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प्रश्न

प्रक्रियावादी धर्मविज्ञान क्या है?

उत्तर


प्रक्रियावादी धर्मविज्ञान इस दर्शन पर आधारित है कि संसार में विद्यमान एकमात्र परम सत्ता ही परिवर्तनीय है। इसलिए, परमेश्वर, भी निरन्तर परिवर्तित हो रहा है। बाइबल स्पष्ट रूप से बताती है कि प्रक्रियावादी धर्मविज्ञान झूठा है। यशायाह 46:10 परमेश्वर के प्रभुता सम्पन्न होने और अपरिवर्तनीय स्वभाव के बारे में स्पष्ट है: "मैं तो अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया हूँ जो अब तक नहीं हुई। मैं कहता हूँ, ‘मेरी युक्‍ति स्थिर रहेगी और मैं अपनी इच्छा को पूरी करूँगा।'" यीशु मसीह, त्रिएक्तव का दूसरा व्यक्ति, समान रूप से अपरिवर्तनीय है: "यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक–सा है" (इब्रानियों 13:8)। बाइबल स्पष्ट है कि उसकी योजनाएँ लोगों के स्वांग के अनुसार नहीं बदलती हैं (भजन संहिता 33:11)। उसमें "अदल बदल के कारण उस पर छाया नहीं पड़ती है" (याकूब 1:17)। परन्तु प्रक्रियावादी धर्मविज्ञान बाइबल को प्रेरणा प्रदत्त या हमारे लिए अन्तिम अधिकार होने के रूप में स्वीकार नहीं करता है।

बाइबल, परमेश्वर के कई गुणों, योग्यताओं और विशेषताओं को व्यक्त करती है। इनमें उसकी पवित्रता (यशायाह 6:3; प्रकाशितवाक्य 4:8); प्रभुता सम्पन्न होने (1 इतिहास 29:11; नहेम्याह 9:6; भजन संहिता 83:18; यशायाह 37:20); एकता (व्यवस्थाविवरण 6:4); सर्वव्यापी होना (भजन संहिता 139:7-10); सर्वज्ञता (अय्यूब 224:24; भजन संहिता 147:4-5); सर्वसामर्थी होना (अय्यूब 42:1-2); स्व-अस्तित्व में होना (निर्गमन 3:14; भजन संहिता 36:9); अनन्त कालीन होना (भजन संहिता 90:2; हबक्कूक 1:12); अपरिवर्तनीयता (भजन संहिता 33:11; याकूब 1:17); सिद्धता (व्यवस्थाविवरण 32:3-4); असीमितता (अय्यूब 5:9; 9:10); सत्य (व्यवस्थाविवरण 32:4; भजन संहिता 86:15); प्रेमी (1 यूहन्ना 4:8, 16); धर्मी (भजन संहिता 11:7; 119:137); विश्वासयोग्य (व्यवस्थाविवरण 7:9; भजन संहिता 89:33); दयालु (भजन संहिता 102: 17); अनुग्रहकारी (निर्गमन 22:27; नहेम्याह 9:17, 31; भजन संहिता 86:15; 145:17); न्यायी (भजन 111:7; यशायाह 45:21); और छुटकारा देने वाला (अय्यूब 23:13; नीतिवचन 21:1) सम्मिलित हैं। परमेश्वर संसार में इन का उपयोग करता है और आज भी इन सभों का सक्रिय रूप से अभ्यास करता है। परमेश्वर उसकी सारी रचना के ऊपर सर्वोच्च है, तौभी वह व्यक्तिगत और जानने योग्य है।

प्रक्रियावादी धर्मविज्ञान यीशु मसीह के ईश्वरत्व को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहता है कि यीशु किसी अन्य व्यक्ति की तुलना में आन्तरिक रूप से भिन्न नहीं है। इसके अतिरिक्त, प्रक्रियावादी धर्मविज्ञान का मानवतावादी दर्शन यह शिक्षा देता है कि मानव जाति को उद्धार की आवश्यकता नहीं है, जबकि बाइबल स्पष्ट है कि मसीह के बिना, मनुष्य आशारहित हो खोया हुआ रहता है और अनन्त काल के लिए नरक में चला जाता है। पवित्रशास्त्र शिक्षा देता है कि यीशु मसीह परमेश्वर है (यशायाह 9:6-7; मत्ती 1:22-23; यूहन्ना 1:1, 2, 14; 20:28; प्रेरितों के काम 16:31, 34; फिलिप्पियों 2:5-6; कुलुस्सियों; 2:9; तीतुस 2:13; इब्रानियों 1:8; 2 पतरस 1:1) और पापियों के लिए उसकी ओर से दी गई मृत्यु के बिना (रोमियों 3:23; 6:23; 2 कुरिन्थियों 5:21) कोई भी कभी भी बचाया नहीं जा सकता है (यूहन्ना 1:12; 3:18; 3:36; 14:6; प्रेरितों के काम 4:10-12; 16:30-31)।

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