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प्रश्न

मसीह की व्यवस्था क्या है?

उत्तर


गलातियों 6:2 कहता है कि, "तुम एक दूसरे का भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरा करो" (वचन में अतिरिक्त जोर दिया गया है)। मसीह की व्यवस्था वास्तव में क्या है, और यह एक-दूसरे के बोझ उठाकर कैसे पूरी की जाती है? जबकि 1 कुरिन्थियों 9:21 में मसीह की व्यवस्था का भी उल्लेख किया गया है, बाइबल कहीं पर भी विशेष रूप से यह परिभाषित नहीं करती है कि मसीह की व्यवस्था क्या है। यद्यपि, बाइबल के अधिकांश शिक्षक मसीह की व्यवस्था के विषय में ऐसा समझते हैं, जिसे मसीह ने मरकुस 12:28-31 में कहा था कि, "... 'सबसे मुख्य आज्ञा कौन सी है?' यीशु ने उसे उत्तर दिया, 'सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है : "हे इस्राएल सुन! प्रभु हमारा परमेश्‍वर एक ही प्रभु है, और तू प्रभु अपने परमेश्‍वर से अपने सारे मन से, और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्‍ति से प्रेम रखना।" और दूसरी यह है, "तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।" इससे बड़ी और कोई आज्ञा नहीं।'"

मसीह की व्यवस्था, अपने सारे प्राण से परमेश्‍वर को प्रेम करना और अपने पड़ोसियों से ऐसे प्रेम करना है, जैसे हम स्वयं से प्रेम करते हैं। मरकुस 12:32-33 में, जिस शास्त्री ने प्रश्‍न किया था, यीशु ने उसे इस तरह से उत्तर दिया, "उससे सारे मन, और सारी बुद्धि, और सारे प्राण, और सारी शक्‍ति के साथ प्रेम रखना; और पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना, सारे होमबलियों और बलिदानों से बढ़कर है।" इसमें, यीशु और शास्त्री सहमत थे कि यह दो आदेश ही पूरे पुराने नियम की व्यवस्था के मूल हैं। पुराने नियम की व्यवस्था इन दो श्रेणियों "परमेश्‍वर से प्रेम करना" या "अपने पड़ोसी से प्रेम करने" में रखी जा सकती हैं।

नए नियम के विभिन्न वचनों में कहा गया है कि यीशु ने पुराने नियम की व्यवस्था को पूरा किया, इसे पूर्णता और निष्कर्ष तक पहुँचाया (रोमियों 10:4; गलातियों 3:23-25; इफिसियों 2:15)। पुराने नियम की व्यवस्था के स्थान पर, मसीही विश्‍वासियों को मसीह की व्यवस्था का पालन करना है। पुराने नियम की व्यवस्था में दी हुई 600 से अधिक व्यक्तिगत् आज्ञाओं को स्मरण रखने की अपेक्षा, मसीही विश्‍वासियों को केवल परमेश्‍वर से प्रेम करना और दूसरों से प्रेम करने के ऊपर ध्यान केन्द्रित करना है। यदि मसीही विश्‍वासी वास्तव में और पूरी तरह से इन दो आज्ञाओं का पालन करेंगे, तो हम उन सभी बातों को पूरा कर रहे होंगे, जिन्हें पूरा करना परमेश्‍वर के लिए हमारे द्वारा आवश्यक हैं।

मसीह ने हमें पुराने नियम की व्यवस्था की सैकड़ों आज्ञाओं की गुलामी से मुक्त किया है और इसकी अपेक्षा हमें प्रेम करने के लिए बुलाया है। पहला यूहन्ना 4:7-8 में घोषित किया गया है कि, "हे प्रियो, हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम परमेश्‍वर से है। जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्‍वर से जन्मा है और परमेश्‍वर को जानता है। जो प्रेम नहीं रखता वह परमेश्‍वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्‍वर प्रेम है।" पहला यूहन्ना 5:3 इसी बात के विषय में और कुछ जोड़ता है कि, "क्योंकि परमेश्‍वर से प्रेम रखना यह है कि हम उसकी आज्ञाओं को मानें; और उसकी आज्ञाएँ कठिन नहीं।"

कुछ लोग पाप करने के लिए इस तथ्य को बहाने के रूप में उपयोग करते हैं कि हम पुराने नियम की व्यवस्था के अधीन नहीं हैं। प्रेरित पौलुस रोमियों में इस विषय को सम्बोधित करता है। "तो क्या हुआ? क्या हम इसलिये पाप करें कि हम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन् अनुग्रह के अधीन हैं? कदापि नहीं!" (रोमियों 6:15)। मसीह के अनुयायी होने के कारण, पाप से बचना परमेश्‍वर को प्रेम करने और दूसरों के साथ प्रेम करने से प्राप्त किया करना चाहिए। प्रेम हमारी प्रेरणा होना चाहिए। जब हम हमारी ओर से दिए हुए यीशु के बलिदान के मूल्य को पहचानते हैं, तो हमारा उत्तर प्रेम, कृतज्ञता और आज्ञाकारिता का होना चाहिए। जब हम हमारे लिए और दूसरों के लिए दिए गए यीशु के बलिदान को समझते हैं, तो हमारा उत्तर दूसरों को प्रेम व्यक्त करने में उसके नमूने का पालन करने में होना चाहिए। पाप के ऊपर नियन्त्रण पाने के लिए हमारी प्रेरणा प्रेम होनी चाहिए, न कि रीति रिवाज के रूप में आज्ञाओं की एक श्रृंखला का पालन करने की हमारी इच्छा होनी चाहिए। हमें मसीह की व्यवस्था का पालन करना है, क्योंकि हम उससे प्रेम करते हैं, न कि इसलिए ताकि हम उन आदेशों की एक सूची को देख सकें, जिन्हें हमने सफलतापूर्वक पूरा किया था।

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