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प्रश्न

क्या परमेश्वर मानव-निर्मित है?

उत्तर


कुछ लोग तर्क करते हैं कि परमेश्वर मानव-निर्मित है; ऐसा कहने का अर्थ है कि, परमेश्वर की अवधारणा केवल एक मानवीय निर्माण है जो उन पीढ़ियों के माध्यम से सौंपी गई है जो इससे उत्तम और किसी और को नहीं जानते थे। वे दावा करते हैं कि परमेश्वर या देवताओं का विचार केवल उसी तरह के हैं जिससे मनुष्य उन बातों को समझाता है जिन्हें समझना बहुत अधिक कठिन होता है। कुछ लोग कहते हैं कि अलौकिकता में विश्वास विज्ञान की उपेक्षा करना है और अन्धविश्वास को अपना लेना है। इस तरह, क्या परमेश्वर का विचार हमारे पूर्वजों के द्वारा अज्ञानता और मनगढ़ंत बातों पर आधारित परमेश्वर की कल्पना मात्र है इससे पहले कि विज्ञान इसे झूठा प्रमाणित करती?

नहीं, परमेश्वर मानव-निर्मित नहीं है; अपितु, परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की है। यहाँ तक कि संशयवादियों का मानना है कि मनुष्य सहित प्रत्येक सृष्टि की गई वस्तु का एक आरम्भ है। इसलिए, मनुष्य का आरम्भ होने के लिए, एक "पहला कारक" होना चाहिए जो उससे पहले अस्तित्व में हो। विकासवादियों का तर्क है कि पहला कारक एक अवैयक्तिक बल, एक "बड़ा विस्फोट" था, जिसने ब्रह्माण्ड का आरम्भ किया। परन्तु यह स्पष्टीकरण भी बहुत सारे अनुत्तरित प्रश्न को छोड़ जाता है। इस विचारधारा की तार्किक प्रतिक्रिया यह है कि, "बड़ा विस्फोट किस कारण हुआ? उन शक्तियों को क्या या किसने गति दी?" बाइबल से बाहर इसका किसी तरह का कोई तर्कसंगत उत्तर नहीं दिया गया है।

बाइबल उत्पत्ति 1:1 में परमेश्वर की सच्चाई के साथ आरम्भ होती से है, "आदि में परमेश्वर...।" जब हम पूर्वाग्रह को एक किनारे रख देते हैं, तो बाइबल का उत्तर उस पहले कारण के लिए सबसे तार्किक व्याख्या प्रतीत होता है। आदि में परमेश्वर था। वह रचा नहीं गया था और इसलिए पहले कारक की आवश्यकता नहीं है। समय और स्थान से परे वह सदैव से विद्यमान रहा है और सदैव रहेगा (भजन संहिता 90:2)। उसने स्वयं को मैं हूँ के नाम से मूसा मिलवाया (निर्गमन 3:14)। उसके नाम का अर्थ उसके स्वभाव के शाश्वत पहलू को दर्शाता है। स्व-अस्तित्व में बने रहने वाला वह सदैव से था और सदैव शाश्वत रहेगा (प्रकाशितवाक्य 1:8; 4:8)।

