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प्रश्न

सृष्टि के प्रत्येक दिन क्या घटित हुआ?

उत्तर


सृष्टि का वृतान्त उत्पत्ति 1-2 में पाया जाता है। उत्पत्ति के वृतान्त की भाषा में यह स्पष्ट है कि सृष्टि के सभी छह दिन — शाब्दिक 24-घण्टे की अवधि से अधिक कुछ नहीं थे, जिनके मध्य में कोई अतिरिक्त समय नहीं था। यह स्पष्ट है, क्योंकि सन्दर्भ में शाब्दिक 24 घण्टे की अवधि की आवश्यकता पाई जाती है। विवरण विशेष रूप से घटना को ऐसे तरीके को वर्णित करता है कि एक सामान्य, सहज-भाव से किया जाने वाला पठन् एक शाब्दिक दिन के अर्थ को ही देता है: "तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार — पहला दिन हो गया" (उत्पत्ति 1:5)। इसके अतिरिक्त, मूल भाषा में प्रत्येक वाक्य "शब्द" और के साथ आरम्भ होता है। यहाँ अच्छी इब्रानी व्याकरण दी हुई है और यह दर्शाती है कि प्रत्येक वाक्य पूर्ववर्ती कथन पर निर्मित किया गया है, जो स्पष्ट रूप से यह संकेत देता है कि दिन समवर्ती थे और कि समय की अवधि के द्वारा पृथक नहीं हुए थे। उत्पत्ति के वृतान्त से यह पता चलता है कि परमेश्‍वर का वचन अधिकारिक और सामर्थी है। परमेश्‍वर के द्वारा सृष्टि किए जाने के कार्य बोलने के द्वारा पूरा हुआ, जो उसके वचन की सामर्थ्य और अधिकार का एक और संकेत है। आइए, अब हम प्रत्येक दिन में होने वाले परमेश्‍वर की रचना के कार्य को देखें:

उत्पत्ति दिन 1 (उत्पत्ति 1:1-5)
परमेश्‍वर ने आकाश और पृथ्वी की रचना की। "आकाश" पृथ्वी से परे की सभी वस्तुएँ, बाहरी अंतरिक्ष के सन्दर्भ में है। पृथ्वी को रचा जाता है, परन्तु किसी विशिष्ट तरीके से नहीं रचा जाता, यद्यपि, पानी वहाँ पर विद्यमान है। परमेश्‍वर तब, प्रकाश को अस्तित्व में आने के लिए बोलता है। तत्पश्चत् वह प्रकाश को अन्धेरे से अलग करता है और प्रकाश को "दिन" और अन्धेरे को "रात" का नाम देता है। रचना का यह कार्य सांय से लेकर सुबह तक होता है — एक दिन।

उत्पत्ति दिन 2 (उत्पत्ति 1:6-8)
परमेश्‍वर आकाश को रचता है। आकाश सतह पर पानी और हवा में नमी के मध्य एक बाधा बना जाता है। समय के इस बिन्दु पर पृथ्वी का वातावरण होगा। यह रचनात्मक काम एक दिन में होता है

उत्पत्ति दिन 3 (उत्पत्ति 1:9-13)
परमेश्‍वर सूखी भूमि को रचता है। महाद्वीप और द्वीप पानी से ऊपर हैं। पानी के बड़े निकायों का नाम "समुद्र" और धरती का नाम "भूमि" रखा जाता है। परमेश्‍वर ने घोषणा की कि यह सब अच्छा है।

परमेश्‍वर बड़े और छोटे दोनों तरह के पौधे के जीवनों को रचता है। वह इस जीवन को स्वयं पर ही आत्मनिर्भर होने के लिए रचता है; पौधों में पुन: उत्पादन करने की क्षमता होती है। पौधों को बहुत अधिक विविधता (कई "प्रकार") के साथ बनाया गया था। पृथ्वी हरी और पौधे को जीवन देने के लिए घूम रही थी। परमेश्‍वर घोषित करता है कि उसका यह कार्य भी अच्छा है। यह रचनात्मक काम एक दिन का समय लेता है।

उत्पत्ति दिन 4 (उत्पत्ति 1:14-19)
परमेश्‍वर सभी प्रकार के सितारों और स्वर्गीय निकायों को रचता है। इन का घुमना मनुष्य को समय का पता लगाने में सहायता देगा। पृथ्वी के सम्बन्ध में दो बड़े स्वर्गीय निकायों को बनाया जाता है। पहला सूर्य है जो प्रकाश का प्राथमिक स्रोत है और चन्द्रमा जो सूर्य के प्रकाश को दर्शाता है। इन निकायों का घुमना दिन से रात को पृथक करेगा। यह कार्य भी परमेश्‍वर के द्वारा अच्छा घोषित किया गया है। यह रचनात्मक कार्य भी एक दिन समय लेता है।

