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प्रश्न

छुटकारे की सेवकाई क्या है और यह बाइबल आधारित है?

उत्तर


"छुटकारे की सेवकाई" के लिए सामान्य रूप से सहमत परिभाषा दुष्टात्माओं से सम्बन्धित समस्याओं को समाधान करने के प्रयास में विशेष दुष्टात्माओं और बुरी आत्माओं को बाहर निकालने के ऊपर ध्यान केन्द्रित करना है। उदाहरण के रूप में, एक सेवक छुटकारे की सेवकाई में क्रोध की भावना का सामना करने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति की सहायता क्रोध से उबरने के प्रयास स्वरूप कर सकता है। छुटकारे की सेवकाई किसी के जीवन में आत्मिक गढ़ों को उखाड़ फेंकने, आन्तरिक चंगाई की खोज करने और सभी शत्रुओं के ऊपर मसीह में जय पाने के दावा को करने के ऊपर भी ध्यान केन्द्रित कर सकती हैं। कई लोग आत्माओं के बन्धनों, शापों, और दुष्टात्माओं के "वैधानिक अधिकार" का उल्लेख करते हैं। बाइबल आधारित हो कहना बुरी आत्माओं या दुष्ट आत्माओं को उन स्वर्गदूतों के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने स्वर्ग में शैतान के साथ विद्रोह किया था (प्रकाशितवाक्य 12:4, 9; यशायाह 14:12-20; यहेजकेल 28:1-19)।

शैतान और दुष्टात्माओं की भीड़ के बारे में पवित्रशास्त्र में निश्‍चित रूप से बहुत कुछ पाया जाता है। उनसे छुटकारे के बारे में बहुत कुछ नहीं कहा गया है और छुटकारे की "सेवकाई" के रूप में उद्धार के बारे में तो कुछ भी नहीं कहा गया। कलीसिया की सेवकाइयाँ इफिसियों 4:11 में पाई जाती हैं। सबसे पहले प्रेरित और भविष्यद्वक्ता, कलीसिया में — यीशु के साथ जो कि कोने के सिरे का पत्थर है, की नींव थे (इफिसियों 2:20)। इसके पश्‍चात् सुसमाचार प्रचारक, फिर पास्टर और शिक्षक सूचीबद्ध हैं। दुष्टात्माओं को बाहर निकालने की क्षमता आत्मिक वरदान या एक सेवक के सेवकाई कर्तव्य के रूप में सूचीबद्ध नहीं है।

सुसमाचार और प्रेरितों के काम की पुस्तक बताते हैं कि यीशु और शिष्यों ने दुष्टात्माओं को बाहर निकाला था। नए नियम (रोमियों से लेकर यहूदा) का उपदेश आधारित भाग दुष्टात्माओं की गतिविधि के सन्दर्भ देते हैं, तौभी उन्हें बाहर निकालने की विधि पर कोई चर्चा नहीं करते हैं, न ही विश्‍वासियों को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। हमें आत्मिक दुष्टता के विरूद्ध खड़े होने के लिए परमेश्‍वर के पूरे शास्त्रों को धारण करने के लिए कहा गया है (इफिसियों 6:10-18)। हमें शैतान का विरोध करने के लिए कहा गया है (याकूब 4:7) और उसका हमारे जीवन में कोई स्थान नहीं है (इफिसियों 4:27)। यद्यपि, हमें नहीं बताया गया है कि उसे या उसकी दुष्टात्माओं को दूसरों में से कैसे बाहर निकालना है, या हमें ऐसा करने पर भी विचार करना चाहिए या नहीं।

यह रूचिपूर्ण है कि यीशु के द्वारा शिष्यों को मत्ती 12:43-45 के सम्भावित अपवाद के साथ दुष्टात्माओं को बाहर निकालने के बारे में निर्देशों का कोई लिपिबद्ध वर्णन नहीं पाया जाता है, जहाँ से हमें कुछ अन्तर्दृष्टि प्राप्त हो जाती। जब शिष्यों ने पाया कि दुष्टात्माएँ यीशु के नाम और अधिकार में उनके अधीन थी, तो वे आनन्दित हुए (लूका 10:17; की तुलना प्रेरितों 5:16; 8:7; 16:18; 1 9:12 से करें)। परन्तु यीशु ने शिष्यों से कहा, "इस तौभी इससे आनन्दित मत हो कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इस से आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं" (लूका 10:20)।

