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प्रश्न

मैं उस समय कैसे परमेश्‍वर के ऊपर भरोसा कर सकता हूँ, जब मैं बेरोजगारी, प्रतिबन्ध, या दिवालियापन का सामना कर रहा होता हूँ?

उत्तर


रोजगार और/या आय का नुकसान होना जीवन में सबसे अधिक परेशान करने वाली घटनाओं में से एक, विशेष रूप से परिवार के लिए प्रबन्ध करने वालों के लिए होता है। गिरवी रखे हुए घर को अपने अधीन करने के लिए लगा प्रतिबन्ध या बेरोजगारी के कारण दिवालिया होने की घोषणा का किया जाना अतिरिक्त भय, अनिश्चितता और भावनात्मक अशान्ति को इसमें जोड़ देता है। बेरोजगारी, गिरवी वस्तु के ऊपर लगा हुआ प्रतिबन्ध या दिवालियापन की स्थिति में रहने वाले मसीही पुरूष या स्त्री के मन में परमेश्‍वर की भलाई और उसकी सन्तान के पालन-पोषण के लिए प्रबन्ध करने की प्रतिज्ञा के प्रति अतिरिक्त सन्देह उत्पन्न हो जाते हैं। मसीही विश्‍वासी को जीवन की विपत्तिपूर्ण घटनाओं के प्रति कैसे अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए? बाइबल के कौन से मसीही सिद्धान्तों को हमारे घर या नौकरी और लाभ (स्वास्थ्य/जीवन बीमा, सेवानिवृत्ति) के नुकसान होने पर लागू कर सकते हैं?

सबसे पहले, हमारे लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि परमेश्‍वर ने ही मानव जाति के लिए कार्य को निर्धारित किया है। बाइबल में कार्य को किए जाने के लिए लाभकार वर्णन दिए गए हैं, क्योंकि इससे हमारी सारी आवश्यकताएँ पूरी होती हैं (नीतिवचन 14:23; सभोपदेशक 2:24,3: 13, 5:18-19) और यह दूसरों की आवश्यताओं के साथ साझा करने के लिए हमें संसाधन प्रदान करता है (इफिसियों 4:28)। पौलुस ने थिस्सलुनीके में रहने वाले विश्‍वासियों को स्मरण दिलाया था कि जो भी काम करने के लिए तैयार नहीं था, उसे खाने का कोई अधिकार नहीं है (2 थिस्सलुनीकियों 3:10) और वह स्वयं तम्बू बनाने के कार्य को करता है, ताकि किसी के ऊपर बोझ न बन जाए (प्रेरितों 18:3; 2 कुरिन्थियों 11:9)। इसलिए, रोजगार का नुकसान होना आलस के लिए एक बहाना नहीं होना चाहिए, और जितनी शीघ्र हो सके, किसी दूसरे रोजगार को खोजने के लिए सभी तरह की कुशलता का उपयोग किया जाना चाहिए (नीतिवचन 6:9-11)।

ठीक उसी समय, हो सकता है कि उतनी ही पगार और पदवी देने वाली एक नौकरी प्राप्त करना सम्भव न हो। इस तरह की परिस्थियों में मसीही विश्‍वासियों को अपने अभिमान को किसी भी दूसरे क्षेत्र में नौकरी को प्राप्त करने के लिए आड़े आने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, चाहे इसका अर्थ कम पदवी, कम वेतन, या यह कम से कम अस्थायी तौर पर ही मिलने वाला कार्य क्यों न हो। हमें अन्य विश्‍वासियों और अपनी कलीसिया से सहायता को प्राप्त करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए, सम्भवतः यह घरों, खलिहान और कलीसियाओं की सुविधाओं में किसी के स्थान पर काम करने की आवश्यकता को ही पूरा करना क्यों न हो। एक "सहायता करने वाला हाथ" बढ़ाकर स्वीकार करना उन लोगों के लिए आशीष बन सकता है, जो "मसीह की व्यवस्था" को स्वीकार और प्रदर्शित करते हैं, जो एक दूसरे के लिए प्रेम है (गलतियों 6:2; यूहन्ना 13:34)।

इसी तरह, प्रतिबन्ध या दिवालियापन के माध्यम से पारिवारिक घर को होने वाली हानि भी परिवार के लिए आशीष का समय हो सकती है, ऐसे समय जब माता-पिता और बच्चे "घनिष्ठ सम्बन्ध" में होते हैं और वे एक दूसरे के लिए अपने प्रेम और जीवन में महत्वपूर्ण बातें के लिए और अधिक जागरूक हो जाते हैं, जैसे — विश्‍वास, परिवार और समाज — और उनका ध्यान भौतिक वस्तुओं के ऊपर बहुत ही केन्द्रित होता है, जिनका कोई अनन्तकालीन मूल्य नहीं है और जो एक ही क्षण में लुप्त हो सकती हैं। मत्ती 6:19-20 में यीशु के द्वारा कहे गए सत्य को स्मरण दिलाने के लिए परमेश्‍वर इन परिस्थितियों का भी उपयोग कर सकता है और स्वर्गीय खजाने के ऊपर हमारे मन को पुन: केन्द्रित कर सकता है।

इन सबसे बढ़कर, वित्तीय तनाव की परिस्थितियों के समय अपने भरोसे और विश्‍वास के नए सिरे से परमेश्‍वर की प्रतिज्ञाओं में नवीनीकरण करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अपनी सन्तान के लिए परमेश्‍वर की सच्चाई की बात करते हुए, उन भविष्यद्वाणियों को पुन: दोहराएँ, जो भविष्य के निराशा से भरे हुए प्रतीत होने पर हमें मजबूत और प्रोत्साहित करेगी। पहला कुरिन्थियों 10:13 हमें स्मरण दिलाता है कि ईश्‍वर विश्‍वासयोग्य है और हमें वह हमारे सहने से परे किसी भी परीक्षा में नहीं जाने देगा और वह साथ ही हमें इस परीक्षा से निकलने का मार्ग भी प्रदान करेगा। इस "बाहर निकलने" का अर्थ एक नया और सर्वोत्तम रोजगार हो सकता है, जो तुरन्त आ सकता है। इसका अर्थ बेरोजगारी की एक लम्बी अवधि का समय भी हो सकता है, जिस समय में परमेश्‍वर हमारे प्रतिदिन की रोटी प्रदान करने में अपनी विश्‍वासयोग्यता को दिखाए। इसका अर्थ एक नया घर हो भी सकता है, या इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि कुछ समय के लिए घटने वाले साधनों के साथ अपने सम्बन्धियों के साथ रहना। प्रत्येक घटना में, बाहर निकलने का मार्ग परीक्षा में "होकर जाना" हो सकता है, जिसमें हम परमेश्‍वर की विश्‍वासयोग्यता के प्रावधान के बारे में सीखते हैं, जब वह पूरी घटना में हमारे साथ चलते रहता है। जब परीक्षा समाप्त हो जाती है, तब हमारा विश्‍वास मजबूत हो जाता है, और हम अपने परमेश्‍वर की विश्‍वासयोग्यता के ठोस प्रमाण के आधार पर दूसरों को दृढ़ करने में सक्षम हो जाते हैं।

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