प्रश्न
परमेश्वर ने पुराने नियम में इतनी अधिक भयानक हिंसा को क्यों अन्देखा कर दिया है?
उत्तर
यह तथ्य कि परमेश्वर ने पुराने नियम में सम्पूर्ण जातियों की हत्या की आज्ञा दी थी, कुछ समय के लिए मसीही विश्वास के विरोधियों की ओर से कठोर आलोचना का विषय रहा है। पुराने नियम में हिंसा निर्विवाद थी। प्रश्न यह है कि क्या पुराने नियम में पाई जाने वाली हिंसा परमेश्वर के द्वारा सही ठहराई गई और अन्देखी की गई है। नास्तिक रिचर्ड डॉकिंस ने अपनी सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तक, द गॉड डिलूश़न अर्थात् परमेश्वर का भम्र में पुराने नियम के परमेश्वर को, "बदला लेने वाला, खून का प्यासा और जाति का संहार करने वाला" के रूप में सन्दर्भित किया है। पत्रकार क्रिस्टोफर हिचेंस की शिकायत है कि पुराने नियम में "अन्धाधुंध नरसंहार" के लिए एक वारंट जारी किया गया है। मसीहियत के अन्य आलोचकों ने भी इसी तरह के आरोप लगाए हैं, जो यहोवा परमेश्वर के ऊपर "मानवता के विरूद्ध अपराध" किए जाने का दोष लगाते हैं।
परन्तु क्या ये आलोचनाएँ मान्य हैं? क्या पुराने नियम का परमेश्वर एक "दुराचारी दैत्य" है जो मनमाने तरीके से निर्दोष पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों का नरसंहार करता है? क्या कनानियों और अमालेकियों के पापों के बारे में उसकी प्रतिक्रिया "नस्लीय शुद्धता" का एक भयानक रूप थी? या यह सम्भव है कि इन जातियों के विनाश के आदेश के लिए परमेश्वर के पास नैतिक रूप से पर्याप्त कारण हो सकते थे?
कनानी संस्कृति का मूल ज्ञान इसकी अन्तर्निहित नैतिक दुष्टता को प्रकट करता है। कनानी लोग क्रूर, आक्रामक लोग थे जो पशुगमन, पारिवारिक अनाचार और यहाँ तक कि बच्चों के बलिदान जैसे कार्यों में लगे हुए थे। कामोत्तेजक यौन क्रियाएँ उनके नियम कानून थे। कनानी लोगों का पाप इतना अधिक घिनौना था कि परमेश्वर ने कहा कि, "देश अपने निवासियों को उगल देता" है (लैव्यव्यवस्था 18:25)। तौभी, विनाश को कनानी लोगों की तुलना में कनान के धर्म के ऊपर अधिक निर्देशित किया गया (व्यवस्थाविवरण 7:3–5, 12:2-3)। न्याय नस्लीय शुद्धता किए जाने के लिए प्रेरित नहीं था। यरीहो में राहाब की तरह व्यक्तिगत् कनानी लोग अभी भी दया को प्राप्त कर सकते थे यदि वे पश्चाताप का अनुसरण करते हैं (यहोशू 2)। परमेश्वर की इच्छा है कि दुष्ट मरने की अपेक्षा अपने पाप से मुड़ें (यहेजकेल 18:31-32, 33:11)।
राष्ट्रीय पापों से निपटने के अतिरिक्त, परमेश्वर ने कनान की विजय का उपयोग एक धार्मिक/ऐतिहासिक सन्दर्भ की सृष्टि करने के लिए किया था जिसमें वह अन्त में संसार के लिए मसीह को देने का परिचय देता है। यह मसीह न केवल इस्राएल के लिए, अपितु कनान सहित इस्राएल के शत्रुओं को भी मुक्ति दिलाएगा (भजन संहिता 87:4-6; मरकुस 7:25-30)।
यह स्मरण रखना चाहिए कि परमेश्वर ने कनानी लोगों को अपने बुरे तरीकों से पश्चाताप करने के लिए पर्याप्त समय — अर्थात् 400 से अधिक वर्षों को दिया! इब्रानियों की पुस्तक हमें बताती है कि कनानी लोग "अवज्ञाकारी" थे, जिसका अर्थ है कि उनके पक्ष में नैतिक दोष पाया जाता है (इब्रानियों 11:31)। कनानी लोग परमेश्वर की सामर्थ्य के बारे में जानते थे (यहोशू 2:10–11; 9:9) और पश्चाताप की खोज कर सकते थे। दुर्लभ उदाहरणों को छोड़कर, उन्होंने कड़वे अन्त को पाने तक परमेश्वर के विरुद्ध अपने विद्रोह को बनाए रखा।
