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प्रश्न

पारिवारिक समस्याओं के बारे में बाइबल क्या कहती है?

उत्तर


पारिवारिक समस्याओं के होने में कुछ भी नया नहीं हैं। पाप में पतित संसार में, हमें जिसे सबसे ज्यादा प्रेम करना चाहिए वह - हमारे परिवार हैं – परन्तु अक्सर यह वही होते हैं, जिसने हम सबसे ज्यादा लड़ते हैं। बाइबल पाप को छुपाती नहीं है और यह आदम के द्वारा लगाए गए दोष को – जिसमें उसकी पत्नी को लक्ष्य बनाया गया था, स्थानांतरित करने से आरम्भ होने वाली कई पारिवारिक समस्याओं को लिपिबद्ध करती है, (उत्पत्ति 3:12)। कैन और हाबिल, याकूब और एसाव, और यूसुफ और उसके भाइयों की कहानियों में भाई-बहनों में प्रतिद्वन्द्विता बढ़ती चली जाती है। पत्नियों के बीच ईर्ष्या - बहुविवाह के नकारात्मक परिणामों में से एक - हन्ना, और लिआ और राहेल की कहानियों में पाई जाती है। एली और शमूएल ने अपने बुरे बच्चों के साथ निपटारा किया है। योनातान की हत्या लगभग उसके पिता शाऊल के द्वारा ही हुई थी। दाऊद अपने पुत्र अबशालोम के विद्रोह से टूट गया था। होशे ने वैवाहिक कठिनाइयों का अनुभव किया। इन विषयों में से प्रत्येक के सम्बन्ध पाप के कारण क्षतिग्रस्त हो गए थे।

पारिवारिक गतिशीलता सहित कई अन्यों सम्बन्धों के बारे में बाइबल में कहने के लिए बहुत कुछ है। मानवीय वार्तालाप के लिए स्थापित पहली संस्था परमेश्‍वर की ओर एक परिवार ही था (उत्पत्ति 2:22-24)। उसने आदम के लिए एक पत्नी बनाई और उन्हें विवाह में एक कर दिया। इस घटना को उद्धृत करते हुए, यीशु ने बाद में कहा था कि, "इसलिये जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे" (मत्ती 19:6)। परमेश्‍वर की योजना एक पुरूष और एक स्त्री के लिए विवाह में तब एक बने रहने की थी, जब तक कि उनमें से कोई एक मर नहीं जाता। वह उस एकता के साथ उन लोगों के साथ आशीष देना चाहता है, जिनका पालन पोषणा "प्रभु की शिक्षा और चेतावनी में" किया जाता है (इफिसियों 6:4; भजन 127:3 को भी देखें)। जब हम परमेश्‍वर की रूपरेखा के विरूद्ध विद्रोह करते हैं, तो कई पारिवारिक समस्याएँ सामने आ जाती हैं - उदाहरण के लिए, बहुविवाह, व्यभिचार और तलाक इत्यादि सभी समस्याओं के कारणों बनते हैं, क्योंकि वे परमेश्‍वर की मूल योजना से दूर होते हैं।

बाइबल हमें स्पष्ट निर्देश देती है कि परिवार के सदस्यों को एक दूसरे के साथ कैसे व्यवहार करना है। परमेश्‍वर की योजना यह है कि पति अपनी पत्नियों को उसी तरह प्रेम करें जैसे मसीह अपनी कलीसिया से प्रेम करता है (इफिसियों 5:25, 33)। पत्नी अपने पतियों का सम्मान करें और उसके नेतृत्व के अधीन हो जाएँ (इफिसियों 5:22-24, 33; 1 पतरस 3:1)। बच्चों को अपने माता-पिता की आज्ञा पालन करना है (इफिसियों 6:1-4; निर्गमन 20:12)। पतियों, पत्नियों और बच्चों के द्वारा यदि इस मूल नियमों का पालन किया जाए तो कितनी अधिक पारिवारिक समस्याओं का समाधान हो जाएगा?

पहला तीमुथियुस 5:8 कहता है कि परिवारों को अपनी देखभाल करनी है। यीशु ने उन लोगों के लिए कठोर शब्द कहे थे, जिन्होंने अपने बुजुर्ग माता-पिता को अपनी वित्तीय उत्तरदायित्व से वंचित कर दिया था और दावा किया कि उन्होंने अपना पूरा पैसा मन्दिर में दान कर दिया है (मत्ती 15:5-6)।

परिवारों में सद्भाव की कुँजी वह नहीं है, जिसे हम स्वाभाविक रूप से लागू करना चाहते हैं। इफिसियों 5:21 कहता है "मसीह के भय में एक दूसरे के अधीन रहो।" अधीनता हमारे शरीर के ऊपर शासन करने की इच्छा और उसको अपने पथों पर चलने के सीधे विरोध में होती है। हम अपने अधिकारों की रक्षा करते हैं, अपने विचारों के नायक होते हैं, अपने दृष्टिकोणों का बचाव करते हैं, और जब भी सम्भव हो, तब अपने मसौदे के ऊपर ही जोर देते हैं। परमेश्‍वर का पथ अपने शरीर को क्रूस पर चढ़ाना है (गलातियों 5:24; रोमियों 6:11) और जब भी हम कर सकें तो हमें एक दूसरों की आवश्यकताओं और इच्छाओं को पूरा होने के लिए स्वयं को अधीन कर देना सम्मिलित होता है। यीशु परमेश्‍वर की इच्छा के प्रति उस तरह की अधीनता के लिए हमारा आदर्श है। पहला पतरस 2:23 कहता है, "वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दु:ख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आप को सच्‍चे न्यायी के हाथ में सौंपता था।"

यदि हम सभी फिलिप्पियों 2:3-4 में दिए गए निर्देशों का पालन करते हैं, तो अधिकांश परिवारों की समस्याओं को कम किया जा सकता है: "तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो, और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो। विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो, पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिन्ता करे।" जब हम विनम्रता की भावना को अपनाते हैं और दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं, जैसा कि यदि यीशु यहाँ होता तो उनके साथ करता, तो हम अपने परिवारों और सम्बन्धों में पाई जाने वाली कई समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।

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