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प्रश्न

स्वर्ग की रानी कौन है?

उत्तर


यह वाक्यांश "स्वर्ग की रानी" बाइबल में दो बार, दोनों ही बार यिर्मयाह की पुस्तक में प्रकट होता है। पहली घटना उन बातों के सम्बन्ध में है, जिन्हें इस्राएलियों ने किया था, जिसके कारण प्रभु परमेश्‍वर को क्रोध आ गया था। पूरा परिवार मूर्तिपूजा में सम्मिलित था। बच्चों ने लकड़ी इकट्ठी की, और पुरुषों ने इसे झूठे देवताओं की पूजा करने के लिए वेदियाँ बनाने के लिए उपयोग किया। स्त्रियों ने "स्वर्ग की रानी" के लिए आटा गूँधा और आटे के पेड़े से रोटी पकाने लगी (यिर्मयाह 7:18)। यह पदवी इशतेर, एक अश्शूरी और बेबीलोन की देवी अश्तोरेत या अश्तारेत के लिए भिन्न समूहों के द्वारा उद्धृत की जाती थी। उसे झूठे देवता बाल की पत्नी माना जाता था, जिसे मोलेक भी कहा जाता था। स्त्रियों में अश्तोरेत की पूजा करने के लिए प्रेरणा एक प्रजनन देवी के रूप में इसकी प्रतिष्ठा से उत्पन्न हुई थी, और, इस युग की स्त्रियों के मध्य में बच्चों को जन्म देने की इच्छा बहुत अधिक प्रबलता से पाई जाती है, इस "स्वर्ग की रानी" की पूजा मूर्तिपूजक सभ्यताओं में फैली हुई थी। दुर्भाग्य से, यह इस्राएलियों के मध्य में भी लोकप्रिय हो गई थी।

स्वर्ग की रानी का दूसरा सन्दर्भ यिर्मयाह 44:17-25 में पाया जाता है, जहाँ यिर्मयाह ने लोगों को परमेश्‍वर का वह वचन दे रहा है, जिसे उससे परमेश्‍वर ने कहा है। वह लोगों को स्मरण दिलाता है कि उसकी अवज्ञा करने और उनके द्वारा मूर्ति पूजा करने के कारण उन्होंने प्रभु परमेश्‍वर को बहुत अधिक क्रोधित किया है और इसलिए उन्हें आपदाओं के साथ दण्डित किया जाता है। यिर्मयाह उन्हें चेतावनी देता है कि यदि वे पश्चाताप नहीं करते हैं, तो उन्हें अधिक दण्ड मिलेगा। उन्होंने उत्तर दिया कि उनमें मूर्तियों की पूजा को छोड़ने का कोई मंशा नहीं है, और यह स्वर्ग की रानी, अश्तोरेत को अर्घ का बलिदान देते रहने की प्रतिज्ञा के प्रति वचनबद्धता को दिखाता है, और यहाँ तक कि वह उसे ही शान्ति और समृद्धि का श्रेय देने के लिए भी वचनबद्ध थे, जिसका उन्हें परमेश्‍वर के अनुग्रह और दया के कारण आनन्द प्राप्त किया था।

यह स्पष्ट नहीं है कि यह विचार की अश्तोरेत यहोवा की एक "सहचरी" थी, कहाँ से उत्पन्न हुआ था, परन्तु यह देखना आसान है कि स्वर्ग के सच्चे राजा यहोवा की उपासना के साथ एक देवी की उपासना जो मूर्तिपूजा को बढ़ावा देती है, यह परमेश्‍वर और अश्तोरेत के मिश्रण की ओर मार्गदर्शन करती है। और क्योंकि अश्तोरेत की आराधना में कामुकता (उपजाऊपन, प्रजनन की शक्ति, मन्दिर वेश्यावृत्ति) सम्मिलित थी, परिणामस्वरूप इससे होने वाले सम्बन्ध नैतिक रूप से भ्रष्ट मन को सम्मिलित करते हैं, जो कि स्वाभाविक रूप से यौन स्वभाव वाले होते हैं। स्पष्ट है कि, "स्वर्ग की रानी" का विचार स्वर्ग के राजा की पत्नी या प्रेमिका के रूप में मूर्तिपूजा आधारित और बाइबल सम्मत नहीं है।

