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प्रश्न

क्या शैतान की पहुँच अभी भी स्वर्ग तक है?

उत्तर


शैतान मूल रूप से परमेश्‍वर के पवित्र स्वर्गदूतों में से एक था, परन्तु उसने परमेश्‍वर के विरूद्ध विद्रोह किया और स्वर्ग से बाहर निकाल दिया गया (लूका 10:18)। यह केवल परमेश्‍वर के न्याय का पहला चरण था। क्रूस पर शैतान के राज्य पर जय को पा लिया गया था (यूहन्ना 12:31-32)। इसके पश्चात्, वह एक हजार वर्षों तक अथाह कुण्ड में बाँध दिया जाएगा (प्रकाशितवाक्य 20:1-3) और फिर अनन्तकाल तक के आग की झील में डाला दिया जाएगा (प्रकाशितवाक्य 20:10)।

उसके अन्तिम न्याय के होने तक, शैतान "इस संसार का सरदार" है (यूहन्ना 14:30), परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि उसके पास अभी भी स्वर्गीय क्षेत्रों तक पहुँचने के लिए प्रतिबन्धित अनुमति है। अय्यूब 1:6 में, शैतान ईश्‍वर की उपस्थिति में खड़ा मिलता है। 2 इतिहास 18:18-21 में एक ऐसी ही स्थिति पाई जाती है, जिसमें "झूठ बोलने वाली आत्मा" सम्मिलित है।

क्योंकि परमेश्‍वर पवित्र है और पूरी तरह पाप के बिना है (यशायाह 6: 3) और क्योंकि वह बुराई को भी नहीं देख सकता है (हबक्कूक 1:13), इसलिए शैतान स्वर्ग में कैसे पहुँच सकता है? इसके उत्तर पाप के प्रति परमेश्‍वर का प्रभुता सम्पन्न संयम सम्मिलित है। अय्यूब 1 में, शैतान स्वयं की रिपोर्ट देने के लिए परमेश्‍वर के सामने खड़ा था। परमेश्‍वर ने बैठक आरम्भ की, कार्यवाही का नेतृत्व किया, और इसे अपने पूर्ण नियन्त्रण में रखा (वचन 7)। इसका परिणाम यह है कि शैतान की शक्ति सीमित है (वचन 12) और परमेश्‍वर की महिमा प्रगट हुई।

यहाँ कुछ अन्य तथ्यों को ध्यान में रखना है: 1) शैतान के पास परमेश्‍वर की उपस्थिति तक खुली पहुँच नहीं है। उसे परमेश्‍वर ने बुलाया है। 2) उसका वहाँ जाना अस्थायी है। परमेश्‍वर के सिंहासन के सामने उसका समय सीमित है। 3) किसी भी तरह से स्वर्ग की शुद्धता एक पापी प्राणी के संक्षिप्त रूप से परमेश्‍वर-द्वारा-निर्धारित उपस्थिति के कारण "दूषित" नहीं होती है, क्योंकि यह परमेश्‍वर द्वारा संचालित सामर्थ्य के अधीन थी। और, 4) शैतान की पहुँच केवल अन्तिम न्याय के दिए जाने से पहले ही दी जाती है। न्याय के पश्चात्, परमेश्‍वर एक नया स्वर्ग और नई पृथ्वी को बनाता है (प्रकाशितवाक्य 21:1), हमारी आँखों से सभी आँसूओं को दूर करता है (वचन 4), नया यरूशलेम (वचन 10) बताता है और पाप की पूर्ण अनुपस्थिति की प्रतिज्ञा करता है (वचन 27)।

जब हम कहते हैं, "परमेश्‍वर पाप को स्वर्ग में अनुमति नहीं दे सकता है," तो हमारा कहने का अर्थ यह होता है कि परमेश्‍वर उन मनुष्यों को अनुमति नहीं दे सकता जो अभी भी उसकी उपस्थिति में रहते हुए पाप में बने रहना चाहते हैं। परन्तु परमेश्‍वर के लिए यह सम्भव है कि वह एक पापी व्यक्ति को अपनी पवित्रता के साथ समझौता किए बिना उसकी उपस्थिति में (अस्थायी रूप से) खड़ा होने दे ताकि उसे सेवकाई के लिए अधिकृत कर सके (यशायाह 6), उससे लेखा-जोखा ले सके (अय्यूब 1-2), या उसका न्याय कर सके (प्रकाशितवाक्य 20:11-15)।

परमेश्‍वर की पवित्रता अन्ततः सभी पापों को भस्म कर देगी। उस दिन तक, उसकी पवित्रता पाप को नियन्त्रित करती है और इसका अर्थ यह है कि शैतान, कुछ अवसरों पर, अपने सृष्टिकर्ता के सामने अपने कार्यों का विवरण देने के लिए संक्षेप में बुलाया जाता है।

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