परमेश्वर मानव-निर्मित है या नहीं इस विषय में एक दूसरा विचार परमेश्वर का स्वरूप है क्योंकि उसने अपनी पुस्तक के पृष्ठों के माध्यम से स्वयं को प्रकट किया है। यदि मनुष्य ने उसका आविष्कार किया है, तो परमेश्वर की कई विशेषताएँ ऐसी नहीं हैं जिन्हें मनुष्य ने आवश्यक रूप से सम्मिलित करने के लिए सोचा होगा। परमेश्वर के चरित्र में सर्वज्ञता (यशायाह 46:9-10), सर्वसामर्थी होना (2 शमूएल 22:3; भजन संहिता 18:2), धैर्य (2 पतरस 3:9), और स्थायित्व (मलाकी 3:6) सम्मिलित हैं। उसे प्रेमी (भजन संहिता 25:10), विश्वासयोग्य (भजन संहिता 31:23) के रूप में वर्णित किया गया है, और वह हमारे साथ सम्बन्ध रखने के लिए इच्छुक हैं (यिर्मयाह 29:13; याकूब 4:8)। परन्तु साथ ही वह पूरी तरह से न्यायी है, और यह न्याय उससे मांग करता है कि सृष्टिकर्ता के विरुद्ध उच्च राजद्रोह के प्रति दण्ड को दिए जाने की आवश्यकता होती है (सपन्याह 3:5; रोमियों 6:23)। आवश्यकताओं की एक सूची सौंपने की अपेक्षा हमें उसके अनुग्रह (जैसा कि अन्य सभी धर्मों में भी पाया जाता है) को प्राप्त करने के लिए उससे मुलाकात करनी चाहिए, बाइबल का परमेश्वर ने मानवीय शरीर को धारण किया, हमारे बीच में रहा, और फिर उन लोगों को जिसकी उसने सृष्टि की थी उसे ही मृत्यु तक यातना दिए जाने के लिए चुनते हुए क्षमा कर दिया (लूका 23:34; फिलिप्पियों 2:5–11)। उस तरह का निस्वार्थ, बलिदानात्मक प्रेम मानवीय अनुभव से परे है और किसी भी मानव-निर्मित धर्म में विद्यमान नहीं है। अनुग्रह एक ऐसी अवधारणा है जो केवल बाइबल के परमेश्वर के प्रति ही विशेष रूप से पाई जाती है।

मानव-निर्मित देवताओं को सामान्य रूप से मनुष्य के स्वरूप में देखा जाता है। मूर्तिपूजक संस्कृतियों के देवता दोषों, विसंगतियों और मनुष्य-जैसी-कमजोरियों से भरे हुए हैं। वे नीच, स्वार्थी, क्रूरता और चपलता से भरे हुए हैं; संक्षेप में, वे मानव-निर्मित देवताओं के रूप में व्यवहार करते हैं, मन में मानवीय पाप और ईर्ष्या के साथ हैं। परमेश्वर को मानव-निर्मित होने के लिए, उसका स्वरूप केवल मनुष्य की कल्पना की सीमा के अनुसार ही हो सकता है। बाइबल का परमेश्वर हमारी समझ से बहुत आगे है, तौभी वह आत्मिक रोटी के टुकड़ों के रूप हमें संकेत देता है, जिनका अनुसरण करने के द्वारा हम उसे उत्तम रीति से जान सकते हैं।

परमेश्वर का मानव-निर्मित होने के विषय में विचार करने के लिए एक तीसरा बिन्दु मानवीय आत्मा का आत्मिक गुण होना है। प्रत्येक मनुष्य अद्वितीय है और "मैं" की एक सहज भावना रखता है। हमारे पास शाश्वतता की एक निहित समझ जन्म लेने से पहले ही होती है (सभोपदेशक 3:11) और यह भाव कि इस संसार से परे बहुत कुछ है। उत्पत्ति 1:27 कहता है कि मनुष्यों को परमेश्वर के स्वरूप में रचा गया था; कुलुस्सियों 1:16 कहता है कि हम उसके उद्देश्यों और उसकी आनन्द के लिए रचे गए हैं। हम कुछ अर्थों में उसके जैसे ही बने हैं, परन्तु वह हमारे जैसा नहीं है (गिनती 23:19)। यदि परमेश्वर केवल एक मानव-निर्माण होता, तो कई नए प्रश्न उठ खड़े होते: ऐसा क्या है जो मनुष्य को जानवरों से भिन्न बनाता है? मनुष्य को न्याय, परोपकार, आत्म-बलिदान और प्रेम — अमूर्त गुणों के विचार जानवरों के राज्य में नहीं मिलते हैं? संसार की प्रत्येक संस्कृति में पाए जाने वाले ऐसे लक्षण कभी भी विकासवादी प्रक्रिया से नहीं बचे होंगे। तथापि, जब हम उन गुणों को स्वयं परमेश्वर के चरित्र के भीतर प्रदर्शित होते देखते हैं, तो हम समझ जाते हैं कि हम में क्यों निहित हैं।

