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गलातियों की पुस्तक

लेखक : गलातियों 1:1 स्पष्ट रूप से प्रेरित पौलुस को ही गलातियों के पत्र का लेखक होने से परिचित करता है।

लेखन तिथि : इस बात पर निर्भर करते हुए कि गलातियों की पुस्तक को कहाँ पर वास्तव में भेजा गया और पौलुस की किस मिश्नरी अर्थात् प्रचार यात्रा में इस क्षेत्र में कलीसियाएँ आरम्भ हुई, गलातियों की पुस्तक 48 और 55 ईस्वी सन् के मध्य में किसी समय लिखी गई थी।

लेखन का उद्देश्य : जैसा कि सामान्य रूप से पाया जाता है, गलातिया में कलीसियाओं आंशिक रूप से मन परिवर्तित यहूदी और आंशिक रूप से मन परिवर्तित अन्य जातियों में से आए हुए विश्‍वासियों के द्वारा निर्मित हुई थीं। पौलुस अपने प्रेरिताई के स्वभाव और जिन धर्मसिद्धान्तों की उसने शिक्षा दी, उनकी पुष्टि करता है, जिससे कि वह विशेषरूप से विश्‍वास के द्वारा ही केवल धार्मिकता के प्राप्त होने के महत्वपूर्ण सिद्धान्त के संदर्भ में गलीतिया की कलीसियाओं के द्वारा मसीह में किए जाने वाले विश्‍वास की पुष्टि कर सके। इस प्रकार यह विषय मुख्य रूप से उस जैसा ही है जैसा कि रोमियों के पत्र में चर्चा में किया गया था, अर्थात्, विश्‍वास के द्वारा ही धर्मी ठहराया जाना। तथापि, इस पत्र में, विशेष रूप से ध्यान को उस बिन्दु की ओर निर्देशित किया गया है कि मनुष्य मूसा की व्यवस्था के कामों के बिना ही विश्‍वास के द्वारा ही धर्मी ठहराया जाता है।

गलातियों को समकालीन इतिहास में एक निबन्ध के रूप में नहीं लिखा गया है। यह मसीह के सुसमाचार में आई हुई भ्रष्टता के विरुद्ध विरोध था। व्यवस्था के कामों की अपेक्षा विश्‍वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने के महत्वपूर्ण सत्य यहूदी विश्‍वास से आए हुए मसीही विश्‍वासियों के लिए अस्पष्ट था जिन्होंने यह हठ किया कि मसीह में विश्‍वासियों को यदि वे परमेश्‍वर के सामने पूर्ण रूप से स्वीकृत होने की अपेक्षा रखते हैं, तो उन्हें व्यवस्था को अवश्य ही पालन करना चाहिए। जब पौलुस ने यह सुना कि यह शिक्षा गलातियों की कलीसियाओं के भीतर आनी आरम्भ हो गई और यह कि इसने उन्हें स्वतंत्रता की धरोहर से दूर कर दिया है, तब उसने इस पत्र में निहित भावना रहित विरोध-पत्र को लिखा।

कुँजी वचन : गलातियों 2:16: "तौभी यह जानकर कि मनुष्य व्यवस्था के कामों से नहीं, पर केवल यीशु मसीह पर विश्‍वास करने के द्वारा धर्मी ठहरता है, हम ने आप भी मसीह यीशु पर विश्‍वास किया कि हम व्यवस्था के कामों से नहीं, पर मसीह पर विश्‍वास करने से धर्मी ठहरें; इसलिये कि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी धर्मी न ठहरेगा।"

गलातियों 2:20: "मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ, और अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है: और मैं शरीर में अब जो जीवित हूँ तो केवल उस विश्‍वास से जीवित हूँ, जो परमेश्‍वर के पुत्र पर है, जिस ने मुझ से प्रेम किया, और मेरे लिये अपने आप को दे दिया।"

