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प्रश्न

क्या बाइबल में रूपक पाए जाते हैं?

उत्तर


एक रूपक एक कहानी है, जिसमें पात्र और/या घटनाएँ अन्य घटनाओं, विचारों या लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतीक होते हैं। अभी तक के साहित्य के इतिहास में रूपक एक सामान्य साहित्यिक हथियार रहा है। राजनीति की आलोचना करने और सत्ता में रहने वाले लोगों को ताड़ना देने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से अलोकप्रिय या विवादास्पद विचार को व्यक्त करने के लिए रूपकों का उपयोग किया गया है (उदाहरण के लिए, जॉर्ज ऑरवेल रचित पशु का बाड़ा और जोनाथन स्विफ्ट रचित गुलीवर की यात्राएँ नामक पुस्तकें)। अन्य समयों में, रूपकों का उपयोग एक विस्तारित रूपक के द्वारा अमूर्त विचारों या आत्मिक सत्यों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है, जिससे सत्य को समझना आसान हो जाता है (उदाहरण के लिए, जॉन बनियन रचित मसीही मुसाफिर या यात्रा स्वप्नोदय और हन्ना हर्नर्ड रचित हिंड्स के पैर ऊँची पहाड़ियों पर नामक पुस्तकें)।

बाइबल में आत्मिक सत्यों को समझाने या बाद की घटनाओं की प्रतिछाया को दिखाने के लिए उपयोग किए जाने वाले रूपकों के कई उदाहरण सम्मिलित हैं। पवित्रशास्त्र में रूपकों के सबसे स्पष्ट उदाहरण यीशु के दृष्टान्त हैं। इन कहानियों में, पात्र और घटनाएँ परमेश्‍वर के राज्य या मसीही जीवन के बारे में सच्चाई का प्रतिनिधित्व करती हैं। उदाहरण के लिए, मत्ती 13: 3-9 में बीज बोने के दृष्टान्त में, बीज और विभिन्न प्रकार की मिट्टी परमेश्‍वर के वचन और इसकी विभिन्न प्रतिक्रियाओं को चित्रित करती है (जैसा कि यीशु वचन 18-23 में बताता है)।

उड़ाऊ पुत्र की कहानी भी रूपक का ही उपयोग करती है। इस कहानी में (लूका 15:11-32), छोटा पुत्र एक सामान्य व्यक्ति के: पाप से भरे हुए जीवन और स्वार्थ की प्रवृति के होने का प्रतिनिधित्व करता है। धनी पिता परमेश्‍वर का प्रतिनिधित्व करता है, और पुत्र के सुखवादी जीवन की कठोरता और बाद में, गरीबी दुष्ट जीवन शैली के खालीपन का प्रतिनिधित्व करती है। जब पुत्र वास्तविक निराशा के साथ घर वापस लौटता है, तो हमारे पास पश्‍चाताप का एक उदाहरण मिलता है। पिता की दया और अपने पुत्र को वापस पाने की इच्छा में, जब हम पाप से मुड़ते हैं और उसकी क्षमा चाहते हैं तो हम परमेश्‍वर की प्रसन्नता को देखते हैं।

दृष्टान्तों में, यीशु सम्बन्धित आत्मिक धारणाओं के रूप में अमूर्त आत्मिक धारणाओं (कैसे लोग सुसमाचार, परमेश्‍वर की दया, इत्यादि के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं) को सिखाता है। हम इन कहानियों के माध्यम से परमेश्‍वर की सच्चाई की गहरी समझ को प्राप्त करते हैं। बाइबल के रूपकों के अन्य उदाहरणों, जैसे कि साहित्यिक रूप में, प्रकाशितवाक्य 12:1-6 में दिए हुए अजगर और स्त्री का दर्शन सम्मिलित है; यहेजकेल 17 में उकाबों और अंगूर की लता की कहानी; और कई नीतिवचन, विशेष रूप से जो प्रतीकात्मक समांतरता में लिखी गए हैं, सम्मिलित हैं।

