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प्रश्न

क्या जीवन साथी के होने जैसी कोई बात है? क्या परमेश्वर के पास आपको विवाह करने के लिए कोई एक विशेष व्यक्ति है?

उत्तर


एक "जीवन साथी" या प्राण नाथ के लिए सामान्य विचार यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक अन्य व्यक्ति है जो कि उसके लिए बिल्कुल "सिद्ध साथी" है, और यदि आप इस जीवन साथी को छोड़कर किसी और से विवाह करेंगे, तो आप कभी भी खुश नहीं रहेंगे। क्या प्राणों के साथी की यह विचारधारा बाइबल आधारित है? नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। प्राणों के साथी होने की विचारधारा का अक्सर उपयोग तलाक को लेने के लिए एक बहाना है। वे लोग जो उनके विवाहों से खुश नहीं हैं कई बार यह दावा करते हैं कि उन्होंने अपने प्राणों के साथी के साथ विवाह नहीं किया और इसलिए उन्हें तलाक चाहिए और वे अपने प्राण के सच्चे साथी की खोज करनी आरम्भ कर देते हैं। यह एक बहाने से ज्यादा और कुछ नहीं है, यह एक पूरी तरह से अन्धाधुन्ध बाइबल रहित बहाना है। यदि आप विवाहित हैं, तो जिस व्यक्ति को आपने विवाह किया है वही आपके प्राणों का साथी है। मरकुस 10:7-9 घोषणा करता है, "इस कारण मनुष्य अपने माता-पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे; इसलिए वे अब दो नहीं पर एक तन है। इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है उसे मनुष्य अलग न करे।" एक पति और पत्नी "एक," "एक तन," "और अधिक दो नहीं," अपितु "एक हो गए" और "आपस में जुड़ गए हैं" अर्थात् प्राणों के साथी बन गए हैं।

हो सकता है कि एक विवाह वैसे एकता और आनन्द से भरा हुआ न हो जैसा कि एक जोड़ा चाहता है। एक पति और पत्नी में शारीरिक, भावनात्मक, और आत्मिक एकता नहीं हो जैसे कि वे प्राप्त करने की इच्छा रखते हों। परन्तु इस घटना में भी, पति और पत्नी फिर भी प्राणों के साथी हैं। इस तरह की परिस्थिति में एक जोड़े को "प्राणों के साथी" की सच्ची अंतरंगता या घनिष्ठता को निर्मित करने के लिए कार्य करना चाहिए। विवाह के बारे में बाइबल की शिक्षा का पालन करते हुए (इफिसियों 5:22-33), एक जोड़ा घनिष्ठता, प्रेम, और समर्पण को निर्मित कर सकता है जो कि "एक तन" हुए प्राण के साथियों के पास होती है। यदि आप विवाहित हैं, तो आप अपने प्राण के साथी के साथ ही विवाहित हैं। चाहे विवाह में कितनी भी सामंजस्यहीनता ही क्यों न हो, परमेश्वर चंगाई, क्षमा, पुर्नस्थापना, और सच्चे वैवाहिक प्रेम और सामंजस्य को लेकर आ सकता है।

क्या एक गलत व्यक्ति से विवाह होना संभव है? यदि हम स्वयं को परमेश्वर को दे दें और उसके मार्गदर्शन की खोज करें, तो वह हमें निर्देश देने की प्रतिज्ञा करता है: "तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन् सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिए सीधा मार्ग निकालेगा" (नीतिवचन 3:5-6)। नीतिवचन 3:5-6 का उपयोग यह है कि यदि आप अपने पूरे मन से यहोवा परमेश्वर के ऊपर भरोसा नहीं कर रहे हैं, और अपनी ही समझ का सहारा ले रहे हैं, तो आप गलत दिशा में जा सकते हैं। हाँ, यह संभव है, अवज्ञा और परमेश्वर के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध की कमी के समय में, किसी ऐसे के साथ विवाह करना जिसके लिए उसके साथ विवाह करने की उसकी इच्छा नहीं है। यद्यपि, यहाँ तक कि इस तरह की घटना में भी, परमेश्वर प्रभुतासम्पन्न है और सब कुछ उसके नियन्त्रण में है।

हांलाकि वह विवाह परमेश्वर की इच्छा में नहीं था, परन्तु यह भी उसकी सर्वश्रेष्ट इच्छा और योजना के भीतर है। परमेश्वर तलाक से घृणा करता है (मलाकी 2:16), और "गलत व्यक्ति से विवाह करना" कभी भी बाइबल में तलाक लेने के लिए आधार के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है। यह दावा कि "मैने एक गलत व्यक्ति से विवाह किया और मैं तब तक खुश नहीं रहूँगा जब तक में अपने प्राण के सच्चे साथी को खोज नहीं लेता" दो पहलूओं के कारण बाइबल आधारित नहीं है। पहला, यह एक ऐसा दावा है कि आपके गलत निर्णय ने परमेश्वर की इच्छा के ऊपर कार्य किया और उसकी योजना को नाश कर दिया। दूसरा, यह एक ऐसा दावा है कि परमेश्वर संघर्षरत् विवाह को खुश हाल करने, एकता में लाने और सफल बनाने के लिए योग्य नहीं है। जो कुछ हम करते हैं उसमें से कुछ भी परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ इच्छा को भंग कर सकता है। परमेश्वर किसी भी दो व्यक्तियों को ले सकता है, चाहे वे कितने भी असमान क्यों न हो, और उन्हें दो ऐसे लोगों में आकार दे सकता है जो कि एक दूसरे के लिए पूर्ण हो।

यदि हम परमेश्वर के साथ घनिष्ठता के सम्बन्ध में बने रहें, तो वह हमारा नेतृत्व और मार्गदर्शन करेगा। यदि एक व्यक्ति प्रभु के साथ चल रहा है और वास्वत में उसकी इच्छा की खोज कर रहा है, तो परमेश्वर उस व्यक्ति को उसके लिए इच्छित किए हुए जीवन साथी की ओर मार्गदर्शन देगा। परमेश्वर हमें हमारे "प्राण के साथी" के लिए नेतृत्व देगा यदि हम उसके अधीन हो जाएगें और उसका अनुसरण करेंगे। हांलाकि, प्राणों के साथी होना दोनों अर्थात् एक पद और एक अभ्यास है। एक पति और पत्नी प्राणों के साथी होते हैं जब वे "एक तन" एक दूसरे के साथ आत्मिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप में एकता में होते हैं। यद्यपि, अभ्यास में, एक जोड़े को जो कुछ वह है उसके ऊपर कार्य करने, और उन्हें दिन-प्रति-दिन की वास्तविकता बना देने की एक प्रक्रिया होती है। प्राण का सच्चा साथी होना केवल तभी संभव है जब विवाह के लिए बाइबल आधारित नमूने का उपयोग किया जाता है।

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