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प्रश्न

विपरीतलिंगीवाद/लिंगीसंकरवाद के बारे में बाइबल क्या कहती है?

उत्तर


यौन लिंगीसंकरवाद, को विपरीतलिंगीवाद, लिंग पहचान सम्बन्धी विकार (जीआईडी), या लिंग के प्रति असामान्य असवाद अर्थात् डिसफोरिया के रूप में भी जाना जाता है, यह एक ऐसी भावना होती है कि आपका जैविक/आनुवांशिक/शारीरिक लिंग उस लिंग के अनुरूप नहीं है, जिस से आप पहचाने जाते हैं और/या स्वयं को समझते हैं। विपरीत लिंगी भावना वाले लोग/किन्नर या हिजड़े अक्सर स्वयं को ऐसे शरीर में "फंस" हुआ महसूस करते हैं, जो उनके वास्तविक लिंग के अनुरूप नहीं होता। वे अक्सर विपरीत लिंग के वस्त्रों को धारण करने/विपरीत लिंग के वस्त्रों के धारण करते हुए यौन सुख पाने का अभ्यास करते हैं और अपने शरीर को उनके कथित आभासित लिंग के अनुरूप लाने के लिए हार्मोन थेरेपी और/या लिंग के आचरण के अनुसार सर्जरी भी करा सकते हैं।

बाइबल कहीं भी लिंगीसंकरवाद का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं करता है या किसी को भी विपरीत लिंगी भावनाओं के रूप में वर्णित नहीं किया गया है। यद्यपि, बाइबल में मानवीय कामुकता के बारे में कहने के लिए बहुत कुछ है। लिंग के प्रति हमारी समझ के लिए सबसे मूल बात यह है कि परमेश्‍वर ने दो (और केवल दो) लिंगों: "नर और मादा उसने सृष्टि की" को ही बनाया था (उत्पत्ति 1:27)। असँख्य लिंगों के होने के बारे में या या लिंग की द्रवता या यहाँ तक कि लिंग "निरन्तरता" के बारे में आज के सभी आधुनिक – अटकलें — बाइबल के लिए अज्ञात् हैं।

विपरीतलिंगवाद का वर्णन करने के लिए बाइबल का निकटतम सन्दर्भ समलैंगिकता (रोमियों 1:18-32; 1 कुरिन्थियों 6:9-10) और विपरीत लिंग के वस्त्रों के धारण करते हुए यौन सुख पाने (व्यवस्थाविवरण 22:5) की निन्दा करने में पाया जाता है। 1 कुरिन्थियों 6:9 में यूनानी शब्द का अनुवाद "समलैंगिक अपराधियों" या "पुरुष वेश्याओं" के शाब्दिक अर्थ में "स्त्री जैसे पुरुषों" से है। इसलिए, जबकि बाइबल विपरीतलिंगवाद का सीधे उल्लेख नहीं करती है, तथापि यह लिंग "भ्रम" के अन्य उदाहरणों का उल्लेख करती है, और स्पष्ट रूप से और शुद्ध रूप से उन्हें पाप के रूप में पहचानती है।

इस बात की सम्भावना के बारे में क्या कहें जो ऐसे मन के साथ हैं कि विपरीतलिंगी होना महसूस करते हैं, अर्थात् वे स्वयं शरीर में ऐसे लिंगी आचरण के साथ हैं, जबकि उनका शेष शरीर जैविक रूप से विपरीत लिंगी है? बाइबल ऐसी सम्भावना का कहीं पर भी संकेत नहीं देती है। यद्यपि, बाइबल न तो उभयलिंगीपन का उल्लेख करता है (एक ऐसी स्थिति जिसमें एक व्यक्ति में पुरुष और महिला दोनों के यौन अंग होते हैं), जो अविवादित रूप से प्रगट होता है (यद्यपि बहुत ही कम)। इसके अतिरिक्त, लोग विभिन्न प्रकार के मानसिक दोष या कमजोरियों के साथ उत्पन्न या विकसित हो सकते हैं। यह कैसे कहा जा सकता है कि मादा मन के साथ नर शरीर (या इसके विपरीत) में होना असम्भव है?

प्रमाण के रूप में उभयलिंगीपन के साथ, यह नहीं कहा जा सकता है कि बाइबल कुछ ऐसे वर्णन नहीं करती है, जो प्रगट नहीं होता है। इसलिए, किसी व्यक्ति का ऐसे ऐसे मन के साथ उत्पन्न होना सम्भव हो सकता है कि यह लैंगिक रूप से असमान्य अवसाद में योगदान देने वाला हो। समलैंगिकता के कुछ उदाहरणों के लिए यह एक स्पष्टीकरण भी हो सकता है। यद्यपि, क्योंकि किसी वस्तु के उत्पन्न होने का कुछ जैविक कारण हो सकता है, इसका अर्थ यह नहीं है कि इसके प्रभाव को अपनाना सही कार्य है। कुछ लोग में उग्रता-से-चलित कामुकता होने के कारण जंगलीपन होता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि उन्हें इस कारण यौन अनैतिकता में सम्मिलित होना चाहिए। वैज्ञानिक रूप से यह प्रमाणित है कि कुछ मनोविकृतियाँ/मनोरोगियों में गम्भीर रूप से कमजोर आवेग-नियन्त्रण वाले तन्त्र होते हैं। इससे उनके मनों से परे जाने वाले प्रत्येक भयानक व्यवहार में सम्मिलित होना सही नहीं होता है।

यह बात कोई अर्थ नहीं रखती है कि लिंग विकार में आनुवंशिक, हार्मोनल, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, या आत्मिक कारण होते हैं, इसे मसीह में विश्‍वास करने के द्वारा और पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के ऊपर निरन्तर निर्भरता से दूर किया जा सकता है। चंगाई को प्राप्त किया जा सकता है, पाप को दूर किया जा सकता है, और यीशु की मुक्ति के माध्यम से जीवन परिवर्तित दिया जा सकता है, भले ही जैविक/शारीरिक कारक ही क्यों न हों। कुरिन्थियों के विश्‍वासियों ने इस तरह के परिवर्तिन का एक उदाहरण दिया है: "और तुम में से कितने ऐसे ही थे, परन्तु तुम प्रभु यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्‍वर के आत्मा से धोए गए और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे" (1 कुरिन्थियों 6:11)। यीशु मसीह में उपलब्ध परमेश्‍वर की क्षमा के कारण, प्रत्येक व्यक्ति के लिए, विपरीतलिंगीवादी, लिंग पहचान सम्बन्धी विकार वाले लोगों और विपरीत लिंग के वस्त्रों के धारण करते हुए यौन सुख पाने वाले के लिए आशा उपलब्ध है।

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