स्वर्ग की कोई रानी नहीं है। स्वर्ग की रानी कभी नहीं रही है। निश्चित रूप से स्वर्ग का राजा, सर्वशक्तिमान यहोवा, प्रभुओं का प्रभु है। वह अकेले ही स्वर्ग में शासन करता है। वह अपने शासन को या अपने सिंहासन को या किसी के साथ अपने अधिकार को साझा नहीं करता है। यह विचार है कि यीशु की माँ, मरियम, स्वर्ग की रानी है, का कोई पवित्रशास्त्रीय आधार नहीं है, जो कि रोमन कैथोलिक चर्च के पोपों और पुरोहितों की घोषणाओं की उपज है। जबकि मरियम निश्चित रूप से एक भक्त युवा स्त्री थी, जिसे परमेश्‍वर ने इस संसार के उद्धारकर्ता को जन्म देने के लिए चुना था, वह किसी भी तरह से देवी नहीं थी, न ही वह पापरहित थी, न ही उसकी पूजा की जाती है, या उसकी श्रद्धा की जानी चाहिए, वह पूजनीय है, या उससे प्रार्थना की जानी चाहिए। परमेश्‍वर के सभी अनुयायी आराधना को प्राप्त करने से मना करते हैं। पतरस और प्रेरितों ने स्वयं की पूजा किए जाने से इन्कार कर दिया था (प्रेरितों के काम 10:25-26; 14:13-14)। पवित्र स्वर्गदूतों ने भी स्वयं के लिए आराधना लेने से इनकार कर दिया था (प्रकाशितवाक्य 19:10; 22:9)। प्रतिक्रिया सदैव एक जैसी ही रही है: "परमेश्‍वर की ही आराधना करो!" किसी की पूजा, श्रद्धा या आराधना को प्रस्तुत करना, परन्तु यह मूर्तिपूजा से कम नहीं है। मरियम के स्वयं के शब्द "बड़ाई" के हैं (लूका 1:46-55), जो यह प्रगट करते हैं कि मरियम ने कभी भी स्वयं को "पवित्र" और आराधना की प्राप्ति के योग्य नहीं सोचा था, अपितु इसकी अपेक्षा उसने उद्धार के लिए परमेश्‍वर के अनुग्रह के ऊपर ही भरोसा किया: "और मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करने वाले परमेश्‍वर से आनन्दित हुई।" केवल पापियों को एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता है, और मरियम ने स्वयं के लिए इस आवश्यकता की पहचान की थी।

इसके अतिरिक्त, स्वयं यीशु ने एक छोटी सी ताड़ना उस स्त्री को दी थी, जो उसके सामने पुकार उठी थी, "धन्य है वह गर्भ जिसमें तू रहा और स्तन जो तू ने चूसे" (लूका 11:27), उसे उत्तर देते हुए, "परन्तु धन्य वे हैं जो परमेश्‍वर का वचन सुनते और मानते हैं।" ऐसा करने से उसने मरियम की आराधना को एक उद्देश्य के रूप में आगे बढ़ने की प्रवृत्ति को कम कर दिया। वह निश्चित रूप से कह सकता था, "हाँ, स्वर्ग की रानी धन्य हो!" परन्तु उसने ऐसा नहीं किया। वह उसी सत्य की पुष्टि कर रहा था, जिसकी बाइबल पुष्टि करती है कि — स्वर्ग की कोई रानी नहीं है, और "स्वर्ग की रानी" के लिए केवल बाइबल के सन्दर्भ में एक मूर्तिपूजक, झूठे धर्म की देवी को ही सन्दर्भित किया गया है।

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