परन्तु क्या परमेश्वर ने न लड़ने वाले-योद्धाओं को मारने के लिए भी इस्राएलियों को आज्ञा नहीं दी थी? बाइबल का विवरण स्पष्ट करता है कि उसने दी थी। यहाँ एक बार फिर से, हमें स्मरण रखना चाहिए कि, जबकि यह सच है कि कनानी औरतें लड़ती नहीं थीं, इसका किसी भी तरह से यह अर्थ नहीं है कि वे निर्दोष थीं, क्योंकि गिनती 25 में उनका कामोत्तेजना से भरा हुआ व्यवहार इंगित करता है (गिनती 25:1-3)। यद्यपि, यह प्रश्न अभी भी बना हुआ है: बच्चों के बारे में क्या कहा जाए? यह उत्तर देने के लिए एक आसान प्रश्न नहीं है, परन्तु हमें कई बातों को ध्यान में रखना चाहिए। पहला, कोई भी मानवीय व्यक्ति (शिशुओं सहित) वास्तव में निर्दोष नहीं है। पवित्रशास्त्र सिखाता है कि हम सभी ने पाप में जन्म लिया है (भजन संहिता 51:5; 58:3)। इसका तात्पर्य यह है कि सभी लोग आदम के पाप के कारण किसी न किसी तरह से नैतिक रूप से दोषी हैं। शिशु भी पाप के कारण उतना ही दोषी हैं जितना कि वयस्क हैं।
दूसरा, परमेश्वर सभी जीवन के ऊपर सम्प्रभु है और जब भी उसे सही प्रतीत होता वह इसे ले लेता है। परमेश्वर और केवल परमेश्वर ही जीवन दे सकता है, और परमेश्वर को अकेले ही यह अधिकार है कि वह जब चाहे उसे वापस ले सकता है। वास्तव में, वह अन्त में, प्रत्येक व्यक्ति को जीवन से मृत्यु की ओर ले जाता है। हमारी जीवन हमारे साथ आरम्भ करने के लिए नहीं अपितु परमेश्वर के साथ करने के लिए है। जबकि हमारे लिए किसी का जीवन लेना गलत है, केवल उन उदाहरणों को छोड़कर जब मृत्युदण्ड, युद्ध और आत्म-रक्षा की बात आती है, इसका अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर के लिए ऐसा करना गलत है। हम सहज बोध से इसे पहचानते हैं जब हम किसी व्यक्ति या अधिकार पर दोष लगाते हैं जो मानवीय जीवन को ऐसे ले लेते हैं मानो "परमेश्वर की भूमिका" को पूरा कर रहे हो। परमेश्वर किसी के जीवन का विस्तार एक दिन अधिक करने के लिए बाध्य नहीं है। हम कैसे और कब मरते हैं, यह पूरी तरह उसी पर निर्भर है।
तीसरा, एक तर्क यह दिया जा सकता है कि शिशुओं और बच्चों को छोड़कर सभी कनानियों के जीवन को लेना परमेश्वर के लिए क्रूरता रही होगी। अपने माता-पिता के संरक्षण और समर्थन के बिना, शिशुओं और छोटे बच्चों को भूखमरी के कारण वैसे भी मौत का सामना करना पड़ता था। प्राचीन निकट पूर्व में एक अनाथ के लिए जीवित रहने की सम्भावना अच्छी तरह से नहीं पाई जाती थी।
अन्त में, कनान के बच्चे सम्भवतः उन दुष्ट धर्मों के प्रति सहानुभूति के साथ बड़े हुए होंगे, जिनके माता-पिता ने इनका अभ्यास किया था। यह कनान में मूर्तिपूजा और विकृत संस्कृति के समाप्त होने का समय था, और परमेश्वर इसे समाप्त करने के लिए इस्राएल का उपयोग करना चाहता था। इसके अतिरिक्त, कनान के अनाथ बच्चे स्वाभाविक रूप से इस्राएलियों से नाराज होते हुए बड़े हुए होंगे। सम्भवतः, कुछ ने बाद में अपने माता-पिता के "अन्यायपूर्ण" व्यवहार का बदला लेने और मूर्तिपूजा के लिए कनान में वापस जाने की मांग की होगी।
कनान में मारे गए शिशुओं की शाश्वत स्थिति पर विचार करना भी योग्य है। यदि परमेश्वर ने उन्हें नैतिक जवाबदेही की आयु से पहले ही ले लिया था, तो वे सीधे स्वर्ग गए होंगे (जैसा कि हम मानते हैं)। वे बच्चे कहीं अधिक उत्तम स्थान पर हैं, इसकी तुलना में कि वे कनानी लोगों की तरह वयस्क होते हुए रहते।
निश्चित रूप से, पुराने नियम में परमेश्वर द्वारा हिंसा की आज्ञा का विषय समझने के लिए कठिन है। तथापि, हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि परमेश्वर चीजों को अनन्त दृष्टिकोण से देखता है, और उसके तरीके हमारे तरीके नहीं हैं (यशायाह 55:8–9)। प्रेरित पौलुस हमें बताता है कि परमेश्वर दयालु और कठोर दोनों ही है (रोमियों 11:22)। यद्यपि यह सच है कि परमेश्वर के पवित्र चरित्र की मांग यह है कि पाप को दण्डित किया जाए, उसकी कृपा और दया उन लोगों की ओर विस्तारित होती है जो पश्चाताप करने और बचाए जाने के लिए तैयार होते हैं। कनानी नरसंहार हमें एक गम्भीरता भरा स्मरण दिलाता है कि, जबकि हमारा परमेश्वर दयालु और अनुग्रहकारी है, तथापि वह पवित्रता और क्रोध का ईश्वर भी है।
English
परमेश्वर ने पुराने नियम में इतनी अधिक भयानक हिंसा को क्यों अन्देखा कर दिया है?