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प्रश्न

बाइबल के अनुसार मनुष्य का उद्देश्य क्या है?

उत्तर


बाइबल बहुतायत के साथ स्पष्ट करती है कि परमेश्‍वर ने मनुष्य रचा है और उसने उसे अपनी महिमा के लिए रचा है (यशायाह 43:7)। इसलिए, बाइबल के अनुसार मनुष्य का अन्तिम उद्देश्य परमेश्‍वर की महिमा करना है।

उत्तर देने के लिए एक कठिन प्रश्‍न, कदाचित् यह है कि परमेश्‍वर की महिमा करना किस के जैसे दिखाई देता है? भजन संहिता 100:2-3 में, हमें आनन्द के साथ परमेश्‍वर की आराधना करने के लिए कहा गया है और "आनन्द से यहोवा की आराधना करो! जयजयकार के साथ उसके सम्मुख आओ! निश्‍चय जानो कि यहोवा ही परमेश्‍वर है! उसी ने हम को बनाया, और हम उसी के हैं; हम उसकी प्रजा, और उसकी चराई की भेड़ें हैं " परमेश्‍वर की महिमा करने का अंश कुछ ऐसा दिखाई देता है कि यह स्वीकार करना है कि परमेश्‍वर कौन है (आराधना आरम्भ करने वालों के लिए, हमारा सृष्टिकर्ता) और जो कुछ वह है, उसके लिए उसकी स्तुति और आराधना करना।

हम अपने जीवन को परमेश्‍वर के साथ अपने सम्बन्ध और विश्‍वासयोग्यता भरी सेवा में जीने से भी परमेश्‍वर की महिमा करने के द्वारा अपने उद्देश्य को पूरा करते हैं (1 शमूएल 12:24; यूहन्ना 17:4)। क्योंकि परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में रचा है (उत्पत्ति 1:26-27), मनुष्य का उद्देश्य उससे अलग होकर पूरा नहीं किया जा सकता है। राजा सुलैमान ने अपनी विलासता में जीवन यापन करने का प्रयास किया, तौभी अपने जीवन के अन्त में उसने यह निष्कर्ष निकाला कि एकमात्र सार्थक जीवन परमेश्‍वर के प्रति सम्मान और आज्ञाकारिता है (सभोपदेशक 12:13-14)।

हमारी पापी अवस्था के कारण, पाप हमें परमेश्‍वर से अलग करता है और हमें स्वयं से उसकी महिमा देने को असम्भव बना देता है। परन्तु यीशु मसीह के बलिदान के माध्यम से परमेश्‍वर के साथ हमारे सम्बन्ध का समाधान किया जाता है — हमारा पाप क्षमा किया जाता है और यह अब परमेश्‍वर और हमारे मध्य में एक बाधा को उत्पन्न नहीं करता है (रोमियों 3:23-24)।

रूचिपूर्ण बात यह है कि हम परमेश्‍वर की महिमा करने में सक्षम हैं, क्योंकि उसने हमें पहले से ही महिमा दे दी थी। दाऊद ने भजन संहिता 8:4-6 में लिखा है कि, "तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले? क्योंकि तू ने उसको परमेश्‍वर से थोड़ा ही कम बनाया है, और महिमा और प्रताप का मुकुट उसके सिर पर रखा है। तू ने उसे अपने हाथों के कार्यों पर प्रभुता दी है; तू ने उसके पाँव तले सब कुछ कर दिया है।" (यही कुछ इब्रानियों 2:6-8 में भी दोहराया जाता है।) यह वचन एक और उद्देश्य: पृथ्वी के ऊपर प्रभुत्व को बताता है, जिसे परमेश्‍वर ने मनुष्य को दिया है (उत्पत्ति 1:28-29)। तौभी, यह केवल परमेश्‍वर के साथ सही सम्बन्ध के माध्यम से ठीक रीति से से पूरा किया जा सकता है।

जितना अधिक हम अपने सृष्टिकर्ता को जानते हैं और जितना अधिक हम उस से प्रेम करते हैं (मत्ती 22:37-38), उतना ही अधिक हम उत्तम रीति से यह समझते हैं कि हम कौन हैं और हमारा उद्देश्य क्या है। हम उस की महिमा को ले आने के लिए बनाए गए थे। परमेश्‍वर के पास प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनूठी योजनाएँ और उद्देश्य हैं (भजन संहिता 139:13-16), परन्तु हम यह जान सकते हैं कि यह योजनाएँ कैसे भी क्यों न दिखाई देती हैं, वे अन्त में उसकी महिमा के परिणाम को ही लाएंगी (नीतिवचन 3:6; 1 कुरिन्थियों 10:31)।

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