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प्रश्न

मसीह की मृत्यु के लिए कौन जिम्मेदार था? यीशु को किसने मारा?

उत्तर


इस प्रश्न के उत्तर के कई पहलू हैं। पहला, इसमें कोई सन्देह नहीं कि यीशु की मौत के लिए इस्राएल के धार्मिक अगुवे जिम्मेदार थे। मत्ती 26:3-4 हमें बताता है कि "तब प्रधान याजक और प्रजा के पुरनिए काइफा नामक महायाजक के आँगन में इकट्ठा हुए, और आपस में विचार करने लगे कि यीशु को छल से पकड़कर मार डालें।" यहूदी अगुवों ने रोमियों से मांग की कि यीशु को मौत के घाट उतार दिया जाए (मत्ती 27:22-25)। वे उसे और अधिक चिन्ह और आश्चर्यकर्मों को प्रगट करने की अनुमति नहीं दे सकते थे, क्योंकि इससे उनके धार्मिक समाज में उनके स्थान और पद को खतरा था (यूहन्ना 11:47-50), इसलिए "वे उसे मार डालने का षड्‍यन्त्र रचने लगे" (यूहन्ना 11:53)।

रोमी वे लोग थे जिन्होंने वास्तव में उसे क्रूस पर चढ़ाया था (मत्ती 27:27-37)। क्रूसीकरण, मृत्युदण्ड दिए जाने के लिए रोमियों की एक पद्धति थी, जिसे रोमन राज्यपाल पेन्तियुस पिलातुस के अधिकार के अधीन रोमियों द्वारा अधिकृत और मृत्युदण्ड दिए जाने के लिए लागू किया गया था, जिसने यीशु को मृत्युदण्ड सुनाया था। रोमी सैनिकों ने उसके हाथों और पैरों में कीलें ठोंक दीं, रोमी सैनिकों ने क्रूस को खड़ा किया और एक रोमी सिपाही ने उसकी पसली में भाला मारा (मत्ती 27:27-35)।

इस्राएल के लोग भी यीशु की मृत्यु के सह-अपराधी थे। वे चिल्ला रहे थे, "उसे क्रूस पर चढ़ा! उसे क्रूस पर चढ़ा!" जब वह पीलातुस के सामने जाँच के लिए खड़ा हुआ (लूका 23:21)। उन्होंने साथ यीशु के स्थान पर चोर बरअब्बा को छोड़ देने के लिए पुकारा (मत्ती 27:21)। पतरस ने प्रेरितों 2:22-23 में इस बात की पुष्टि की, जब उसने इस्राएल के लोगों से कहा कि "तुम ने अधर्मियों के हाथ से क्रूस पर चढ़वाकर मार डाला।" वास्तव में यीशु की हत्या एक षड़यन्त्र थी, जिसमें रोमी, हेरोदेस, यहूदी अगुवों और इस्राएल के लोगों के समूह सम्मिलित थे, यह विविध समूह के लोग थे, जिन्होंने पहले या बाद में कभी भी किसी बात पर एक साथ काम नहीं किया, परन्तु जो केवल एक बार इस षड़यन्त्र : परमेश्वर के पुत्र की हत्या को करने और बिना किसी सोच के इसे करने के लिए एकत्रित्र हुए थे।

अन्त में, और कदाचित् कुछ आश्चर्यजनक रूप से, यह स्वयं परमेश्वर ही था जिसने यीशु को मौत के घाट उतार दिया। यह "परमेश्‍वर की ठहराई हुई योजना और पूर्व ज्ञान के" द्वारा और उच्चतम उद्देश्य की प्राप्ति लिए किए गए ईश्वरीय न्याय का सबसे बड़ा कार्य था (प्रेरितों के काम 2:23)। क्रूस पर यीशु की मृत्यु ने असँख्य लाखों लोगों के उद्धार को सुरक्षित किया और यही एकमात्र तरीका बताया गया है, जिसमें परमेश्‍वर अपनी पवित्रता और सिद्ध धार्मिकता से समझौता किए बिना पाप को क्षमा कर सकता है। मसीह की मृत्यु का होना परमेश्वर की स्वयं की ओर निर्धारित शाश्वत छुटकारे की पूर्ण योजना थी। जैसा कि कुछ लोगों ने यह सुझाव दिया है कि, यह शैतान के द्वारा जय पाने से बहुत दूर, या एक अनावश्यक रूप से दु:खान्त घटना है, तथापि यह परमेश्वर की भलाई और दया का सबसे बड़ा अनुग्रहकारी कार्य था, यह पापियों के लिए पिता के प्रेम की अन्तिम अभिव्यक्ति थी। परमेश्वर ने यीशु को हमारे पाप के लिए मौत के घाट उतार दिया, ताकि हम उसके सामने पाप रहित धार्मिकता में रह सकें, ऐसी धार्मिकता में जो केवल क्रूस के कारण ही सम्भव है। "जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिये पाप ठहराया कि हम उसमें होकर परमेश्‍वर की धार्मिकता बन जाएँ" (2 कुरिन्थियों 5:21)।

इसलिए हम जो विश्वास में मसीह के पास आए हैं, उसके लहू के दोषी हैं, जो हमारे लिए क्रूस पर बहाया गया है। वह हमारे पापों के दण्ड का भुगतान करने के लिए मर गया (रोमियों 5:8; 6:23)।

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मसीह की मृत्यु के लिए कौन जिम्मेदार था? यीशु को किसने मारा?
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