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प्रश्न

अकेली माताओं के प्रति परमेश्‍वर क्या कहना चाहता है?

उत्तर


बाइबल सीधे रूप से अकेली माताओं को सम्बोधित नहीं करती है, परन्तु महिलाओं, माताओं, विधवाओं और उनके बच्चों के साथ परमेश्‍वर के द्वारा किए जाने वाले सौम्य वार्तालाप के कई उदाहरण पाए जाते हैं। ये उदाहरण, और परमेश्‍वर की सौम्यता, इस बात पर लागू होते हैं कि एक माता अकेली या विवाहित है या विधवा या तलाकशुदा है। परमेश्‍वर प्रत्येक स्त्री को अच्छी तरह से जानता है और उसकी स्थिति उसे पूरी तरह से ज्ञात् है। बाइबल चेतावनी देती है कि विवाह से बाहर यौन सम्बन्ध पापपूर्ण और खतरनाक है और परेशानियों को लाएगा, जिनमें से एक यह है कि एक स्त्री को अकेले ही स्वयं एक बच्चे का पालन-पोषण करना पड़ सकता है, जो कि निस्सन्देह कठिन है। और यदि यह उसके स्वयं के पाप है, जिसका परिणाम अकेले मातृत्व में हुआ है, तो हमारा अनुग्रहकारी परमेश्‍वर अभी भी सहायता और सांत्वना को लाने के लिए तैयार है। और सर्वोत्तम बात यह है कि वह उन पापों को भी यीशु मसीह के द्वारा क्षमा करता है और उस माता को स्वर्ग की अनन्त शान्ति प्रदान करता है, जो उसे स्वीकार करती है, वह बच्चे जो उसे स्वीकार करते हैं, और यहाँ तक कि दूर हो चुके पिता को भी, जो उसे स्वीकार करता है!

परन्तु, अक्सर एक स्त्री स्वयं को अकेली पाती है और अपने स्वयं के बिना किसी गलती के कारण बच्चों को पालन-पोषण करती है। दुर्भाग्य से स्त्रियाँ अक्सर युद्ध और आतंकवाद से परेशान संसार में निर्दोष पीड़ित के रूप में पाई जाती हैं। पति युद्ध के लिए जाते हैं और फिर वापस कभी नहीं लौटते हैं, निःस्वार्थ रूप से वे अपने देशों के लिए अपने जीवनों को दे देते हैं। यदि किसी पति की मृत्यु ने बच्चों को एक अकेली स्त्री के साथ छोड़ दिया है, तो इसमें कोई सन्देह नहीं है कि परमेश्‍वर उस स्त्री को सहायता और सांत्वना प्रदान करेगा।

परमेश्‍वर परिवारों की चिन्ता करता है। परन्तु वह इस बात के प्रति अधिक चिन्तित है कि प्रत्येक व्यक्ति, चाहे उसका परिवार कैसे भी क्यों नहीं दिखता है, पापों से पश्चाताप करे और अपने सम्बन्ध को उसके साथ बनाए। वह चाहता है कि हम उसे जानें, क्योंकि उसकी सृष्टि के द्वारा उसे जानना उसे प्रसन्नता और उसकी महिमा को ले आता है। हम अपने जीवन के विवरणों के ऊपर ध्यान केन्द्रित करते हैं, यह चिन्ता करते हैं कि अन्य लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे और क्या कलीसिया हमें स्वीकार करेगी और चाहे हमने स्वयं को पूरी तरह से ही क्यों न उजाड़ दिया है। परन्तु, परमेश्‍वर मसीही विश्‍वासियों को चिन्ता के स्थान पर आनन्द मनाने के लिए निमन्त्रण देता है। उसने कहा है कि हमें अपनी सारी चिन्ताओं को उस के ऊपर ही डाल देना चाहिए, क्योंकि उसे हमारा ध्यान है (1 पतरस 5:7)। वह हमारे बोझ को उठाना और हमारे पापों को क्षमा करना चाहता है और फिर हमारे पापों को भूल जाना जाता है और हमें आगे बढ़ने में सहायता करता है। केवल वह हम से इतना कहता है कि हम उसे जान लें, उसमें प्रसन्नता को पाएँ, और उस पर भरोसा करें। अकेली माताएँ अक्सर बहुत ही अधिक उत्तरदायी होती हैं, और इसलिए कभी-कभी अपनी चिन्ताओं और पालन-पोषण के प्रति अपने ध्यान को "एक किनारे कर देना" अत्यन्त कठिन होता है। एक अकेली माता को इसके बारे में सोचने से ही आत्मग्लानि महसूस हो सकती है! परन्तु, परमेश्‍वर चाहता है कि हम प्रत्येक दिन का आरम्भ उसके साथ थोड़ा समय व्यतीत करते हुए आरम्भ करें, और (शेष बचे हुए दिन के समय में) उसके ऊपर भरोसा करें कि वह हमारी शारीरिक और भावनात्मक आवश्यकताओं को पूरा करेगा, जब हम उसके ऊपर निर्भर होते हैं।

यह एक माँ को कैसा प्रतीत होगा, जो बाइबल पढ़ने और प्रार्थना करने के लिए अपने समय को निकालती है। वह सोच सकती है कि, "मेरे पास बच्चों के लिए कार्य करने और घर की देखभाल करने और शेष सब काम करने के पश्चात् समय नहीं है।" परन्तु यह आधे घण्टे का समय हो सकता है, जब उसका बच्चा सो रहा हो या उसकी देखभाल किसी सम्बन्धी या मित्र के द्वारा की जा रही है, वह प्रार्थना में परमेश्‍वर से वार्तालाप करने और पवित्रशास्त्र से उसकी आवाज़ सुनने के लिए अपने समय को निर्धारित कर सकती है, चाहे इसका अर्थ बर्तनों को साफ न करते ही क्यों न हो, वह स्वयं में अद्भुत सामर्थ्य और सांत्वना प्रदान करने वाली उपस्थिति को दिन के शेष समय में पाएगी। इस तरह के वचनों को स्मरण कर लें जैसे, "यहोवा मेरी ओर है, मैं न डरूँगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?" (भजन संहिता 118:6) या "जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ" (फिलिप्पियों 4:13) जब बातें कठिन या तनावपूर्ण हो जाती हैं, तब उसके स्मरण दिलाते हुए वास्तविक प्रेम और सुरक्षा सहायता प्रदान करता है।

इसलिए, अकेली माताओं के प्रति परमेश्‍वर क्या कहना चाहता है? वही बात परमेश्‍वर प्रत्येक अन्य व्यक्ति से कहता है। पाप से पश्चाताप करें, क्षमा के लिए मसीह के ऊपर भरोसा करें, और प्रार्थना के द्वारा परमेश्‍वर से वार्तालाप करें, पवित्रशास्त्र से उसकी आवाज को सुनें, परीक्षाओं में परमेश्‍वर की सामर्थ्य के ऊपर निर्भर रहें और उसके साथ अद्भुत शाश्‍वतकालीन जीवन में अपनी आशा को रखें, जिसकी उसने आपके लिए योजना बनाई है। "जो बातें आँख ने नहीं देखीं और कान ने नहीं सुनीं, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ीं, वे ही हैं जो परमेश्‍वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार की हैं" (1 कुरिन्थियों 2:9)।

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