गलातियों 3:11: "पर यह बात प्रगट है कि व्यवस्था के द्वारा परमेश्‍वर के यहाँ कोई धर्मी नहीं ठहरता क्योंकि धर्मी जन विश्‍वास से जीवित रहेगा।"

गलातियों 4:5-6: "ताकि व्यवस्था के आधीनों को मोल लेकर छुड़ा ले, और हम को लेपालक होने का पद मिले। और तुम जो पुत्र हो, इसलिये परमेश्‍वर ने अपने पुत्र के आत्मा को, जो 'हे अब्बा, हे पिता' कहकर पुकारता है, हमारे हृदयों में भेजा है।"

गलातियों 5:22-23: "पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, और कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई व्यवस्था नहीं।"

गलातियों 6:7: "धोखा न खाओ, परमेश्‍वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।"

संक्षिप्त सार : विश्‍वास के द्वारा अनुग्रह से धर्मी ठहराए जाने का परिणाम आत्मिक स्वतंत्रता है। पौलुस ने गलातियों के विश्‍वासियों को स्वतंत्रता में दृढ़ता के साथ खड़े रहने और "दासत्व के जूए में फिर से नही जुत्तने" (अर्थात्, मूसा की व्यवस्था) के लिए आग्रह किया (गलातियों 5:1)। मसीही स्वतंत्रता एक व्यक्ति निम्न स्तर के स्वभाव को संतुष्ट करने का बहाना नहीं है; अपितु, यह एक दूसरे से प्रेम करने का एक अवसर है (गलातियों 5:13; 6:7-10)। ऐसी स्वतंत्रता एक व्यक्ति को जीवन के संघर्ष से अलग नहीं करती है। वास्तव में, यह आत्मा और शरीर के मध्य चल रही लड़ाई को उग्र कर सकती है। तथापि, शरीर (निम्न स्वभाव) मसीह के साथ क्रूसित हो चुका है (गलातियों 2:20); और इसके परिणामस्वरूप आत्मा एक विश्‍वासी के जीवन में प्रेम, आनन्द और मेल अर्थात् शान्ति के फल को उत्पन्न करता है (गलातियों 5:22-23)।

गलातियों का पत्र आत्मा से प्रेरित विरोध में लिखा गया था। क्योंकि पौलुस के लिए, विषय यह नहीं था कि एक व्यक्ति का खतना हुआ है या नहीं, अपितु यह कि वह "एक नई सृष्टि" बन गया है (गलातियों 6:15)। यदि पौलुस विश्‍वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने के अपने तर्क में सफल नहीं हुआ होता, तो मसीहियत उद्धार के लिए विश्‍वव्यापी मार्ग बनने की अपेक्षा यहूदी धर्म में एक सम्प्रदाय मात्र ही बन कर रह जाती। इसलिए, गलातियों, केवल लूथर का ही पत्र नहीं है; अपितु यह प्रत्येक विश्‍वासी का पत्र है, जो पौलुस के साथ यह अंगीकार करता है कि : "मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ, अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है, और मैं शरीर में अब जो जीवित हूँ तो केवल उस विश्‍वास से जीवित हूँ, जो परमेश्‍वर के पुत्र पर है, जिस ने मुझ से प्रेम किया और मेरे लिये अपने आप को दे दिया" (गलातियों 2:20)।

याकूब और गलातियों की पुस्तक मसीही विश्‍वास के दो पहलुओं को चित्रित करती है कि आरम्भ से ही इनमें द्वन्द्व प्रतीत होता है, यद्यपि वास्तविकता में वे एक दूसरे के पूरक हैं। याकूब मसीह की नीति के ऊपर जोर देता है, जो कि एक ऐसी शर्त है जिसे केवल विश्‍वासी इसके अस्तित्व को इसके फलों के द्वारा ही प्रमाणित करता है। तथापि, याकूब, पौलुस के किसी भी रीति से कम नहीं, परमेश्‍वर के अनुग्रह के द्वारा एक व्यक्ति को परिवर्तित होने की आवश्यकता के ऊपर महत्व देता है (याकूब 1:18)। गलातियों सुसमाचार की गतिशीलता के

