वर और वास्तव में मनुष्य है। परन्तु कभी भी ऐसा समय नहीं हुआ जब पुत्र विद्यमान नहीं था। उसकी सृष्टि कभी भी नहीं की गई। यीशु सदैव था और सदैव हमारा "महान् परमेश्वर और उद्धारकर्ता" रहेगा (तीतुस 2:13)।

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क्या यीशु की सृष्टि हुई थी?
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