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प्रश्न

यीशु की शिक्षा की मूल बातें क्या हैं?

उत्तर


यीशु के उपदेश की मूल बातें इतनी अधिक सरल हैं कि, यहाँ तक कि एक बच्चे को भी समझ में आते हैं; वे आत्मिक हैं, तथापि प्रतिदिन के जीवन के लिए हैं। मूल रूप से, यीशु ने सिखाया कि वह प्रतिज्ञा किए हुए मसीह की भविष्यद्वाणी की पूर्ति है, यह कि परमेश्वर को नियमों का पालन करने के लिए बाहरी दिखावे से कहीं अधिक आज्ञाकारिता की आवश्यकता है, यह कि उद्धार उन लोगों के पास आता है जो मसीह में विश्वास करते हैं, और न्याय अविश्वासी और अपश्चातापी के लिए आ रहा है।

यीशु मसीह ने सिखाया कि सभी को उद्धार की आवश्यकता है और जीवन में एक व्यक्ति की स्थिति इस बात पर कोई प्रभाव नहीं डालती कि वह परमेश्वर को कितना मूल्य देता है; मसीह जीवन के सभी क्षेत्रों से लोगों को बचाने के लिए आया था। एक व्यक्ति के अतीत के पाप क्षमा प्राप्ति के प्रति उसके लिए किसी तरह की कोई योग्य भूमिका को पूरा नहीं करते हैं, और यीशु ने अपने अनुयायियों को उसी तरह दूसरों को क्षमा करने के लिए प्रोत्साहित किया है (मत्ती 18:21–35; लूका 7:47)। जक्कई एक धनी कर संग्रहकर्ता था, जो निस्संदेह अपने गृहनगर में सभी के द्वारा तुच्छ माना जाता था (लूका 19:7), परन्तु यीशु ने उसके साथ समय बिताया। यीशु ने कहा, "आज इस घर में उद्धार आया है" (लूका 19:9)। इसका क्या कारण है? जक्कई ने यीशु पर भरोसा किया, जो इस तथ्य से प्रदर्शित होता है कि उसने अपने अतीत के पापों से पश्चाताप किया और स्वयं को उदारता के जीवन के लिए दे देने की प्रतिज्ञा की (लूका 19:8)। यीशु ने अलोचना करने वाले पर्यवेक्षकों से कहा कि, "मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूँढ़ने और उनका उद्धार करने आया है" (लूका 19:10)। उसने इस बात की परवाह नहीं की कि "खोया" हुआ व्यक्ति धनी या निर्धन, स्त्री या पुरूष, भिखारी या राजा था। सभी को नया जन्म लेने की आवश्यकता है (यूहन्ना 3:3)।

यीशु ने यह भी सिखाया कि परमेश्वर के उद्धार की प्राप्ति का मार्ग अच्छे कार्यों के माध्यम की अपेक्षा विश्वास का है। उसने विश्वास की बड़ाई की (लूका 7:9) और उन लोगों को चुनौती दी जो अपने कामों पर भरोसा करते थे (मत्ती 7:22–28)। एक धनी युवा शासक ने एक बार यीशु से पूछा, "हे उत्तम गुरु, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूँ?" (मरकुस 10:17)। यीशु ने एक प्रश्न के साथ उत्तर दिया: "तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक अर्थात् परमेश्‍वर" (मरकुस 10:18)। मसीह अपने ईश्वरत्व या अपनी स्वयं की भलाई से इन्कार नहीं कर रहा था, परन्तु वह जानता था कि यह युवक यीशु को मसीह के रूप में नहीं पहचाना था। अपने प्रश्न में, यीशु उन बातों की ओर संकेत कर रहा था, जिसके प्रति इस व्यक्ति ने सोचा था कि जो उसे "अच्छा" बनाती हैं, वह झूठी थीं, क्योंकि कोई भी स्वयं को शाश्वत जीवन जीने के लिए अच्छा बनाने के लिए कुछ नहीं कर सकता (यूहन्ना 14:6)। यीशु के समय के यहूदी धर्मगुरु का दृष्टिकोण भी युवा शासक वाला ही था, जो यह सिखाते थे कि परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने से एक व्यक्ति परमेश्वर के सामने स्वीकार्य हो सकता है। आज भी ऐसे हजारों लोग हैं जो गलती से अपने "अच्छे" जीवन के बारे में सोचते हैं और यह सोचते हैं कि उनके "अच्छे" कार्य उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति के लिए पर्याप्त होंगे।

यीशु ने इस धनी व्यक्ति से कहा कि वह अपना सारा धन छोड़ दे और उसके पीछे हो ले (मरकुस 10:21)। यीशु ने कहा कि ऐसा इसलिए नहीं है कि दान देना एक व्यक्ति को धर्मी बनाता है, परन्तु, क्योंकि वह जानता था कि युवक का परमेश्वर पैसा था। युवक ने केवल यही सोचा था कि वह व्यवस्था का पालन कर रहा है; परन्तु लालच उसे नाश कर रहा था। वह दुःखी होते हुए यीशु से दूर हो गया, क्योंकि "वह बहुत अधिक धनी था" (मरकुस 10:22)। मसीह ने सिखाया कि वह अकेला ही अनन्त जीवन का स्रोत है। यदि कोई शाश्वत जीवन प्राप्त करना चाहता है, तो उसे अकेले ही मसीह का अनुसरण और उसकी आराधना करनी चाहिए (यूहन्ना 6:45–51; 8:31; 10:27; 15:4, 14)।

यीशु की शिक्षा के मूल में परमेश्वर के राज्य के आने का शुभ सन्देश निहित है। सुसमाचारों में शब्द राज्य को पचास से अधिक बार उल्लेख किया गया है। यीशु के कई दृष्टान्त राज्य के बारे में थे (मत्ती 13:3–9; 13:24–30; 13:31–32; 13:33)। सच्चाई तो यह है कि, यीशु ने कहा कि वह आने वाले राज्य के लिए शिक्षा देने के लिए भेजा गया था (लूका 4:43)।

यीशु ने शिक्षा दी कि उसकी पृथ्वी पर सेवकाई के आरम्भ होने के साथ ही परमेश्वर के राज्य का आगमन हो गया था। इसका प्रमाण : भविष्यद्वाणी की पूर्ति में, अन्धे को दृष्टि प्रदान किया जाने में, मृतकों को जीवित करने में, और पापों को क्षमा कर दिया जाने में स्पष्ट प्रगट हुआ था। परन्तु यीशु ने यह भी शिक्षा दी कि राज्य का एक अन्य पहलू भी है, जो अभी आना शेष है (लूका 9:27)। उसका राज्य बढ़ रहा है और किसी दिन स्पष्ट रूप से विद्यमान होगा (लूका 13:18-21)। जिसे सामान्य रूप से "प्रभु की प्रार्थना" में, मसीह ने परमेश्वर के राज्य में आने के लिए प्रार्थना करने के लिए कहा (मत्ती 6:10)। यीशु ने अपने अनुयायियों को उनकी बुलाहट को स्मरण रखने की शिक्षा दी: वे परमेश्वर के अनुग्रह के औजार हैं, क्योंकि वे मसीह के आने के शुभ सन्देश को साझा करते हैं। जितने अधिक लोग राजा यीशु के अधीन होंगे, उतना ही अधिक उसका साम्राज्य संसार को दिखाई देगा।

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यीशु की शिक्षा की मूल बातें क्या हैं?
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