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प्रश्न

एक मसीही विश्‍वासी को उस समय क्या करना चाहिए जब वह एक ऐसे क्षेत्र में रहता/रहती है, जहाँ कोई कलीसिया नहीं है?

उत्तर


संसार में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहाँ मसीही विश्‍वासियों के ऊपर आराधना के सम्बन्ध में कब, कहाँ और कैसे इत्यादि को लेकर प्रतिबन्ध लगाए जाते हैं। कुछ देशों में, किसी भी रूप में मसीही आराधना की कोई अनुमति नहीं दी जाती है और कुछ दमनकारी सरकारें केवल मसीहियों को उनके विश्‍वास की घोषणा या उसका पालन करने के कारण ही उन्हें ही गिरफ्तार कर लेती और मार देती हैं। ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले मसीहियों को यह सुनिश्‍चित करने के लिए बहुत अधिक प्रयास करना चाहिए कि वे किसी भी प्रकार के कलीसियाई वातावरण से दूर और परमेश्‍वर के प्रति शत्रुता से भरे हुए देश में रहते हुए भी अपने विश्‍वास में परिपक्व रहें और आगे की ओर बढ़ते रहें।

क्योंकि एक मसीही विश्‍वासी के लिए एक ऐसे देश में जो बाइबल या बाइबल सम्बन्धी अध्ययन सामग्री को रखने की अनुमति प्रदान करता है, वचन का कठिन, दैनिक अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है, जब विशेष रूप से अन्य मसीही विश्‍वासियों के साथ सहभागिता सम्भव नहीं है। प्रत्येक दिन व्यक्तिगत् रूप से परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने और प्रार्थना करने के लिए समय बिताना आवश्यक है। उन देशों में विश्‍वासियों के लिए जहाँ बाइबिल अवैध हैं, इन्टरनेट सहायता कर सकता है। कई वेबसाइटें बाइबल तक पहुँच को प्रदान करती हैं। विश्‍वासियों के साथ संवाद स्थापित करने और एक दूसरे को प्रोत्साहित करने के लिए यहाँ तक कि ऑनलाइन संगति समूह भी उपलब्ध हैं। रेडियो प्रसारण जो परमेश्‍वर के वचन को सिखाते हैं, पूरे संसार के अधिकांश देशों में उपलब्ध हैं, चाहे उन्हें बड़ी दूरी से शॉर्टवेव के माध्यम से ही क्यों न प्रसारित किया जाना पड़े।

एक प्रतिबन्धित क्षेत्र में अन्य विश्‍वासियों को ढूँढना विश्‍वासियों के लिए परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने और प्रार्थना करने के लिए एक "भूमिगत" गृह समूह को आरम्भ कर सकता है। चीन में घरेलू कलीसियाई आन्दोलन ने सताव का सामना करने वाले मसीहियों का एक दृढ़ और जीवन्त समुदाय बना दिया है। मध्य पूर्व के देशों में जिन्होंने भूमिगत घरेलू समूहों को आरम्भ किया है, उन्होंने अपने क्षेत्र में रहने वाले अंग्रेजी बोलने वाले विदेशी श्रमिकों के मध्य परमेश्‍वर के वचन के प्रति बहुत अधिक भूख को पाया है। इन विश्‍वासयोग्य विश्‍वासी प्रत्येक सप्ताह बैठक के स्थान को बदल लेते हैं, निमन्त्रण को केवल मुँह-के-शब्दों तक ही सीमित रखते हैं और कठिन और शत्रुतापूर्ण समय में भी अपने विश्‍वास में बहुत अधिक बढ़ोतरी को कर पाए हैं।

परमेश्‍वर में पाए जाने वाले मसीह के प्रेम से कोई भी परमेश्‍वर की सन्तान को अलग नहीं कर सकता है (रोमियों 8:38-39)। यहाँ तक कि जब एक मसीही विश्‍वासी अन्य विश्‍वासियों से अलग होता है, तब भी वह परमेश्‍वर के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध को बनाए रख सकता है और परमेश्‍वर उसे उत्साहित और दृढ़ बनाए रखेगा। विश्‍वासियों को पवित्र आत्मा का वरदान दिया गया है, जो हमारे भीतर वास करता है (इफिसियों 1:13-14), और सहायक जो हमें कठिन परिस्थितियों में सहायता प्रदान करेगा। मसीही विश्‍वास का इतिहास उन विश्‍वासियों की कहानियों से भरा है, जिन्होंने सबसे बुरे सताव और कल्पना न किए जाने वाले अकेलेपन में भी दृढ़ता से भरे हुए विश्‍वास को बनाए रखा है। विश्‍वासियों के भीतर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य को कभी कम नहीं आंका जाना चाहिए।

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एक मसीही विश्‍वासी को उस समय क्या करना चाहिए जब वह एक ऐसे क्षेत्र में रहता/रहती है, जहाँ कोई कलीसिया नहीं है?
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