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प्रश्न

मंगनी के प्रति मसीही दृष्टिकोण क्या है?

उत्तर


बाइबल में, विवाह करने के समय यहूदी लोगों को तीन कदम उठाने पड़ते थे। परिवारों को पहले एक जोड़े कि लिए सहमत होना पड़ता था, और फिर सार्वजनिक घोषणा करनी पड़ती थी। इस समय, एक जोड़े की मंगनी या सगाई की जाती थी। अन्त में, वे आधिकारिक तौर पर विवाहित हो जाते थे और एक साथ रहने लगते थे। तब, मंगनी कुछ सीमा तक उसके समान थी, जिसे हम अब सगाई कह कर पुकारते हैं, इस बात को छोड़कर कि हमारा समाज सगाई की गम्भीरता को उतना अधिक सम्मान नहीं देता जितना कि उन्होंने दिया था। जब बाइबल के समय में एक यहूदी जोड़े की मंगनी होती थी, तो वे पहले से ही एक अनुबंध से बंधे हुए होते थे, जिसे केवल मृत्यु या तलाक के माध्यम से ही तोड़ा जा सकता था।

विवाह करने के ऊपर विचार करने वाले किसी भी मसीही विश्‍वासी को इस तरह की प्रतिबद्धता के प्रति गहरे अहसास को होना चाहिए और इसमें हल्के तरीके से सम्मिलित नहीं होना चाहिए। परमेश्‍वर ने विवाह की मंशा जीवन पर्यन्त बनी रहने वाली प्रतिबद्धता के रूप में की है न कि अस्थाई के रूप में। बाइबल विवाह के बारे में यह कहती है कि: "'इस कारण मनुष्य अपने माता-पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे'; इसलिये वे अब दो नहीं पर एक तन हैं। इसलिये जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है उसे मनुष्य अलग न करे" (मरकुस 10:7-9)।

मसीहियों को यह सुनिश्‍चित करना आवश्यक है कि वे उस व्यक्ति की स्पष्ट समझ को प्राप्त करें जिससे वे विवाह में सम्मिलित होने से पहले मंगनी करते हैं। बाइबल कहती है कि मसीही अविश्‍वासियों के साथ एक समूह में नहीं आ सकते और न ही उनके साथ शान्ति के साथ जीवन व्यतीत कर सकते हैं (2 कुरिन्थियों 6:14-15)। एक अविश्‍वासी के साथ एक जुए में जुतना एक मसीही को लगभग यह गारंटी देता है कि वह उस मसीही विश्‍वासी को मसीह से दूर खींच कर ले जाएगा, क्योंकि बाइबल कहती है, "धोखा न खाना, “बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है" (1 कुरिन्थियों 15:33)। परमेश्‍वर-के लिए सम्मान को ले आने वाले, स्थिर नींव वाले विवाह के लिए एकमात्र तरीका एक व्यक्ति को विश्‍वास में दृढ़ता से जड़ पकड़े हुए होना है और यह सुनिश्‍चित करना है कि सम्भावित भागी परमेश्‍वर के प्रति समान रूप से समर्पित है।

मसीहियों को परमेश्‍वर को निर्देशक मानते हुए अपने जीवन को यापन करना चाहिए। वह हमारे जीवन के हर पहलू का हिस्सा बनना चाहता है, इसमें वह भी सम्मिलित है, जिसके साथ हम विवाह करते हैं। परमेश्‍वर के वचन की स्पष्ट समझ रखने और प्रार्थना के माध्यम से उसके साथ व्यक्तिगत् सम्बन्ध विकसित करना और पवित्र आत्मा के दिशा निर्देश के प्रति अधीन होना हमारे लिए उसकी इच्छा निर्धारित करने में पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है। डेटिंग अर्थात् विवाह पूर्व होने वाली प्रेम मुलाकतों और मंगनी के ऊपर संसार की ओर से दिए जाने वाले परामर्श को केवल पवित्रशास्त्र में परमेश्‍वर की सच्चाइयों के प्रकाश में विचार किया जाना चाहिए। यदि हम उसकी इच्छा पूरी करते हैं, तो वह हमारे पथों को मार्गदर्शन देगा (नीतिवचन 3:5-6)।

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