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प्रश्न

क्या यीशु के नाम में सामर्थ्य है?

उत्तर


यीशु के नाम से सम्बन्धित कोई भी सामर्थ्य यीशु नाम के व्यक्ति में से ही उत्पन्न होती है। जब हम "यीशु के नाम में विश्वास करते हैं," तब हम क्रूस के ऊपर मसीह के द्वारा पूरे किए हुए काम पर भरोसा करते हैं (1 यूहन्ना 5:13)। यीशु कोई जादूई शब्द नहीं है। उसके नाम में दिए हुए शब्दों की व्यवस्था के बारे में कुछ विशेष नहीं है। यदि यीशु शरीर में परमेश्वर न होता, जिसने एक सिद्ध जीवन को व्यतीत किया, उन सभी के पापों के लिए मर गया जो उस पर विश्वास करेंगे, और फिर से उठा, तो हम उसके नाम के बारे में बात भी नहीं करते होते। यीशु के नाम में कोई भी सामर्थ्य जिस तक मसीहियों की पहुँच है, उस सच्चे विश्वास से आती है, जो यीशु में पाया जाता है और इससे कि वह पापियों के लिए क्या करता है।

यीशु के नाम में कोई जादुई सामर्थ्य नहीं है — केवल यीशु मसीह में ही सामर्थ्य है। मात्र "यीशु" के नाम को पुकारने से, एक व्यक्ति किसी विशेष सामर्थ्य, परिणाम, या परमेश्वर के साथ सही दृष्टिकोण में खड़े होने की अपेक्षा नहीं कर सकता है। यद्यपि, यीशु का नाम, बहुमूल्य है और अपने पूरे अर्थ को देता है। हम मत्ती 1:20–21 में इसका एक संकेत देखते हैं, जब एक स्वर्गदूत ने यूसुफ से कहा कि, "हे यूसुफ! दाऊद की संतान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ ले आने से मत डर, क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा।"

यीशु के व्यक्तित्व, और यीशु के नाम में परमेश्वर की बचाने वाली, चँगा करने वाली, सुरक्षा प्रदान करने वाली, धर्मी ठहराने वाली, छुटकारे देने वाली सामर्थ्य वास करती है, और यीशु उसका नाम है। और कैसे ब्रह्माण्ड के सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सर्वसामर्थी सृष्टिकर्ता ने अपनी सामर्थ्य का उपयोग किया? अपने पुत्र के माध्यम से, जिसने दीन परिस्थितियों में जन्म लिया — जो कि राजा की सारी सामर्थ्य के होते हुए भी एक शिशु था (लूका 2:11-12)। यीशु ने पापियों को बचाने के लिए अपना जीवन को दे दिया, और उसने अपने अधिकार को फिर से अपने जी उठने के द्वारा प्रयोग किया (यूहन्ना 10:18) ताकि कोई भी जो विश्वास करते हुए उसके नाम को पुकारे, वह अपने पापों की क्षमा और अनन्त काल के लिए उद्धार को प्राप्त कर सके (रोमियों 10:13)। यह उद्धारकर्ता की पुनरुत्थान की सामर्थ्य है — जो अकेले ही उसके नाम के पीछे पाए जाने वाली सामर्थ्य है।

यह यीशु का नाम है, जिसमें परमेश्वर हमें प्रार्थना करने के लिए निर्देश देता है (यूहन्ना 16:23–24)। विश्वासियों को यीशु के नाम में प्रार्थना करने के लिए आमन्त्रित किया जाता है, इस आशा के साथ कि परमेश्वर प्रार्थना का उत्तर देता है (यूहन्ना 14:13-14)। यीशु के नाम में प्रार्थना करने का अर्थ उसके अधिकार के साथ प्रार्थना करना है (लूका 10:19) और परमेश्वर पिता को हमारी प्रार्थनाओं पर कार्य करने के लिए विनती करनी है, क्योंकि हम उसके पुत्र, यीशु के नाम पर विश्वास करते हुए उसके पास आते हैं। यीशु के नाम में प्रार्थना करने का अर्थ यीशु के चरित्र और उसकी इच्छा के अनुरूप प्रार्थना करना है। यीशु के नाम में प्रार्थना करने से परमेश्वर की सामर्थ्य में हमारा विश्वास तब प्रदर्शित होता है, जब हम मानते हैं कि यीशु का नाम अक्षरों के समूह से कहीं अधिक बढ़कर है, परन्तु वास्तव में वह कौन है, यह उसका प्रतिनिधित्व करता है।

