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प्रश्न

परमेश्‍वर के अस्तित्व के लिए सोद्देश्यवादी तर्क क्या है?

उत्तर


टिलीयोलोजिकल शब्द सोद्देश्यवाद या मीमांसात्मक विज्ञान टेलोस शब्द से आया है, जिसका अर्थ है "उद्देश्य" या "लक्ष्य" से है। यहाँ पर विचार यह है कि किसी एक उद्देश्य के लिए एक "प्रस्तावक" होता है, और इसलिए, जहाँ हम एक उद्देश्य के लिए स्पष्ट प्रयोजन को देखते हैं, तब हम यह मान सकते हैं कि वस्तुओं की रचना किसी कारण के लिए बनाई गई थीं। दूसरे शब्दों में, इसका तात्पर्य एक रूपरेखा अर्थात् ढाँचे के लिए एक रूपरेखाकार के होने से है। हम सहजता के साथ इन सम्पर्कों को स्वयं में प्रत्येक समय निर्मित करते रहते हैं । ग्रान्ड कैन्यन राष्ट्रीय उद्यान और रशमोर के पहाड़ के मध्य का अन्तर स्पष्ट है — एक को रूपरेखित किया गया है, जबकि दूसरे को नहीं। ग्रान्ड कैन्यन राष्ट्रीय उद्यान स्पष्ट रूप से गैर-तर्कसंगत, प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित किया गया था, जबकि रशमोर पहाड़ स्पष्ट रूप से एक बुद्धिमान प्राणी — अर्थात् एक रूपरेखाकार के द्वारा निर्मित किया गया था। जब हम एक समुद्र तट पर चलते हैं और हाथों में पहनने वाली घड़ी को पाते हैं, तो हम यह नहीं मान लेते हैं कि किसी एक बिना सोचे समझे अवसर और समय ने उड़ती हुई रेत से घड़ी का उत्पादन किया है। ऐसा क्यों है? क्योंकि इसमें रूपरेखा या ढाँचे के स्पष्ट चिन्ह पाए जाते हैं — इसका एक उद्देश्य है, यह सूचना को प्रदान कर रहा है, यह विशेष रूप से जटिल है, इत्यादि। किसी भी वैज्ञानिक क्षेत्र में सहज रूप में यह नहीं माना जाता है कि कोई रूपरेखा स्वयं से उत्पन्न हो गई है; यह सदैव एक रूपरेखाकार के तात्पर्य को प्रदान करती है, और जितनी उत्तम एक रूपरेखा होती है, उतना ही उत्तम इसका रूपरेखाकार होता है। इस प्रकार, विज्ञान की मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए, ब्रह्माण्ड के पास स्वयं के परे एक रूपरेखाकार के होने की आवश्यकता होगी (अर्थात, एक अलौकिक रूपरेखाकार का होना)।

सोद्देश्यवादी तर्क इस सिद्धान्त को पूरे ब्रह्माण्ड पर लागू करता है। यदि रूपरेखा का निहितार्थ एक रूपरेखाकार होने से है, और ब्रह्माण्ड रूपरेखा के चिन्हों को दिखाता है, तो ब्रह्माण्ड को रूपरेखित किया गया था। स्पष्ट है कि पृथ्वी के इतिहास में प्रत्येक जीवन का रूप अपने उच्चत्तम रूप में जटिल है। विश्‍व ज्ञानकोष ईन्सायक्लोपीडिया ब्रिटैनिका ने एकमात्र डीएनए के सूत्र के ऊपर ही अपने पूरे एक खण्ड को लिख डाला है। मानवीय मस्तिष्क में लगभग 10 अरब गीगाबाइट की क्षमता पाई जाती है। पृथ्वी पर जीवित वस्तुओं के अतिरिक्त, प्रतीत होता है कि पूरा ब्रह्माण्ड जीवन के लिए ही रूपरेखित किया गया था। शाब्दिक रूप से पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए सैकड़ों शर्तों की आवश्यकता है — ब्रह्माण्ड के द्रव्यमान घनत्व से भूकम्प की गतिविधि सब कुछ के जीवित रहने की व्यवस्था को ठीक-ठाक होना चाहिए। इन सभी वस्तुओं के अस्तित्व में आने की सम्भावना का बिना सोचे समझे आंकलन करना कल्पना से परे है। पूरे ब्रह्माण्ड में परमाणु कणों की संख्या की तुलना में बाधाएँ उच्च परिमाण के कई व्यवस्थाओं के साथ पाई जाती हैं! इन बहुत सी रूपरेखाओं के साथ, यह विश्‍वास करना कठिन है कि हम केवल एक दुर्घटना के परिणाम हैं। सच्चाई तो यह है कि नास्तिक/दार्शनिक एंटोनी फ्लेव का अभी कुछ समय पहले ही मन परिवर्तन अर्थात् धर्मान्तरण का ईश्‍वरवाद में होना बहुत अधिक सीमा तक इसी तर्क पर आधारित था।

परमेश्‍वर के अस्तित्व को प्रदर्शित करने के अतिरिक्त, सोद्देश्यवादी तर्क विकासवादी सिद्धान्त की कमियों को उजागर करता है। विज्ञान में चलने वाला बुद्धिमत्तापूर्ण रूपरेखित आन्दोलन जीवन की पद्धतियों के ऊपर सूचना के सिद्धान्त को लागू करता है और दर्शाता है कि अक्सर यहाँ तक कि जीवन की जटिलता को समझने की व्याख्या का भी आरम्भ नहीं सकता है। सच्चाई तो यह है कि यहाँ तक कि एकल-कोशिका वाले जीवाणु इतने अधिक जटिल होते हैं कि यदि उनके अपने सभी अंग एक ही समय में एक साथ काम न करें तो उनके अपने अस्तित्व की सम्भावना ही नहीं होती है। इसका अर्थ यह हुआ है कि उनके अंग किसी संयोग से विकसित नहीं किए गए हैं। डार्विन ने यह पहचान लिया था कि यह किसी न किसी दिन मानवीय दृष्टि में एक समस्या हो सकती है। वह थोड़ा ही जानता था कि यहाँ तक कि एकल-कोशिका वाले जीव की भी व्याख्या बिना किसी सृष्टिकर्ता के करना बहुत अधिक जटिलतापूर्ण है!

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