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प्रश्न

सास के साथ व्यवहार...?

उत्तर


एक हस्तक्षेप करने वाली सास जो अपनी बातों को पूरा करवाना चाहती है, तानाशाह होती है, और जो अपने बेटे/बेटी और दामाद/बहू के जीवन में घुसपैठ करती है, ऐसी होती है, जिसे बाइबल एक "अनुचित्त बातों" को बोलने वाला कहती है (1 तीमुथियुस 5: 13)। 1 तीमुथियुस के सन्दर्भ में शब्द "अनुचित्त" का अनुवाद जिस यूनानी शब्द से किया गया है, उसका अर्थ "दूसरे लोगों की बातों में स्वयं को नियुक्त किया पर्यवेक्षक" से है। पर्यवेक्षण अर्थात् देखरेख का कार्य ऐसा होता है, जिसमें कुछ माताएँ लगी हुई होती हैं, या कम से कम जिसके लिए दोषी ठहरती हैं। इस प्रकार का व्यवहार परेशान करने वाला, निराशा से भरा हुआ, और परिवार के लिए परमेश्‍वर की योजना के विपरीत होता है।

स्पष्ट यह है कि ऐसी स्थिति में गतिशीलता निराशाजनक होती है। एक सास इन बातों को इसलिए कर सकती है, क्योंकि परिवार में किसी ने उसे उसकी सीमाओं को नहीं बताया है। इसलिए, वह "धमकाने" वाली एक दबंग बन जाती है। कदाचित् वह यह भी महसूस नहीं करती कि वह कितनी अधिक तानाशाही और बिना अधिकार के प्रवेश करने वाली व्यक्ति है। यदि ऐसी बात है तो वातावरण में स्थायित्व लाने के लिए खुले-मन-से प्रेम भरा वार्तालाप करना ही सही होगा। यदि वह यह समझती है कि वह क्या कर रही है और उसे रोकने के पश्चात् भी वह उसे उद्देश्य के साथ करती है, तब वहाँ पर ऐसा कुछ नहीं रह जाता है, जिसे आप परिस्थितियों को परिवर्तित करने के लिए कर सकते हैं।

इस बात की चिन्ता किए बिना कि परिवार का पक्ष किस ओर है, यदि हस्तक्षेप आता है, तो यह विवाह की पवित्रता के ऊपर आक्रमण है और विवाह के लिए "छोडने और एक होने" के परमेश्‍वर निर्धारित आदेश का उल्लंघन करता है (उत्पत्ति 2:23-24)। एक पुरूष और स्त्री अपने जन्म देने वाले परिवारों को छोड़ देते हैं और एक नए परिवार का आरम्भ करते हैं और उन्हें एक दूसरे को प्रेम करना और सुरक्षा प्रदान करनी होती है। एक पति, जो अपनी माता या सास को अपने परिवार में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है, विवाह के लिए ठहराए हुए मापदण्ड के आदेश के अनुसार जीवन यापन नहीं कर रहा है, जिसे इफिसियो 5:25-33 में दिया गया है। सीमाओं को निर्धारित करने की आवश्यकता होती है और तब आने वाले प्रतिरोध का सामना करते हुए सीमाओं को बनाए रखना पड़ता है। वास्तविकता तो यह है कि लोग हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं, जैसा हम उन्हें करने की अनुमति देते हैं। यदि हम उन्हें अपने परिवार की पवित्रता को मिटाने देने की अनुमति देते हैं, तो वे लोग ऐसा ही करेंगे। किसी को नहीं, यहाँ तक कि हमारे विस्तारित परिवार के किसी भी सदस्य को हमारे परिवार की गोपनीयता में घुसपैठ करने का कोई अधिकार नहीं है, और इस गोपनीयता की रक्षा करने का दायित्व पति के ऊपर होता है। उसे धीरे-धीरे — परन्तु दृढ़ता के साथ — नेतृत्व के कार्य को अपने हाथों में लेते हुए अपनी सास को स्पष्ट रूप से समझा देना चाहिए कि वह जो कुछ कर रही है, वह गलत है और उसे आश्‍वस्त करना चाहिए कि ऐसा व्यवहार सहन नहीं किया जा सकता है। उसे अपनी सास को स्मरण दिलाना चाहिए कि परमेश्‍वर ने उसे ही अपने परिवार का दायित्व दिया है और उसमें से किसी भी दायित्व को उसके द्वारा त्यागना परमेश्‍वर की अवज्ञा करना है। उसे साथ ही अपनी सास को यह भी आश्‍वस्त कर देना चाहिए कि वह और उसकी पत्नी अब भी उससे प्रेम करते हैं, परन्तु यह सम्बन्ध अब परिवर्तित हो गया है और अब वह सम्बन्धों का प्रभारी है। परिवार के लिए परमेश्‍वर प्रदत्त यही रूपरेखा है, और इसी तरीके से अब आगे कार्य होगा। तब जोड़े को अपने इस संकल्प में स्थिर खड़े रहना चाहिए।

एक हस्तक्षेप करती हुई सास के बारे में हम कैसे अपनी प्रतिक्रिया को व्यक्त कर सकते हैं? हम एक निर्णय ले सकते हैं कि वह हमारी मन की शान्ति को दूर न करें। हम दूसरों के व्यवहार को परिवर्तित करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, परन्तु, हम जिस तरीके से उनके व्यवहार के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, यह हमारा निर्णय होता है। हम अन्य लोगों के कार्यों के अनुसार स्वयं को कार्य करने की अनुमति दे सकते हैं, या हम स्वयं को परमेश्‍वर को दे सकते हैं और उसे हमें आत्मिक रूप से दृढ़ करने के लिए उपयोग करने की अनुमति दे सकते हैं। यह हमारी ओर से इस तरह की परिस्थिति के प्रति हमारी प्रतिक्रिया है, जो हमारी निराशा को बढ़ावा देती है। हम केवल अपने स्वयं की शान्ति में होने वाले हस्तक्षेप को रोकने के लिए अपनी सास की गतिविधियों को अनुमति देकर भावनात्मक रूप से स्वयं के लिए मध्यस्थक हो सकते हैं। उसका व्यवहार हमारा दायित्व नहीं है; अपितु हमारी प्रतिक्रिया है।

अभिभावक और ससुराल के साथ सम्मान और प्रेम के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए, परन्तु हमें अपनी भावनाओं को उलझाए रखने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। शत्रुता को छोड़ने का सबसे अच्छा तरीका उसे एक सहयोगी बना लेना है। यह परमेश्‍वर के अनुग्रह के माध्यम से किया जाता है। मसीही विश्‍वासी सदैव क्षमा के अनुग्रह को प्रदान कर सकते हैं (इफिसियों 4:32)। यह सास को हस्तक्षेप करने से तो नहीं रोक सकता है, परन्तु यह दृढ़ता के साथ खड़े रहने के लिए शान्ति और सामर्थ्य के स्रोत को अवश्य प्रदान करेगा (इफिसियों 6:11-17)। मन की सच्ची शान्ति को प्राप्त करने का एकमात्र स्थान मसीह के द्वारा परमेश्‍वर के साथ व्यक्तिगत् सम्बन्ध की प्राप्ति है। केवल तब ही हम उसकी शान्ति में बने रहते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त कर लसकते हैं।

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