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प्रश्न

क्या बाइबल साम्यवाद का समर्थन करती है?

उत्तर


समाजवाद की एक शाखा कम्यूनिस्ट अर्थात् साम्यवाद, आदर्शों के एक समूह की एक प्रयोगात्मक पद्धति के ऊपर पर आधारित है, जो पहली दृष्टि में बाइबल के कुछ धर्मसिद्धान्तों के साथ सहमत है। तथापि, निकटता से जाँच करने पर, थोड़े से प्रमाण पाए जाते हैं कि बाइबल वास्तव में साम्यवाद का समर्थन या अनुमोदन करती है या नहीं। साम्यवाद के सिद्धान्त और साम्यवाद के व्यवहार में अन्तर है, और बाइबल के वचन जो साम्यवादी आदर्शों का पालन करते हैं, वास्तव में एक साम्यवादी सरकार के तरीकों के विपरीत है।

प्रेरितों के काम 2 में कलीसिया के वर्णन में एक आश्चर्यजनक वाक्य पाया जाता है, जिसके कारण कई लोग आश्चर्य में पड़ गए हैं कि बाइबल साम्यवाद का समर्थन करती है या नहीं, और कुछ लोग इस विचार को दृढ़ता से बचाव करने के लिए प्रेरित हुए हैं कि साम्यवाद वास्तव में बाइबल आधारित है। इन सन्दर्भों में ऐसे लिखा है, "और सब विश्‍वास करनेवाले इकट्ठे रहते थे, और उन की सब वस्तुएँ साझे की थीं। और वे अपनी अपनी सम्पत्ति और सामान बेच-बेचकर जैसी जिस की आवश्यकता होती थी बाँट दिया करते थे" (प्रेरितों के काम 2:44-45)। यह कथन साम्यवाद (जिसके केन्द्र में ही, "चारों ओर सम्पन्नता फैलाने" के द्वारा निर्धनता को दूर करने की इच्छा है) के निहितार्थ को देती हुई प्रतीत होती है, जो कि यहाँ आरम्भिक कलीसियाओं में पाया जाता था। यद्यपि, प्रेरितों के काम 2 में वर्णित कलीसिया और एक साम्यवादी समाज के मध्य में एक महत्वपूर्ण अन्तर है, जिसे अवश्य ही समझना चाहिए।

प्रेरितों के काम 2 की कलीसिया में, लोग एक दूसरे को अपनी वस्तुओं के साथ उनकी आवश्यकतानुसार साझा कर रहे थे और एक दूसरे को मुफ्त में इस शर्त को एक किनारे करते हुए दे रहे थे कि किस को कितना दिया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, उन्होंने जो कुछ उनके पास उसका साझा एक दूसरे के साथ बिना अपने प्रेम में होकर और एक सामान्य लक्ष्य — मसीह के लिए जीवन यापन करना और परमेश्‍वर की महिमा को ले आने को, सामने रख कर किया। एक साम्यवादी समाज में, लोग इसलिए देते हैं, क्योंकि वहाँ पर उन्हें देने के लिए मजबूर करने के लिए सरकार शासन पद्धति होती है। देने के इस विषय में उनके पास कोई विकल्प नहीं है कि उन्हें कितना देना है और वे इसे किसे देते हैं। इसलिए यह इस बात को प्रतिबिम्बित नहीं करता है, कि वे कौन हैं; यह उनकी पहचान या चरित्र के बारे में कुछ नहीं कहता है। साम्यवाद के अधीन, उदारता से, बिना कुड़कुड़ाए देने वाला और कँजूस मनुष्य दोनों ही को एक ही जैसी राशि देना आवश्यक होता है — अर्थात्, सब कुछ जिसे वे कमाते हैं।

यहाँ पर विषय प्रसन्नता के साथ देने (जिसका समर्थन बाइबल करती है) बनाम मजबूरी के साथ देने की है। दूसरा कुरिन्थियों 9:7 कहता है, "हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे; न कुढ़ कुढ़ के और न दबाव से, क्योंकि परमेश्‍वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है।" कुल मिलाकर, बाइबल में निर्धनों की सहायता करने के लिए बहुत सारे सन्दर्भ पाए जाते हैं, जो कुछ हमारे पास है, उसके साथ उदार होना है, और कम भाग्यशाली लोगों की खोज करनी है। जब हम इस क्षेत्र में हर्ष से भरे हुए मन के साथ आज्ञापालन करते हैं, तो हमारा देना परमेश्‍वर को प्रसन्नता ले आता है। जो बात परमेश्‍वर को प्रसन्न नहीं करती है, वह हमारी ओर से मजबूरी से देना है, क्योंकि मजबूरी से दिया जाने वाला दान प्रेम में होकर नहीं दिया जा रहा है और इसलिए आध्यात्मिक अर्थों में कुछ भी लाभ उत्पन्न नहीं करता है। पौलुस कुरिन्थियों के विश्‍वासियों को ऐसे कहता है, "और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति कंगालों को खिला दूँ, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं" (1 कुरिन्थियों 13:3)। प्रेमरहित देना ही साम्यवाद का अनिवार्य परिणाम है।

पूँजीवाद वास्तव में एक उत्तम पद्धति है, परन्तु जब देने की बात आती है, तब क्योंकि, तो इसने व्यक्तिगत् सम्पत्ति में वृद्धि होने को प्रमाणित किया है, जो अपने नागरिकों को अपनी वृद्धि में से देने की अनुमति प्रदान करता है। साम्यवाद ने, उन थोड़ों को छोड़कर जो सत्ता में हैं, जो यह तय करते हैं कि धन कहाँ जाता है, न केवल अपने सभी नागरिकों को निर्धन बना दिया है। परन्तु, साथ ही पूँजीवाद भी निर्धनों की सहायता करने के लिए एक पद्धति के रूप में स्वयं ही कार्य नहीं करेगा। यह नागरिकों के परिश्रम (नीतिवचन 10: 4) और उनके श्रम के प्रतिफल के साथ उदार होने के ऊपर (1 तीमुथियुस 6:18) और परमेश्‍वर और पड़ोसी को अपने प्रेम में होकर देने के ऊपर निर्भर करता है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि परमेश्‍वर ने निर्धनों की शारीरिक और आर्थिक आवश्यकताओं को किसी सरकारी पद्धति की अपेक्षा मसीही विश्‍वासियों के द्वारा पूरा किए जाने के लिए रूपरेखित किया है।

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