ऊपर महत्व देता है, जो नीति को उत्पादित करता है (गलातियों 3:13-14)। न ही पौलुस याकूब से नैतिकता से भरे हुए जीवन से किसी भी रीति से कम चिन्तित है (गलातियों 5:13)। सिक्के के दो पहलुओं की तरह, मसीही सत्य के ये दो पहलू सदैव एक दूसरे के साथ-साथ चलते हैं।

सम्पर्क : गलातियों को लिखी हुई पौलुस के पूरे पत्र में, बचाए जाने वाला अनुग्रह — परमेश्‍वर का वरदान है — मूसा की व्यवस्था की तुलना में विरोध में है — जो बचा नहीं सकता है। यहूदी विश्‍वास में आए हुए मसीही विश्‍वासी, वे जो धार्मिकता के स्रोत के लिए मूसा की व्यवस्था की ओर लौट जाने वाले थे, आरम्भिक कलीसिया में मुख्य थे, यहाँ तक उन्होंने पतरस जैसे प्रमुख मसीही विश्‍वासी को धोखे के अपने जाल में फँसा लिया था (गलातियों 2:11-13)। आरम्भिक मसीही विश्‍वासी व्यवस्था से इतने अधिक जुड़े हुए थे कि पौलुस को अनुग्रह के द्वारा उद्धार के सत्य जिसका व्यवस्था के पालन से कोई लेना नहीं, को निरन्तर दुहराते रहना पड़ा था। गलातियों को पुराने नियम से जोड़ने वाले विषय व्यवस्था बनाम अनुग्रह : धर्मी ठहराए जाने के लिए व्यवस्था की अयोग्यता (2:16); व्यवस्था के प्रति विश्‍वासी की मृत्यु (2:19); विश्‍वास के द्वारा अब्राहम को धर्मी ठहराया जाना (3:6); व्यवस्था उद्धार नहीं अपितु परमेश्‍वर के क्रोध को ले आता है (3:10); और कार्य नहीं, अपितु प्रेम व्यवस्था को पूरा कर देता है (5:14) के चारों ओर घुमते हैं।

व्यवहारिक शिक्षा : गलातियों की पुस्तक के विषयों में एक मुख्य विषय 3:11 में पाया जाता है : "धर्मी जन विश्‍वास से जीवित रहेगा।" न केवल हम विश्‍वास के द्वारा बचाए जाते हैं (यूहन्ना 3:16; इफिसियों 2:8-9), अपितु एक विश्‍वासी का मसीह में जीवन — दिन प्रतिदिन, क्षण दर क्षण — विश्‍वास के द्वारा और विश्‍वास में ही यापन किया जाता है। विश्‍वास एक ऐसी बात नहीं है जिसे हम स्वयं के प्रयास से एकत्र करते हैं — यह तो परमेश्‍वर का वरदान है, न कि कर्मों के द्वारा है — अपितु यह हमारे (1) विश्‍वास को प्रदर्शित करने के लिए ताकि अन्य लोग हम में मसीह के कार्य को देख सकें और (2) हमारे विश्‍वास को आत्मिक अनुशासन (बाइबल अध्ययन, प्रार्थना, आज्ञाकारिता) के द्वारा लागू करते हुए बढ़ाने के प्रति उत्तरदायित्व और आनन्द है।

यीशु ने कहा था कि हम हमारे जीवन में अपने फल से पहचाने जाएँगे (मत्ती 7:16) जो हमारे भीतर के विश्‍वास का प्रमाण देता है। सभी मसीही विश्‍वासियों को उनके भीतर रहने वाले बचाने वाले विश्‍वास के ऊपर मसीही जीवन को निर्मित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि हमारे जीवन मसीह को प्रतिबिम्बित कर सकें और अन्य हम में उसे देखें और "हमारे पिता की महिमा करें जो स्वर्ग में है" (मत्ती 5:16, हिन्दी बी एस आई बाइबल)।



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