उत्पत्ति दिन 5 (उत्पत्ति 1:20-23)
परमेश्‍वर उन सभी जीवनों की रचना करता है, जो पानी में रहते हैं। पानी में रहने वाले किसी भी तरह का कोई भी जीवन समय के इसी बिन्दु पर रचा जाता है। परमेश्‍वर सभी तरह के पक्षियों को रचता है। दी हुई भाषा यह अनुमति देती है कि यही वह समय हो सकता है, जब परमेश्‍वर ने कीड़ों को भी रचा होगा (या, यदि नहीं, तो वे छठे दिन रचे गए थे)। इन सभी प्राणियों को प्रजनन द्वारा अपनी प्रजातियों को बनाए रखने की क्षमता के साथ बनाया जाता है। दिन 5 में रचे गए प्राणी ऐसे पहले प्राणी हैं, जिन्हें परमेश्‍वर की ओर से आशीष प्राप्त हुई है। परमेश्‍वर ने इस कार्य को भी अच्छा घोषित किया, और यह भी एक ही दिन के समय में हुआ है।

उत्पत्ति दिन 6 (उत्पत्ति 1:24-31)
परमेश्‍वर उन सभी प्राणियों को रचता है, जो सूखी भूमि पर रहते हैं। इसमें वे सभी प्राणी सम्मिलित हैं, जो पिछले दिनों और मनुष्य की रचना के समय निर्मित नहीं किए गए हैं। परमेश्‍वर ने इस कार्य को भी अच्छा बताया।

तब परमेश्‍वर स्वयं से ही परामर्श लेता है, "तब परमेश्‍वर ने कहा, 'हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार और अपनी समानता में बनाएँ" (उत्पत्ति 1:26)। यह त्रिएकत्व का स्पष्ट प्रगटीकरण नहीं है, अपितु इस धारणा की नींव का हिस्सा है, जैसे कि परमेश्‍वर स्वयं के परमेश्‍वर में एक "हम" को प्रकट करता है। परमेश्‍वर ने मनुष्य को रचा है, और मनुष्य को परमेश्‍वर के स्वरूप पर रचा गया है (पुरुष और स्त्री दोनों ही के पास उसका स्वरूप पाया जाता है) और वह अन्य सभी प्राणियों के ऊपर विशेष है। इस बात पर विशेषता देने के लिए परमेश्‍वर मनुष्य को पृथ्वी पर और अन्य सभी प्राणियों के ऊपर अधिकार देता है। परमेश्‍वर मनुष्य को आशीर्वाद देता है और उसे आदेश देता है कि उसे पुनरुत्पादन करना है, पृथ्वी को भर देना और इसे अपने वश में कर लेना है (पृथ्वी को परमेश्‍वर के अधिकृत के रूप में मनुष्य के वास्तविक दायित्व के नियन्त्रण में लाया गया है)। परमेश्‍वर ने घोषणा की कि मनुष्य और अन्य सभी प्राणी ही वनस्पति को खाएँगे। परमेश्‍वर आहार सम्बन्धी प्रतिबन्धों को उत्पत्ति 9: 3-4 तक नहीं लाता है।

परमेश्‍वर का रचनात्मक काम छठे दिन के अन्त में पूरा हो गया है। पूरा ब्रह्माण्ड अपनी सुन्दरता और पूर्णता के साथ पूरी तरह से छह-शाब्दिक, समवर्ती, 24-घण्टे के दिनों में रच लिया गया था। सृष्टि के पूरा होने पर परमेश्‍वर ने घोषणा की कि यह बहुत अच्छी है।

उत्पत्ति दिन 7 (उत्पत्ति 2:1-3)
परमेश्‍वर विश्राम करता है। यह किसी भी तरह ऐसा इंगित नहीं करता है कि वह अपने रचनात्मक प्रयासों से थक चुका था, परन्तु यह दर्शाता है कि सृष्टि के रचे जाने का कार्य पूरा हो गया है। इसके अतिरिक्त, परमेश्‍वर सातवें दिन में विश्राम करने की एक पद्धति को स्थापित कर रहा था। इस दिन का पालन करना अन्ततः परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों के लिए एक विशिष्ट गुण होगा (निर्गमन 20: 8-11)।

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