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प्रश्न

मसीही पति के होने के बारे में बाइबल क्या कहती है?

उत्तर


बाइबल एक मसीही विश्‍वासी पति के होने के बारे में इतना अधिक बात करती है कि इसके बारे में एक पुस्तक लिखी जा सकती है। सच्चाई तो यह है कि इसके बारे में कई पुस्तकें लिखी गई हैं। यह लेख इसी विषय पर एक संक्षिप्त अवलोकन देता है।

एक मसीही पति का सबसे अधिक स्पष्ट चित्र इफिसियों 5:15-33 में प्रस्तुत किया गया है। यह प्रेरित पौलुस के द्वारा मसीह में होने का क्या अर्थ होता है, के ऊपर दी गई शिक्षाओं के निहितार्थ का केन्द्र बिन्दु है, अर्थात् इसका अर्थ है कि परमेश्‍वर के साथ सही सम्बन्ध में होना। वचन 23वें से आरम्भ होने वाले मसीही पत्नी के लिए दिए गए पौलुस के निर्देश बताते हैं कि वह अपने पति में इस तरह के अगुवे को पहचानती है, जैसा मसीह अपनी अतिप्रिय कलीसिया के लिए है। दो वाक्यों के पश्‍चात् (वचन 25 में) पौलुस उसी बात को सीधे मसीही पति से कहता है। इस तरह से, मसीही पति के आचरण के लिए आदर्श स्वयं यीशु मसीह है। दूसरे शब्दों में, परमेश्‍वर अपेक्षा करता है कि मसीही पति अपनी पत्नियों से बलिदान से भरा हुआ, पूरी तरह से और बिना किसी शर्त के प्रेम करें, ठीक वैसे ही जैसे हमारा उद्धारकर्ता हमसे प्रेम करता है।

मसीही पति से उसकी पत्नी के लाभ और कल्याण के लिए, यदि आवश्यक हो, तो अपने जीवनदायी-लहू सहित सब कुछ देने के लिए तैयार रहने की अपेक्षा की जाती है। परमेश्‍वर की योजना यह है कि क्योंकि पति और पत्नी एक हो जाते हैं (मरकुस 10:8), इसलिए जो कुछ पति का है, वह पत्नी से सम्बन्धित हो जाता है। प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं होता है (1 कुरिन्थियों 13:5); इसमें केवल देना ही होता है। मसीही पति की पत्नी अपनी पत्नी के लिए उत्तेजना, रोमांचक प्रेम-सम्बन्ध, या यौन इच्छा से परे होती है। यह सम्बन्ध सच्चे प्रेम – अर्थात् परमेश्‍वर-प्रतिबिम्बित, बलिदान की परमेश्‍वर के द्वारा दी गई भावना के ऊपर आधारित होता है। मसीही पति अपनी पत्नी के कल्याण के विषय में स्वयं की तुलना में अधिक रुचि रखता है। वह उसके आत्मिक कल्याण को अनन्त जीवन के साथी-उत्तराधिकारी के रूप में बढ़ावा देता है (1 पतरस 3:7)। वह यह नहीं पूछता कि वह उस से क्या प्राप्त कर सकता है, परन्तु सोचता है कि वह उसके लिए क्या कुछ, और उस के लिए क्या कर सकता है।

इफिसियों 5 वर्णित करता है कि कैसे एक प्रेम से पूर्ण मसीही पति अपनी पत्नी के लिए मसीह के प्रेम का साधन होता है, और साथ ही साथ उसकी कलीसिया के लिए मसीह के प्रेम का एक आदर्श अर्थात् नमूना होता है। यह कितना बड़ा सम्मान है! और कितना बड़ा दायित्व है। केवल यीशु मसीह की जीवित सामर्थ्य के प्रति अधीन होकर ही कोई भी व्यक्ति ऐसी चुनौती को पूरा कर सकता है। यही कारण है कि उसे पवित्र आत्मा (इफिसियों 5:18) की सामर्थ्य पर भरोसा करना चाहिए और मसीह के प्रति सम्मान से अपनी पत्नी की सेवा में समर्पित हो जाना चाहिए (वचन 21 और शेष सन्दर्भ)।

कई बार एक मसीही पति पिता भी होता है। पति और पिता की भूमिकाएँ भिन्न होती हैं। परमेश्‍वर ने कई उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यौन सम्बन्ध स्थापित करने के लिए व्यक्तियों के रूप में पुरुष और स्त्री को रचा है। एक उद्देश्य यह था कि हमें उन जाति को स्थिर बनाए रखते हुए, ऐसे लोगों के साथ इस पृथ्वी को भर दें, जो परमेश्‍वर की गवाही दें और उसके स्वरूप को प्रतिबिम्बित करने का आनन्द उठाए। उत्पत्ति 1:27-28 और 2:20-25 को, व्यवस्थाविवरण 6:1-9 और इफिसियों 6:4 के साथ देखें। परिवार-मसीही परिवार — मानव जाति के लिए परमेश्‍वर की योजना के केन्द्र में है और यही मानव समाज की नींव है। पति उस परिवार का प्रधान है। ठीक वैसे ही जैसे एक मसीही पति पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से पृथक हो अपनी पत्नी को प्रेम और नेतृत्व प्रदान नहीं कर सकता है, वैसे ही वह पवित्र आत्मा की सामर्थ्य को एक ओर रखते हुए परमेश्‍वर के उपदेश के साथ अपने बच्चों को प्रेम और उनका पालन पोषण नहीं सकता है। पति और पिता एक गहन उत्तरदायित्व और सौभाग्य को थामे हुए हैं। जब वे परमेश्‍वर की खोज करते हैं और उसकी अगुवाई का अनुसरण करते हैं, तब वे अपने परिवारों की अच्छी सेवा करते हैं और मसीह के नाम के प्रति सम्मान ले आते हैं।

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