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प्रश्न

प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में सात मुहरें और सात तुरहियाँ क्या हैं?

उत्तर


सात मुहरें (प्रकाशितवाक्य 6:1-17, 8:1-5), सात तुरहियाँ (प्रकाशितवाक्य 8:6-21, 11:15-19), और सात कटोरे (प्रकाशितवाक्य 16:1-21) परमेश्‍वर की ओर से अन्त के समय में आने वाले न्याय की तीन सफल श्रृंखलाएँ हैं। न्याय समय के बीतने के साथ साथ प्रगति करता हुए बुरा और अधिक विनाश वाला बनता चला जाता है। सात मुहरें, तुरहियाँ, और कटोरे एक दूसरे के साथ सम्बन्धित हैं। सात मुहरें सात तुरहियों को परिचित कराते हैं (प्रकाशितवाक्य 8:1-5), और सात तुरहियाँ सात कटोरों को परिचित कराती हैं (प्रकाशितवाक्य 11:15-19, 15:1-8)।

सात मुहरों में से पहली चार को रहस्योदघाटन के चार घुड़सवारों के रूप में जाना जाता है। पहली मुहर मसीह विरोधी को परिचित कराती है (प्रकाशितवाक्य 6:1-2)। दूसरी मुहर एक बड़े युद्ध का कारण बनती है (प्रकाशितवाक्य 6:3-4)। सात मुहरों में से तीसरी मुहर अकाल को ले आती है (प्रकाशितवाक्य 6:5-6)। चौथी मुहर अकाल, अतिरिक्त मरी और अतिरिक्त युद्ध को ले आती है (प्रकाशितवाक्य 6:7-8)।

पाँचवी मुहर हमें उन लोगों के बारे में बताती है जो अन्तिम समय में मसीह में अपने विश्‍वास के कारण शहीद होंगे (प्रकाशितवाक्य 6:9-11)। परमेश्‍वर न्याय के लिए उनके पुकार को सुनता है और इसे वह उसके समय पर - छँठवी मुहर के रूप में, तुरही और कटोरे के न्यायों के साथ दे देता है। जब छँठी और साँतवी मुहर को तोड़ा जाता है, तब एक विनाशकारी भूकम्प, बड़े पैमाने पर हलचल और भयानक विनाश को - असामान्य खगोलीय घटनाओं के साथ ले आता है (प्रकाशितवाक्य 6:12-14)। वह जो इसमें बच जाते हैं वह सही में यह कहते हुए चिल्लाते हैं, "हम पर गिर पड़ो; और हमें उसके मुँह से जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने के प्रकाश से छिपा लो। क्योंकि उन के प्रकोप का भयानक दिन आ पहुँचा है, अब कौन ठहर सकता है?" (प्रकाशितवाक्य 6:16-17)।

सात तुरहियों का वर्णन प्रकाशितवाक्य 8:6-21 में किया गया है। सातवीं मुहर का "विषय" सात तुरहियाँ हैं (प्रकाशितवाक्य 8:1-5)। पहली तुरही ओले और आग को उत्पन्न करती है जो इस संसार के वनस्पति जीवन के एक बड़े भाग को नाश कर देते हैं (प्रकाशितवाक्य 8:7)। दूसरी तुरही उस बात को ले आती हैं जो ऐसी जान पड़ती हैं कि कोई उल्का पिंड समुद्र और महासागरों से टकरा रहा है और जिसके कारण इस संसार के समुद्री जीवन के एक बहुत बड़े भाग का नाश हो गया (प्रकाशितवाक्य 8:8-9)। तीसरी तुरही दूसरी के ही जैसी है, परन्तु यह संसार के महासागरों की अपेक्षा झीलों और नदियों को प्रभावित करती है (प्रकाशितवाक्य 8:10-11)।

सात तुरहियों में चौथी तुरही सूर्य और चाँद के अन्धकार का कारण बन जाती है (प्रकाशितवाक्य 8:12)। पाँचवीं तुरही "शैतानिक टिड्डियों" की विपत्ति का कारण बनती है जो मनुष्य के ऊपर आक्रमण और अत्याचार करती है (प्रकाशितवाक्य 9:1-11)। छठी तुरही एक शैतानिक सेना को छोड़ देती है जो मनुष्यों की एक तिहाई का नाश कर देती है (प्रकाशितवाक्य 9:12-21)। साँतवीं तुरही सात स्वर्गदूतों के साथ परमेश्‍वर के क्रोध के सात कटोरे को बुलाहट देती है (प्रकाशितवाक्य 11:15-19, 15:1-8)।

सात कटोरों का न्याय प्रकाशितवाक्य 16:1-21 में वर्णित है। प्रथम कोटरा मनुष्यों के ऊपर बुरे और दु:खदाई फोड़े का कारण बनता है (प्रकाशितवाक्य 16:2)। दूसरा कटोरा समुद्र में रहने वाले प्रत्येक जीवधारी की मृत्यु का कारण बनता है (प्रकाशितवाक्य 16:3)। तीसरा कटोरा समुद्र को लहू में परिवर्तित हो जाने का कारण बन जाता है (प्रकाशितवाक्य 16:4-7)। सात कटोरों में से चौथा कटोरा सूर्य के ऊपर इसलिए उण्डेल दिया जाता कि यह मनुष्यों को अपनी आग से झुलसा दे जिससे बहुत अधिक दर्द उत्पन्न हो जाता है (प्रकाशितवाक्य 16:8-9)। पाँचवाँ कटोरा पहले कटोरे के कारण हुए फोड़े के पीड़ा को तेज कर देता और बहुत बड़े अन्धकार का कारण बन जाता है (प्रकाशितवाक्य 16:10-11)। छठवाँ कटोरा महानदी फरात को सूखा देता है और मसीह विरोधी की सेनाओं को हर- मगिद्दोन के युद्ध को आरम्भ करने के लिए एकत्र कर देता है (प्रकाशितवाक्य 16:12-14)। साँतवा कटोरा बड़े ओलों की वर्षा के साथ ही नाश कर देने वाले भूकम्प का कारण बन जाता है (प्रकाशितवाक्य 16:15-21)।

प्रकाशितवाक्य 16:5-7 में परमेश्‍वर घोषणा करता है, "हे पवित्र, जो है और जो था, तू न्यायी है और तू ने यह न्याय किया। क्योंकि उन्होंने पवित्र लोगों और भविष्यद्वाक्ताओं का लहू बहाया था, और तू ने उन्हें लहू पिलाया, क्योंकि वे इसी योग्य हैं...हाँ हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्‍वर, तेरे निर्णय ठीक और सच्चे हैं।"

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प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में सात मुहरें और सात तुरहियाँ क्या हैं?
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