एक विशेष "छुटकारे की सेवकाई" देने की अपेक्षा, हमारे पास यीशु के सामर्थी नाम में एक अधिकार है। एक दिन, यूहन्ना ने यीशु से कहा, "'हे गुरु, हम ने एक मनुष्य को तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को निकालते देखा और हम उसे मना करने लगे, क्योंकि वह हमारे पीछे नहीं हो लेता था।' यीशु ने कहा, 'उस को मत मना करो; क्योंकि ऐसा कोई नहीं जो मेरे नाम से सामर्थ्य का काम करे, और जल्दी से मुझे बुरा कह सके, क्योंकि जो हमारे विरोध में नहीं, वह हमारी ओर है'" (मरकुस 9:38-40)। दुष्टात्माओं पर अधिकार का कार्य स्पष्ट रूप से परमेश्‍वर की सामर्थ्य है, चाहे एक दुष्टात्मा निकालने वाले के पास छुटकारे की सेवकाई एक विशेष सेवकाई के रूप में है या नहीं।

आत्मिक युद्ध में महत्व 1 यूहन्ना 4:4 जैसे वचनों में उजागर किया गया है, "हे बालको, तुम परमेश्‍वर के हो, और तुम ने उन पर जय पाई है; क्योंकि जो तुम में है वह उस से जो [शैतान] संसार में है, बड़ा है।" जय हमारी इसलिए है, क्योंकि हमारे पास पवित्र आत्मा है, जो हमारे भीतर वास करता है। विश्‍वासी अपने अतीत, आदतों और व्यसनों के साथ अपने संघर्षों को दूर कर सकते हैं, क्योंकि "जो कुछ परमेश्‍वर से उत्पन्न हुआ है, वह संसार पर जय प्राप्‍त करता है" (1 यूहन्ना 5:4)। हमें प्रार्थना, ईश्‍वरीय परामर्श और एक अच्छी कलीसिया का समर्थन चाहिए, परन्तु यह आवश्यक नहीं कि वहाँ पर एक "छुटकारा देने वाला सेवक" हो।

हमें कहा गया है कि हम "सचेत हो, और जागते रहें; क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह के समान इस खोज में रहता है कि किस को फाड़ खाए। विश्‍वास में दृढ़ होकर, और यह जानकर उसका सामना करो कि... अब परमेश्‍वर जो सारे अनुग्रह का दाता है, जिसने तुम्हें मसीह में अपनी अनन्त महिमा के लिये बुलाया, तुम्हारे थोड़ी देर तक दु:ख उठाने के बाद आप ही तुम्हें सिद्ध और स्थिर और बलवन्त करेगा" (1 पतरस 5:8–10)।

मसीही जीवन में जय की कुँजी क्षण-दर-क्षण पवित्र आत्मा से (नियन्त्रित और सशक्त होना है) भरना है (इफिसियों 5:18)। पिता जानता है कि उसके लोग कौन हैं: "जितने लोग परमेश्‍वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्‍वर के पुत्र हैं" (रोमियों 8:14)। पवित्र आत्मा किसी ऐसे व्यक्ति के भीतर वास नहीं करेगा जिसका नया जन्म नहीं हुआ है (यूहन्ना 3:3-8; 2 तीमुथियुस 2:19; प्रेरितों के काम 1:8; 1 कुरिन्थियों 3:16), इसलिए आत्मिक जय के प्रति पहला कदम हमारे द्वारा यीशु मसीह में विश्‍वास रखना है। तत्पश्‍चात्, आनन्दित हों कि यीशु आपके भीतर है और आपके पास उसकी सामर्थ्य और जय है।

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