पहली सदी के इस्राएल में यीशु एक बहुत ही सामान्य नाम था। केवल एक बात थी, जो नासरत के यीशु के नाम से भिन्न है, वह यह कि वह ऐसा व्यक्ति है, जिससे वह सम्बन्धित है और उसने हमारे लिए क्या किया है। मसीह में "ईश्‍वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है" (कुलुस्सियों 2:9)। यीशु "उसकी महिमा का प्रकाश और उसके तत्व की छाप है" (इब्रानियों 1:3)। परन्तु जहाँ उसके प्रभुत्व के प्रति कोई विश्वास नहीं, कोई सम्बन्ध नहीं, या कोई समर्पण नहीं होता, नाम यीशु एक शब्द के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता है।

हम यीशु के नाम का दुरुपयोग होने के प्रलोभन से स्वयं को बचाने के प्रति बुद्धिमान हैं। बाइबल इफिसुस में सात यहूदियों के एक समूह की रूचिपूर्ण कहानी बताती है, जिन्होंने यीशु के नाम का उपयोग करके दुष्टात्माओं को बाहर निकालने का प्रयास किया था। ये लोग यीशु को नहीं जानते थे। वे मसीही विश्वासी नहीं थे। इसकी अपेक्षा उन्होंने इस अवसर को दूसरों से प्रशंसा पाने और स्वयं के लिए नाम कमाने के रूप में उपयोग किया था। उन्होंने स्वयं को परमेश्वर के प्रति नहीं सौंपा था और इस कारण दुष्टात्माओं को भगाने में विफल रहे थे (याकूब 4:7)। एक बार, एक दुष्टात्मा ने भूत निकालने वाले सात लोगों का मज़ाक उड़ाया, जो अनिवार्य रूप से "यीशु" के नाम का उपयोग करके अपने जादू को चलाने का प्रयास कर रहे थे। दुष्टात्मा ने उन्हें यह कहते हुए चिढ़ाया कि: "यीशु को मैं जानती हूँ, और पौलुस को भी पहचानती हूँ, परन्तु तुम कौन हो?" और उस मनुष्य ने जिसमें दुष्‍ट आत्मा थी उन पर लपककर और उन्हें वश में लाकर, उन पर ऐसा उपद्रव किया कि वे नंगे और घायल होकर उस घर से निकल भागे (प्रेरितों के काम 19:13-16)। इन सात लोगों ने अपने लाभ के लिए यीशु के नाम के अधिकार का दुरुपयोग करने का प्रयास किया था, परन्तु हम एक ऐसे परमेश्वर की सेवा करते हैं, जिसके साथ चालाकी काम नहीं करती है और जिसे मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है (अय्यूब 12:16)।

यीशु का नाम, जो उसके लोगों को उनके पापों से बचाता है, जो स्वयं सामर्थी सृष्टिकर्ता की सारी सामर्थ्य को दर्शाता है। यीशु विश्वासियों को सेवा करने, काम करने, और उसके नाम में प्रार्थना करने का अधिकार देता है, जब हम यीशु की बचाए जाने वाली सामर्थ्य और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करते हुए विश्वास करते हैं। यीशु, पिता के अधिकार के साथ, पापियों को बचाने के लिए सामर्थ्य का प्रयोग किया, और उसका नाम ही एकमात्र ऐसा नाम है, जिसे हम उद्धार के लिए पुकार सकते हैं (प्रेरितों के काम 4:12)। परमेश्वर के परिवार में गोद लिए हुए पुत्रों और पुत्रियों के रूप में, मसीही विश्वासी यीशु के व्यक्तित्व में विश्वास के माध्यम से परमेश्वर के बचाए जाने वाले अनुग्रह का अनुभव करते हैं। जब हम उसे पुकारते हैं, तो हम उसकी सामर्थ्य में भाग लेते हैं और पाते हैं कि "यहोवा का नाम दृढ़ गढ़ है, धर्मी उसमें भागकर सब दुर्घटनाओं से बचता है" (नीतिवचन 18:10)।

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क्या यीशु के नाम में सामर्थ्य है?
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