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प्रश्न

गर्भपात के पश्चात् एक स्त्री को चँगाई और स्वास्थ्य-लाभ कैसे प्राप्त हो सकता है?

उत्तर


दुख की बात है कि गर्भपात होने और इसके पश्चात् पश्चाताप का होना एक बहुत ही सामान्य अनुभव है। जबकि जो कुछ भी हो गया है, उसे पूर्व जैसा नहीं बनाया जा सकता है, तथापि, गर्भपात के पश्चात् स्त्रियाँ चँगाई और स्वास्थ्य लाभ के अनुभव की पुनर्प्राप्ति कर सकती हैं। सारी सांत्वना और चँगाई का परमेश्‍वर गर्भपात के दु:ख और दर्द को कम करने में सक्षम होने से कहीं अधिक और वह स्त्रियों में जीवन और आनन्द को पुनर्स्थापित अर्थात् बहाल कर सकता है।

यद्यपि, बच्चे सदैव ही एक आशीष होते हैं, वे सदैव ऐसी परिस्थितियों में नहीं आते हैं, जो सबसे अधिक आशीषों के अधीन होती हैं। विवाह-पूर्व यौन सम्बन्ध अक्सर एक अनचाहे बच्चे के गर्भधारण का परिणाम बन जाता। यह ऐसे व्यक्ति के लिए एक भयावह अनुभव प्रमाणित हो सकता है, जो ऐसे दायित्व को उठाने के लिए आर्थिक, भावनात्मक, या शारीरिक रूप से तैयार नहीं है। कई स्त्रियाँ और किशोर लड़कियाँ जो गर्भपात कराने के लिए निर्णय लेते हैं, वे डरी हुई, भ्रमित, हताश और अत्यन्त संवेदनशील होती हैं। उत्तर प्राप्ति की अपनी खोज में, वे इस विश्‍वास को स्वीकार करने में मूर्ख बन जाती हैं कि अजन्मा बच्चा वास्तव में विस्तार करते हुए "ऊतकों के टुकड़े" मात्र हैं, न कि वे जन्म लेने-से-पूर्व का एक मनुष्य हैं। अक्सर यह प्रकाशन बाद में ही गर्भपात के पश्चात् होने वाले तनाव सिन्ड्रोम या रोग लक्षणों, आत्मग्लानि और अवसाद के रूप में आता है।

उसके लिए शुभ सन्देश है, जिसने गर्भपात कराया है, और यह कि परमेश्‍वर उसे भी क्षमा प्रदान करता है, जो इसकी माँग करते हैं। रोमियों 3:22 कहता है कि, "हम परमेश्‍वर की दृष्टि में सही कर दिए जाते हैं, जब हम यीशु मसीह के ऊपर हमारे पापों को उठा लेने के लिए भरोसा करते हैं। और हम सभी इसी तरह से बचाए जा सकते हैं, चाहे हम कोई भी क्यों न हों और चाहे हम कुछ भी क्यों न किया हो।" (अंग्रेजी का एन एल टी अनुवाद)। चँगाई के लिए परमेश्‍वर के पास आने में अभी बहुत अधिक देर नहीं हुई है। ऐसा कुछ भी नहीं, जिसे हमने किया है, जो इतना अधिक बुरा है कि उसकी क्षमा ही नहीं हो सकती है। परमेश्‍वर इस क्षमा को दिए जाने की प्रस्तावना देता है, और वह मन और हृदय की शान्ति को भी प्रदान करता है, यदि हम इसे प्राप्त करने के लिए केवल मसीह, यीशु में अपने विश्‍वास को रखें, जिस से कि उसका हमारे जीवन में स्थायी निवास और अधिकार हो सके।

कुछ स्त्रियाँ, जो पहले से ही मसीही विश्‍वासी हैं, ने भी स्वयं को ऐसी ही परिस्थितियों में पाया है, जहाँ उन्होंने गर्भपात कराने का निर्णय लिया है, कदाचित् वे भय में हैं कि कहीं उन्हें मसीही समुदाय के द्वारा स्वीकार किया जाएगा, जब उनके विवाह-पूर्व यौन सम्बन्ध रखे जाने के उनके निर्णय स्पष्टता के साथ प्रमाण सहित प्रगट हो जाएँगे। चाहे एक मसीही स्त्री जानती है कि परमेश्‍वर गर्भपात के बारे में क्या सोचता है, इस से वह अवसाद के कारण निराशा का अनुभव कर सकती है कि उसे "साक्ष्य" से छुटकारा मिलना चाहिए। यह सम्भवतः, कुछ अंश तक, एक कलीसिया का उत्तरदायित्व है, जो हो सकता है कि हमारे साथ ही इस स्थिति में स्त्रियों को कोई भी समर्थन न दे। इन स्त्रियों को आश्‍वस्त करना अति महत्वपूर्ण है कि यद्यपि, परमेश्‍वर उनके कार्यों को स्वीकार नहीं करता है, तथापि वह क्षमा और छुटकारा देने के लिए तैयार है। ऐसा ही उस मसीही स्त्री के लिए भी सच है, जो गर्भपात करा चुकी है। हाँ, यह गलत है, यह एक जीवन को समाप्त करना है, परन्तु यह अक्षम्य नहीं है। बाइबल कहती है कि उन लोगों के ऊपर दण्ड की कोई आज्ञा है, जो मसीह यीशु से सम्बन्ध रखते हैं (रोमियों 8:1), और जब हम परमेश्‍वर से क्षमा माँगते हैं, तो वह स्वतन्त्रता के साथ इसे प्रदान करता है। ऐसा इसलिए नहीं है, क्योंकि हम इसके योग्य हैं, अपितु इसलिए क्योंकि यह हमारे परमेश्‍वर का प्रेमी स्वभाव है।

जब एक स्त्री को गर्भपात से होने वाले परिणामों का पता चलता है, तो उसे स्वयं को क्षमा करना कठिन हो सकता है। परन्तु परमेश्‍वर नहीं चाहता कि हम सदैव के लिए दोषी ठहरें; वह चाहता है कि हम अपनी गलतियों से शिक्षा प्राप्त करें और उनसे उसके लिए और स्वयं के लिए लाभ को ले आएँ। इसके लिए बहुत अधिक प्रार्थना की आवश्यकता होगी, जो कि परमेश्‍वर के साथ साधारण वार्तालाप करना है। प्रार्थना करने और बाइबल का अधिक अध्ययन करने से हमें परमेश्‍वर को और अधिक अच्छी तरह से जानने में सहायता मिलती है। जिससे कि हम उस पर भरोसा करें ताकि वह हमें चँगा कर सके और हम उसके काम को करने के लिए अच्छी रीति से सुसज्जित हो सकें। एक कार्य के ऊपर विचार करते रहने की अपेक्षा, एक स्त्री को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वह अपने अनुभव को दूसरों की सहायता के लिए उपयोग करे। उसे सबसे पहले मसीही परामर्शदाता के पास अपने अनुभव से छुटकारा पाने के लिए जाना चाहिए, क्योंकि यह दर्दनाक हो सकता है। परन्तु इसके पश्चात्, यदि वह प्रभु में भरोसा करती है, तो वह दृढ़ और आत्मिक रूप से परिपक्व हो जाएगी। वह एक अनुभव में से होकर निकली है, जिसमें परमेश्‍वर ने उसके चरित्र को दृढ़ बनाने और दूसरों की सेवा करने के लिए उसे तैयार करते हुए सक्षम किया है।

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