इस विषय के ऊपर एक और विचार कि परमेश्वर मानव-निर्मित है या नहीं, बाइबल की विश्वसनीयता है। एक व्यक्ति के द्वारा दावे के साथ यह कहना कि परमेश्वर का अस्तित्व नहीं है, उस व्यक्ति को उस पुस्तक की सटीकता से निपटना होगा जो उसके बारे में बताती है। बाइबल के पृष्ठों के भीतर, परमेश्‍वर ने स्वयं को हमारे सामने प्रकट किया है और सदियों से मनुष्य के साथ अपने व्यवहार के सैकड़ों उदाहरण दिए हैं। बहुत से लोग जो परमेश्वर की वास्तविकता के विरुद्ध तर्क देते हैं, वे भी बाइबल के बारे में पूर्ण रीति से अन्जान हैं। वे अक्सर यह दावा करते हैं कि यह "यहूदियों के एक समूह के द्वारा लिखी गई एक प्राचीन पुस्तक मात्र है।" इस तरह के कथन में उस त्रुटिपूर्ण नींव का प्रदर्शन होता है जिस पर उन्होंने अपने तर्कों का निर्माण किया है। बाइबल पुस्तकों का एक संग्रह है, जो कि तीन महाद्वीपों से, और तीन भिन्न भाषाओं में, 1500 से अधिक वर्षों के समय में 40 से अधिक लेखकों के द्वारा लिखी गई है। तौभी यह एक ही कहानी के टुकड़ों को एक साथ बुनती है ठीक वैसे जैसे कि एक पहेली अपने पूरे आकार में आ जाती है। बाइबल परमेश्वर की पतित सृष्टि के छुटकारे के लिए परमेश्वर की अथक खोज के प्रति परमेश्वर की कहानी है।

जो लोग विश्वास करते हैं कि परमेश्वर का विचार मानव-निर्मित है, उन्हें उस तरीके पर भी विचार करना चाहिए, जिसमें बाइबल मानव जाति, विशेषकर यहूदियों का चित्रण करती है। यदि यहूदियों ने स्वयं को सम्मानित करने के लिए बाइबल लिखी होती, तो वे बुरी तरह से असफल रहे हैं। यहाँ तक कि स्वयं परमेश्वर भी स्पष्ट हैं कि उसने उन्हें अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए इस्राएलियों को चुना था, इसलिए नहीं कि वे विशेष व्यवहार के प्राप्त करने के योग्य थे (व्यवस्थाविवरण 7:7)। इस्राएल जाति की असफलताएँ निरन्तर दिखाई गई हैं, ठीक वैसे ही परमेश्वर के पुत्र के क्रूस के पर चढ़ने के लिए दिखाया गया है (यशायाह 65:2; मरकुस 15:9-15)। मानवता को वास्तविक रूप में चित्रित किया गया है, जो पाप, विद्रोह और दण्ड के साथ पूरी होती है। कोई भी समूह या व्यक्ति श्रेष्ठ नहीं है। स्पष्ट प्रश्न यह उठा खड़ा होता है कि: यदि मनुष्य ने परमेश्वर के विचार को गढ़ा है, तो इसके पीछे उसका उद्देश्य क्या था? पुराने और नए नियम के समय में, एकमात्र नायक परमेश्वर है। व्यक्तिगत् लाभ के लिए मार्ग प्रशस्त करने के अपेक्षा, बाइबल की सच्चाइयाँ आत्म-त्याग और समर्पण की ओर ले जाती हैं। हमें यह बताने का निर्देश देने के अपेक्षा कि परमेश्वर का अनुग्रह कैसे अर्जित किया जाता है, बाइबल हमें चेतावनी देती है कि कोई भी धर्मी नहीं है (रोमियों 3:10, 23)। अभी तक के इतिहास में, बाइबल की सच्चाइयों की घोषणा करने वाले शहीद हुए हैं, पथराव किए गए हैं, और जीवन को बचाने के लिए छिप गए हैं (1 राजा 19:10; प्रेरितों के काम 7:58; 2 कुरिन्थियों 11:25)।

