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प्रश्न

कन्फ्यूशीवाद क्या है?

उत्तर


कुन्फ़्यूशियसी धर्म, आशावादी मानवतावाद पर आधारित एक धर्म है, जिसका जीवन, सामाजिक संरचना, और चीन के राजनीतिक दर्शन पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इस धर्म की स्थापना एक व्यक्ति की ओर ले जाती है, जिसे कन्फ्यूशियस के नाम से जाना जाता है, जिसका जन्म मसीह से 500 वर्षों पहले हुआ था। कुन्फ़्यूशियसी धर्म मुख्यतः नैतिक आचरण और नैतिक जीवन का निपटारा करता है और अक्सर एक धर्म की अपेक्षा एक नैतिक पद्धति के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। यह सांसारिकता, स्वर्गीय नहीं, पर जोर देता है। कुन्फ़्यूशियसी धर्म के धर्म सिद्धान्तों में केन्द्रीय स्थान पर :

1. पूर्वज की उपासना करना — मृतक पूर्वजों की पूजा करना, जिनकी आत्माओं में ऐसा विश्‍वास किया जाता कि वे उनके वंशजों के भाग्य को नियन्त्रित करती हैं।

2. संतानोचित धर्मपरायणता — युवा सदस्यों के द्वारा परिवार के बुजुर्गों के प्रति श्रृद्धा और आज्ञाकारिता और सम्मान को देना।

कुन्फ़्यूशियसी धर्म के मूलभूत सिद्धान्त यह हैं:
1. जेन — सुनहरा नियम
2. चुन-ताई — पुण्य करने वाला सज्जन व्यक्ति
3. चेंग-मिंग — समाज की भूमिकाओं को उचित रूप में अदा करना
4. ते — पुण्य की शक्ति
5. ली — आचरण के आदर्श मापदण्ड
6. वेन — शान्तिपूर्ण कला का उपयोग करना (संगीत, काव्य, इत्यादि)

कन्फ़्यूशियसी धर्म की नैतिक पद्धति में इसकी सराहना करने के लिए बहुत कुछ है, क्योंकि सदाचार सदैव एक व्यक्ति और एक समाज दोनों के लिए ही बहुत अधिक इच्छित होता है। यद्यपि, जिस नैतिक दर्शन को कन्फ्यूशियस लेकर आया वह स्व-प्रयास से प्राप्त होने वाली था, जिसमें परमेश्‍वर की कोई आवश्यकता या कोई स्थान ही नहीं था। कन्फ्यूशियस ने शिक्षा दी कि मनुष्य अपने जीवन और संस्कृति को सुधारने के लिए आवश्यक सब कुछ करने में सक्षम है, इसकी प्राप्ति करने के लिए उसे स्वयं के भीतर के गुणों के ऊपर निर्भर रहना होता है। तथापि, बाइबल आधारित मसीही विश्‍वास इसके बिल्कुल विपरीत ही शिक्षा देता है। न केवल मनुष्य के पास "स्वयं के कार्मों को शुद्ध करने की क्षमता" की कमी होती है, अपितु वह अपने स्वभाव से भी परमेश्‍वर को प्रसन्न करने या स्वर्ग में अनन्त जीवन प्राप्त करने में सक्षम नहीं है।

बाइबल शिक्षा देती है कि मनुष्य जन्म से स्वाभाविक रूप से पापी है (यिर्मयाह 17: 9) और वह एक पवित्र और पूरी तरह से धर्मी परमेश्‍वर के लिए ग्रहणयोग्य होने के लिए पर्याप्त रीति से भले कामों को करने में भी असमर्थ है। "क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके सामने धर्मी न ठहरेगा" (रोमियों 3:20)। ऐसा करने के लिए, सरल शब्दों में कहना, मनुष्य को उद्धारकर्ता की अत्यधिक आवश्यकता में है। परमेश्‍वर ने उद्धारकर्ता को अपने पुत्र यीशु मसीह में प्रदान किया है, जो हमारे पाप के लिए दण्ड का भुगतान करने के लिए क्रूस के ऊपर मर गया और हमें परमेश्‍वर के लिए ग्रहणयोग्य बना दिया। उसने पापी लोगों के लिए अपने सम्पूर्ण जीवन की अदला-बदली कर दी : "जो पाप से अज्ञात् था, उसी को उसने हमारे लिये पाप ठहराया कि हम उसमें होकर परमेश्‍वर की धार्मिकता बन जाएँ" (2 कुरिन्थियों 5:21)।

कुन्फ़्यूशियसी धर्म, अन्य सभी झूठे धर्मों की तरह ही मनुष्य के कर्मों और क्षमताओं के ऊपर निर्भर है। केवल मसीही विश्‍वास ही पहचानता है कि "सभों ने पाप किया है और सभी परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं" (रोमियों 3:23), और इसके अनुयायी केवल यीशु मसीह पर ही भरोसा करते हैं, जिसका क्रूस के ऊपर किया गया बलिदान उन सभी लोगों को मुक्ति प्रदान करता है, जो उसके ऊपर विश्‍वास करते हैं और अपने स्वयं में भरोसा नहीं रखते हैं, परन्तु केवल उसी में ही भरोसा करते हैं।

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