बाइबल में परमेश्‍वर के द्वारा स्थापित कुछ परम्पराओं और अनुष्ठानों को "गैर-साहित्यिक रूपक" माना जा सकता है, क्योंकि वे आत्मिक सत्य के प्रतीक हैं। उदाहरण के लिए, पशु बलिदान का कार्य दर्शाता है कि हमारे पाप के कारण हम मृत्यु की प्राप्ति के योग्य हैं, और वेदी पर प्रत्येक विकल्प ने मसीह के अन्तिम बलिदान को पूर्वनिर्धारित कर दिया, जो उसके लोगों के लिए मरेगा। विवाह की संस्था, बड़े व्यावहारिक उद्देश्यों को पूरा करते हुए, मसीह और उसकी कलीसिया के मध्य के सम्बन्धों की चिन्ह भी है (इफिसियों 5:31-32)। मूसा के कई अनुष्ठानिक नियम (जैसे कपड़े, खाद्य पदार्थ, और शुद्ध और अशुद्ध वस्तुओं के सम्बन्ध में) आत्मिक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जैसे विश्‍वासियों को एक भिन्न आत्मा में जीवन में व्यतीत करने और गैर-विश्‍वासियों की गतिविधियों से दूर रहने की आवश्यकता है। यद्यपि, इन उदाहरणों को व्यक्तिगत् रूप से रूपक सोचते हुए विचार नहीं किया जा सकता है (क्योंकि एक रूपक के साथ कई प्रतीकों को एक साथ काम करने की आवश्यकता होती है), पुराने नियम (और नए नियम के कुछ अंश) की धार्मिक पद्धति को परमेश्‍वर के साथ मनुष्यों के सम्बन्ध के लिए व्यापक रूप से देखा जा सकता है।

रूचिपूर्ण बात यह है कि कभी-कभी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं में, जो कि पहली दृष्टि में प्रकट नहीं होतीं, कोई गहरा अर्थ नहीं होता है, परन्तु जिनकी बाद में एक महत्वपूर्ण शिक्षा सिखाने के लिए रूपक के रूप में व्याख्या की जाती है। इसका एक उदाहरण गलतियों 4 है, जहाँ पौलुस ने अब्राहम, हाजिरा और सारा की कहानी को पुराने और नए नियम के लिए एक रूपक के रूप में व्याख्या की है। वह लिखता है कि, "यह लिखा है कि अब्राहम के दो पुत्र हुए; एक दासी से और एक स्वतन्त्र स्त्री से। परन्तु जो दासी से हुआ, वह शारीरिक रीति से जन्मा; और जो स्वतन्त्र स्त्री से हुआ, वह प्रतिज्ञा के अनुसार जन्मा। इन बातों में दृष्‍टान्त है : ये स्त्रियाँ मानो दो वाचाएँ हैं, एक तो सीनै पहाड़ की जिससे दास ही उत्पन्न होते हैं; और वह हाजिरा है। और हाजिरा मानो अरब का सीनै पहाड़ है, और आधुनिक यरूशलेम उसके तुल्य है, क्योंकि वह अपने बालकों समेत दासत्व में है। पर ऊपर की यरूशलेम स्वतन्त्र है, और वह हमारी माता है" (गलातियों 4:22–26)। यहाँ, पौलुस वास्तविक, ऐतिहासिक लोगों (अब्राहम, हाजिरा और सारा) को लेता है और उन्हें मूसा की व्यवस्था (पुराने वाचा) और मसीह की स्वतन्त्रता (नया वाचा) के प्रतीक के रूप में उपयोग करता है। पौलुस की रूपक वाले दृष्टि के माध्यम से, हम देखते हैं कि परमेश्‍वर के साथ हमारा सम्बन्ध स्वतन्त्रता का है (हम ईश्‍वरीय प्रतिज्ञा की सन्तान हैं, जैसा कि इसहाक सारा के लिए था), दासत्व की नहीं (हम मनुष्य के दासत्व की सन्तान नहीं हैं, क्योंकि इश्माएल हाजिरा के लिए था) । पौलुस, पवित्र आत्मा की प्रेरणा के माध्यम से, इस ऐतिहासिक घटना का प्रतीकात्मक महत्व देख सकता था और इसे मसीह में हमारी स्थिति को दर्शाने के लिए उपयोग करता है।

आसान शब्दों का उपयोग करते हुए आत्मिक विषयों को समझाने के लिए रूपक एक सुन्दर कलात्मक तरीका है। बाइबल के रूपकों के माध्यम से, परमेश्‍वर हमें एक और अधिक प्रासंगिक सन्दर्भ के माध्यम से कठिन धारणाओं को समझने में सहायता प्रदान करता है। वह स्वयं को कहानी सुनाने महान् व्यक्ति के रूप में भी प्रकट करता है, वह इतिहास की प्रतिछाया में और अपनी योजना को पूरा करने के लिए काम करता है। हम इस बात में आनन्द मना सकते हैं कि हमारे पास एक ऐसा परमेश्‍वर है, जो हमें उन तरीकों में सम्बोधित करता है, जिसे हम समझ सकते हैं और जिसने हमें स्वयं को स्मरण दिलाने के लिए प्रतीकों और रूपकों को प्रदान किया है।

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