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प्रश्न

फ़्लर्टिंग अर्थात् इश्कबाजी या नैन मटक्का करने के बारे में बाइबल क्या कहती है?

उत्तर


बाइबल विशेष रूप से हमसे इस विषय में बात नहीं करती है कि फ़्लर्टिंग अर्थात् इश्कबाजी या यौन प्राप्ति के लिए बातों से विपरीत लिंगी को आकर्षित करना गलत है या नहीं, परन्तु इसमें कुछ ऐसे सिद्धान्त हैं, जिन्हें हम लागू कर सकते हैं। सबसे पहले, हमें यह परिभाषित करने की आवश्यकता है कि इश्कबाजी या नैन मटक्का क्या होता है। मरियम-वेबस्टर शब्दकोष के अनुसार, इश्कबाजी "क) गम्भीर मंशा के बिना अनोखे तरह का व्यवहार करना है, या ब) सतही या अनौपचारिक रुचि या पसन्द या लगाव को दिखाना।" यह शब्द हल्की बात का समानार्थी है, जो कि थोड़े से मूल्य की होती है। अगली बात जिसकी हमें जाँच करनी चाहिए कि जब लोग सामान्य रूप से इश्कबाजी करते हैं, तो वे क्या पाने का प्रयास कर रहे होते हैं। क्या वे दूसरों के ध्यान को आकर्षित करने का प्रयास कर रहे होते हैं, चाहे वह नकारात्मक या सकारात्मक ही क्यों न हो? क्या वे यौन सम्बन्धित रुचि या आकर्षण को दिखाने का प्रयास कर रहे हैं? क्या वे इसे "निर्दोषता से भरे हुए आनन्द" की प्राप्ति के रूप में देखते हैं, चाहे वे या कोई अन्य व्यक्ति किसी और के साथ इसमें सम्मिलित है या नहीं, या यहाँ तक कि इसमें विवाहित व्यक्ति ही क्यों न हो सम्मिलित हैं?

किसी के साथ जानबूझकर मनोरंजन से भरे हुए यौन सम्बन्धी आन्तरिक गुणों से भरी हुई बातों को लिए हुए किसी के साथ अनौपचारिक सम्पर्क करना आत्मिक रूप से हमारे लिए खतरनाक हो सकता है। यद्यपि अधिकांश लोग मानते हैं कि जब तक कुछ भी शारीरिक नहीं होता है, तब तक जो कुछ भी हमारे मनों में चल रहा है, वह अप्रासंगिक है, बाइबल हमें इसके विपरीत बताती है। "परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्‍टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका" (मत्ती 5:28)। याकूब कहता है कि, "परन्तु प्रत्येक व्यक्‍ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर और फँसकर परीक्षा में पड़ता है। फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप जब बढ़ जाता है, तो मृत्यु को उत्पन्न करता है" (याकूब 1:14-15) । हमारे विचार परमेश्‍वर की दृष्टि में अर्थ रखते हैं, और हमारे विचार भी अन्ततः हमारे व्यवहार का कारण बन जाते हैं।

पाप हमारे मनों में आरम्भ होता है और फिर हमारे हृदय की ओर बढ़ जाता है। मत्ती 12:35 हमें बताता है कि "भला मनुष्य मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है, और बुरा मनुष्य बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है।" यह एक सच्चाई है, जिसमें हम स्वयं को घेर लेते हैं, जिसी किसी भी गतिविधि में हम स्वयं को सम्मिलित करते हैं, और जिस किसी भी बात से हम स्वयं के मन को भरते हैं, वह वही हैं, जो हम बन जाते हैं। यही कारण है कि फिलिप्पियों 4:8 कहता है, "इसलिये हे भाइयो, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, अर्थात् जो भी सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं उन पर ध्यान लगाया करो।"

यद्यपि इश्कबाजी को लगभग सदैव "हानिरहित" होने के रूप में वर्णित किया जाता है, परन्तु कदाचित् ही कभी, ऐसा वास्तव में होता है। इश्कबाजी आनन्द से भरे हुए ध्यान को ला सकती है, परन्तु दूसरे व्यक्ति को दिखाई गई रूचि पूरी तरह से लगभग यौन सम्बन्धी होती है और सम्भवतः इसमें सम्मान की कोई कमी नहीं होती है। इश्कबाजी किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुँचा सकती है, यह वर्तमान और भविष्य की मित्रता और रोमांटिक सम्बन्धों को नुकसान पहुँचा सकती है। हो सकता है कि इस समय इश्कबाजी आनन्दायक होने का अनुभव प्रदान कर सकती है, परन्तु यह झूठी अन्तरंगता को उत्पन्न करती है, जो एक व्यक्ति को इश्कबाजी के समाप्त होने के पश्‍चात् जब वास्तव में कोई सम्बन्ध नहीं रह जाता खालीपन में छोड़ कर चली जाती है।

अन्य विचार उस व्यक्ति के विषय में है, जिसके साथ इश्कबाजी की गई थी। यह सम्भव है कि एक पुरूष या स्त्री जिसके साथ इश्कबाजी की गई है, वह स्वयं में वासना से भरे हुए विचारों के साथ जूझ रहा हो। जब विपरीत लिंग का एक व्यक्ति उनके साथ समय व्यतीत कर रहा होता है, उसे आँखें मार रहा होता, उसे स्पर्श कर रहा होता, या उसे अपना शरीर दिखा रहा होता है, तो यह व्यक्ति के संघर्ष को और अधिक कठिन बना देता है। बाइबल हमें दूसरों को पाप करने के लिए प्रेरित करने के विरोध दृढ़ता से चेतावनी देती है (मत्ती 18:7)। हमें दूसरों को परमेश्‍वर के राज्य में लाने के लिए वह सब कुछ करना चाहिए, जो हम कर सकते हैं और ऐसा कुछ भी न करें जो किसी व्यक्ति को अपने मसीही जीवन में आगे बढ़ने में ठोकर देने का कारण बन जाए (रोमियों 14:21)।

बाइबल हमें बताती है कि हमें एक अच्छा नमूना बनना चाहिए, जो दूसरों को अपने व्यवहार के माध्यम से मसीह का प्रेम दिखाता है (इफिसियों 5:1-2)। मसीह का प्रेम वास्तविक और गहरा है। यह शुद्ध है और दूसरे के लाभ के लिए है। इश्कबाजी की अपेक्षा, हम दूसरों के साथ ईश्‍वरीय प्रेम में होकर प्रेम करना चाहिए। पहला कुरिन्थियों 10:31 हमें स्मरण दिलाता है कि, "इसलिये तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिये करो।"

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