यदि परमेश्वर का विचार मानव-निर्मित है, तो वास्तव में कोई परमेश्वर है ही नहीं, और उत्तर रहित सबसे बड़ा प्रश्न ब्रह्माण्ड की जटिलता और स्पष्ट रूपरेखा से सम्बन्धित है। डीएनए का एक एकल तन्तु एक ऐसी जटिल प्रतिभा दिखाता है कि बिना सोचे समझे संयोग से घटित होना इसे समझाने के निकट भी नहीं आ सकता है। इसके अतिरिक्त, पूर्ण सिद्धता के साथ अरबों की सँख्या में पाए जाने वाले संकलित परमाणु, अणु, प्रद्धतियाँ और ब्रह्माण्ड एक रूपरेखाकार के होने के बारे में चीख चिल्ला रहे हैं। परमेश्वर को सम्भावित स्पष्टीकरण की सीमा से हटाना कई अचूक प्रश्नों को जन्म देता है। कोई और व्याख्या समझ में नहीं आती। सिद्धान्त भरे पड़े हैं, परन्तु ब्रह्माण्ड की जटिलता के चौंकाने वाले सामंजस्य के लिए कोई भी निश्चित वैज्ञानिक साक्ष्य के होने का दावा नहीं कर सकता है। यहाँ तक कि चार्ल्स डार्विन को भी यह स्वीकार करना पड़ा था कि, ''यह मानना कि आँख, विभिन्न दूरी पर ध्यान केन्द्रित करने, प्रकाश की विभिन्न मात्राओं को स्वीकार करने और गोलाकार और रंगीन विपथन के सुधार के लिए अपनी सभी अतुलनीय विरोधाभासों के साथ, प्रकृति के द्वारा बनाई जा सकती है, आभासित तो ऐसे ही होता, परन्तु मैं स्वतन्त्र रूप से यह स्वीकार करता हूँ, कि यह अपने उच्चतम सम्भव स्तर में बेतुकी बात है" (मूल की उत्पत्ति, जे. एम. डेन्ट एंड सन्स, लिमिटेड, लन्दन, 1971, पृ. 167)।

हम बस ऐसे ही परमेश्वर के विचार को अधिक उचित स्पष्टीकरण के साथ स्थापित किए बिना नहीं हटा सकते। परमेश्वर की सम्भावना को समाप्त करने से प्रश्न लुप्त नहीं होता है। यद्यपि, जब हम उन पूर्वाग्रहों और अनुमानों को हटा देते हैं जो परमेश्वर को मानने की अनुमति देने से इन्कार करते हैं, तो परमेश्वर ही इस अद्भुत संसार के लिए एकमात्र तार्किक स्पष्टीकरण रह जाता है। जिन्होंने यह निश्चय किया है कि परमेश्वर का अस्तित्व नहीं है इसी विचार के चारों ओर अपने वैश्विक दृष्टिकोण का निर्माण करते हैं और दिखावा करते हैं कि उनके कमजोर उत्तर रिक्त स्थानों को भर देते हैं। उन लोगों में परमेश्वर का इन्कार करना बहुत अधिक दृढ़ता के साथ पाया जाता है, यह लगभग ऐसी धार्मिक धारणा है जो सच्चाई के लिए उनकी तथाकथित खोज को प्रभावित करता है। यद्यपि, जो लोग खुले-विचारों वाले होने की इच्छा रखते हैं और सत्य की खोज करते हैं, इसके लिए उन्हें चाहे जहाँ कहीं भी जाना पड़े उनके लिए यह हो सकता है कि प्रमाण सदैव परमेश्वर की ओर ले जाए।

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