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प्रश्न

कलीसिया की सदस्यता क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर


विश्‍वव्यापी कलीसिया — मसीह की देह (रोमियों 12:5) — मसीह में पाए जाने वाले सभी सच्चे विश्‍वासियों से मिलकर बनी है और स्थानीय कलीसिया विश्‍वव्यापी कलीसिया की एक सबसे छोटी इकाई है। विश्‍वासियों के रूप में, हमारे नाम मेम्ने की जीवन की पुस्तक (प्रकाशितवाक्य 20:12) में लिखे हुए हैं और यही सबसे महत्वपूर्ण बात है। यद्यपि, स्थानीय कलीसिया के प्रति समर्पण भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है, जहाँ हम अपने संसाधनों को दे सकते हैं, दूसरों की सेवा कर सकते हैं और उत्तरदायी हो सकते हैं।

बाइबल औपचारिक रूप से कलीसियाई सदस्यता की धारणा को सीधे सम्बोधित नहीं करती है, परन्तु ऐसे कई सन्दर्भ हैं, जो आरम्भिक कलीसिया में इसके अस्तित्व को दृढ़ता से दर्शाते हैं। "और परमेश्‍वर की स्तुति करते थे, और सब लोग उनसे प्रसन्न थे : और जो उद्धार पाते थे, उनको प्रभु प्रतिदिन उनमें मिला देता था" (प्रेरितों के काम 2:47)। यह वचन इंगित करता है कि कलीसिया में "मिल" जाने के लिए उद्धार प्राप्ति एक शर्त थी। प्रेरितों 2:41 में, ऐसा प्रतीत होता है कि कोई उन लोगों की गिनती का लिपिबद्ध दस्तावेज बना रहा था, जो बचाए गए थे और जो इस प्रकार कलीसिया में सम्मिलित हुए थे। आज कलीसियाएँ जो सदस्यता से पहले मुक्ति की आवश्यकता पर जोर देती हैं, बाइबल के नमूने का पालन कर रही हैं। 2 कुरिन्थियों 6:14-18 को भी देखें।

नए नियम में अन्य स्थान भी हैं, जो दिखाते हैं कि स्थानीय कलीसिया एक अच्छी-तरह से परिभाषित किया हुआ समूह है: प्रेरितों के काम 6:3 में, यरूशलेम में कलीसिया को किसी तरह के चुनाव का आयोजन करने के लिए कहा जाता है: "अपने में से सात पुरूषों को चुन लो।" वाक्यांश अपने में से उन लोगों के समूह को सुझाव देता है, जो प्रेरितों से अलग थे, जो "उनमें से" नहीं थे। सीधे शब्दों में कहें तो, डीकन कलीसिया के सदस्य थे।

कलीसिया की सदस्यता इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पास्टर के दायित्वों को परिभाषित करने में सहायता प्रदान करती है। इब्रानियों 13:17 निर्देश देता है कि, "अपने अगुवों की आज्ञा मानो और उनके अधीन रहो, क्योंकि वे उनके समान तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते हैं जिन्हें लेखा देना पड़ेगा।" एक पास्टर किसके प्रति जवाबदेह हो सकता है, केवल उसकी कलीसिया के सदस्यों के प्रति? वह संसार के सभी मसीही विश्‍वासियों के प्रति उत्तरदायी नहीं है, केवल उनके प्रति जो उसकी देखभाल के अधीन हैं। इसी प्रकार, वह अपने समुदाय के सभी लोगों के लिए उत्तरदायी नहीं है, केवल उन विश्‍वासियों के लिए जो उसकी अगुवाई के अधीन हैं – अर्थात् उसकी कलीसिया के सदस्य के लिए। स्थानीय कलीसिया में सदस्यता स्वेच्छा से एक व्यक्ति के द्वारा स्वयं को पास्टर के आत्मिक अधिकार के अधीन लाने का एक तरीका है।

कलीसियाई सदस्यता इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बिना, कोई जवाबदेही या कलीसियाई अनुशासन नहीं हो सकता है। पहले कुरिन्थियों 5:1-13 शिक्षा देते हैं कि एक कलीसिया को उसके मध्य पाए जाने वाली लापरवाही, न पश्‍चाताप किए हुए पाप से कैसे निपटना है। वचन 12-13 में, कलीसिया की देह के सन्दर्भ में अन्दर और बाहर जैसे शब्दों का उपयोग किया गया है। हम केवल उन ही लोगों का न्याय करते हैं, जो कलीसिया के "अन्दर" – अर्थात् कलीसिया के सदस्य हैं। आधिकारिक सदस्यता रजिस्टर के बिना हम कैसे जानते हैं कि कलीसिया के "अन्दर" या "बाहर" कौन है? मत्ती 18:17 को भी देखें।

यद्यपि आधिकारिक कलीसियाई सदस्यता को पाने के लिए कोई पवित्रशास्त्रीय आदेश नहीं दिया गया है, तथापि निश्‍चित रूप से इसे प्रतिबन्धित करने जैसा भी कुछ नहीं है और ऐसा प्रतीत होता है कि आरम्भिक कलीसिया इस तरह से निर्मित की गई थी कि लोग स्पष्ट रूप से जानते थे कि एक व्यक्ति कलीसिया के "अन्दर" था या "बाहर"। कलीसियाई सदस्यता स्वयं को विश्‍वासियों के स्थानीय इकाई के साथ पहचानने और उचित आत्मिक नेतृत्व के लिए उत्तरदायी बनाने के लिए एक तरीका है। कलीसियाई सदस्यता एक भाव होने और एक ही-मन वाले होने का एक कथन है (फिलिप्पियों 2:2 को देखें)। संगठनात्मक उद्देश्यों के लिए भी कलीसियाई सदस्यता मूल्यवान है। यह निर्धारित करने का एक अच्छा तरीका है कि महत्वपूर्ण कलीसियाई निर्णयों के ऊपर मतदान करने की अनुमति किसके पास है और किसके पास नहीं और कौन कलीसिया की आधिकारिक पद को पाने के लिए योग्य है और कौन नहीं। मसीही विश्‍वासियों को कलीसिया की सदस्यता की आवश्यकता नहीं है। ऐसा कहना सरल तरीके से यह कहना है कि, "मैं एक मसीही विश्‍वासी हूँ और मेरा मानना है कि यह कलीसिया एक अच्छी कलीसिया है।"

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