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प्रश्न

एक मसीही विश्‍वासी की आराधना का क्या अर्थ है?

उत्तर


शब्द "आराधना" (प्रोसकोनियों) के लिए नए नियम में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद किया गया है, उसका अर्थ अक्सर "भूमि पर नीचे गिर जाने" या "किसी के सामने झुकने" से होता है। आराधना आत्मा का एक व्यवहार क्योंकि यह एक आन्तरिक, व्यक्तिगत् कार्य है, इसलिए, मसीही विश्‍वासी सप्ताह के सातों दिन हर समय आराधना में बने रहते हैं। जब मसीही विश्‍वासी औपचारिक रूप से आराधना में इकट्ठे होते हैं, तब भी महत्व प्रभु की आराधना को व्यक्तिगत् रूप से किए जाने के ऊपर ही होता है। भले ही एक सभा के हिस्से के रूप में ही क्यों न हो, प्रत्येक भाग लेने वाले को इस बात की जानकारी की आवश्यकता है कि वह परमेश्‍वर की आराधना व्यक्तिगत् आधार पर कर रहा है।

मसीही विश्‍वासी की आराधना का स्वभाव अन्दर से बाहर आना है और इसके दो समान महत्वपूर्ण गुण होते हैं। हमें "आत्मा और सच्चाई में" होकर परमेश्‍वर की आराधना करनी चाहिए (यूहन्ना 4:23-24)। आत्मा में आराधना करने का शारीरिक मुद्रा से कुछ भी लेना देना नहीं है। इसका लेना देना हमारे आन्तरिक मन से है और इसमें बहुत सी बातों की आवश्यकता होती है। प्रथम, हमारा नया जन्म हुआ होना चाहिए। पवित्र आत्मा के हमारे भीतर वास किए बिना, हम परमेश्‍वर को आराधना में प्रतिक्रिया इसलिए नहीं दे सकते हैं, क्योंकि हम उसे नहीं जानते हैं। "परमेश्‍वर की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेश्‍वर का आत्मा" (1 कुरिन्थियों 2:11ब)। हम में वास करता हुआ पवित्र आत्मा ही है, जो हमें आराधना के लिए ऊर्जा प्रदान करता है, क्योंकि वह अपने सार में स्वयं की महिमा करता है, और सारी सच्ची आराधना परमेश्‍वर को महिमा प्रदान करती है।

दूसरा, आत्मा में आराधना करने के लिए एक ऐसे मन की आवश्यकता होती है, जिसका ध्यान परमेश्‍वर के ऊपर ही केन्द्रित हो और जो सत्य के द्वारा नवीनीकृत हो। पौलुस हमें उपदेश देता है कि, "तुम अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्‍वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ। यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल- चलन भी बदलता जाए" (रोमियों 12:1ब, 2ब)। केवल जब हमारे मन सांसारिक बातों से हटते हुए परमेश्‍वर के ऊपर केन्द्रित होने के लिए परिवर्तित होते हैं, तब ही हम आत्मा में आराधना कर सकते हैं। जब हम परमेश्‍वर की स्तुति और महिमा करने का प्रयास करते हैं, तब ध्यान को भंग करने के लिए कई प्रकार के विकार हमारे मन में बाढ़ की तरह आ सकते हैं, जिससे हमारी सच्ची आराधना में बाधा आ जाती है।

तीसरा, हम केवल शुद्ध, खुले और पश्चातापी मन के साथ ही आत्मा में आराधना कर सकते हैं। जब राजा दाऊद का मन बेतशेबा के साथ किए हुए पाप के कारण आत्मग्लानि के साथ भर गया (2 शमूएल 11), तब उसे आराधना करना कठिन प्रतीत हुआ। उसने महसूस किया कि परमेश्‍वर उससे दूर है और वह "दिन भर कराहते" इसलिए रहा, क्योंकि उसने परमेश्‍वर के भारी हाथ के नीचे दबा हुआ होना महसूस किया (भजन संहिता 32:3, 4)। परन्तु जब उसने अपने पाप का अंगीकार कर लिया, परमेश्‍वर के साथ उसकी संगति पुनर्स्थापित अर्थात् बहाल हो गई और आराधना और स्तुति उसके मन से बहने लगी। वह समझ गया कि "टूटा मन परमेश्‍वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्‍वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता है" (भजन संहिता 51:17)। परमेश्‍वर की ओर स्तुति और आराधना अ-पश्चाताप से भरे हुए मन से नहीं आ सकती है।

सच्ची आराधना का दूसरा गुण यह है कि जब इसे "आत्मा में" किया जाता है। सारी आराधना सत्य के प्रति प्रतिउत्तर है और परमेश्‍वर के वचन को छोड़ सत्य के मापने के लिए कौन सा मापक हो सकता है? यीशु ने अपने पिता से कहा, "तेरा वचन सत्य है" (यूहन्ना 17:17ब)। भजन संहिता 119 कहता है, "तेरा वचन सत्य है" (वचन160अ)। परमेश्‍वर की सच्ची आराधना करने के लिए, हमें यह समझना चाहिए कि वह कौन है और उसने क्या किया है, और इसके लिए बाइबल ही एकमात्र ऐसा स्थान है, जहाँ पर उसने स्वयं को पूरी तरह से प्रकाशित किया है। आराधना परमेश्‍वर की ओर हमारे मन की गहराई से निकलनी वाली स्तुति की अभिव्यक्ति है, जिसे उसके वचन के द्वारा समझा जाता है। यदि हमारे पास बाइबल का सत्य नहीं है, हम परमेश्‍वर को नहीं जानते और हम सच्चाई के साथ आराधना नहीं कर सकते हैं।

क्योंकि बाहरी बातें मसीही आराधना में द्वितीय स्थान पर हैं, इसलिए हमारे पास कैसे बैठना चाहिए, खड़े होना, दण्डवत् करना, चुप रहना, या कैसे स्तुति के भजनों को गाना चाहिए इत्यादि के लिए सामूहिक आराधना में कोई नियम नहीं हैं। इन बातों को मण्डली के स्वभाव के ऊपर आधारित होकर निर्णय लिया जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम परमेश्‍वर की आराधना आत्मा में (हमारे मनों में) और सच्चाई में (हमारे मनों में) करते हैं।

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