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प्रश्न

यदि यीशु हमारा प्रायश्चित है, तो वह प्रायश्चित के दिन के स्थान पर फसह के दिन क्यों मरा?

उत्तर


पुराने नियम के प्रत्येक बलिदान मसीह की प्रतिछाया हैं। फसह या पास्का, का बलिदान एक प्रकार से परमेश्वर के मेम्ने के रूप में प्रभु यीशु मसीह की प्रतिछाया थी। फसह का मेम्ना बिना दाग और धब्बा के एक नर होना चाहिए था, और जिसकी कोई हड्डी नहीं टूटनी चाहिए थी। यीशु ने इस चित्र को पूर्ण सिद्धता के साथ पूरा किया। जैसे इस्राएलियों ने विश्वास के साथ बलिदान के लहू लगाया था, वैसे ही हम आज मसीह के निष्कलंक लहू को अपने मनों की "अंलगों" के ऊपर लगाते हैं। इन सभी तरीकों से, "हमारा भी फसह, जो मसीह है, बलिदान हुआ है" (1 कुरिन्थियों 5:7)।

एक आपत्ति कभी-कभी उठ खड़ी होती है कि फसह के बलिदान को प्रायश्चित नहीं माना जाना चाहिए; अपितु, योम किप्पुर (प्रायश्चित का दिन) के दिन बलिदान के माध्यम से यहूदियों के लिए प्रायश्चित प्रदान किया गया था। फलस्वरूप, यीशु, जो फसह के दिन मारा गया था और जिसे नए नियम में "हमारा फसह" कहा जाता है, पाप के लिए प्रायश्चित नहीं हो सकता है।

इस आपत्ति का सामना करने के दो तरीके हैं। पहला यह इस बात को दिखाने के लिए है कि यीशु ने योम किप्पुर के प्रतीक को कैसे पूरा किया। यीशु ने हमारे पापों को अपने शरीर में लिए हुए (1 पतरस 2:24) और प्रत्येक व्यक्ति के लिए मृत्यु के स्वाद को चखा (इब्रानियों 2:9)। ऐसा करने से, उसने योम किप्पुर की तुलना में एक सर्वोत्तम बलिदान को दिया — सर्वोत्तम इसलिए क्योंकि मसीह का बलिदान स्थायी, स्वैच्छिक था, और यह न केवल पाप को ढकता है, अपितु इसे पूरी तरह से मिटा भी देता है (इब्रानियों 9:8-14)।

इस आपत्ति के विरूद्ध दूसरी बात यह इंगित करने के लिए है कि यहूदी परम्परा ने वास्तव में फसह के बलिदान को प्रायश्चित के रूप में देखा था; अर्थात्, मेम्ने ने परमेश्वर के दृष्टिकोण से पाप को हटा दिया। फसह के मेम्ने की मृत्यु परमेश्वर के उण्डेले जाने वाले कोप के अधीन हुई थी, इस प्रकार यह उसके पापों को ढक देती है, जो इसी भेंट को परमेश्वर के पास लाता है। एक अति सम्मानीय मध्ययुगीन यहूदी टीकाकार राशी का यहाँ कहना है कि: "मैं फसह के लहू को देखता हूँ और तुझ से सन्तुष्ट होता हूँ... मैं नम्रता से फसह के लहू और खतने के लहू के द्वारा तेरी दया को ले लेता हूँ, और मैं तेरी आत्मा को प्रसन्न करता हूँ" (उदाहरण. राशी. 15, 35ब, 35क)।

मिस्र में दसवीं और अन्तिम विपत्ति के समय, फसह के बलिदान ने वास्तव में लोगों को मृत्यु से बचाया था (निर्गमन 12:23)। फसह के लहू के छुटकारे की भेंट के आधार पर, पहलौठा बचा रहा। एक बार फिर से, राशी टिप्पणी करता है कि: "यह ऐसा है कि जैसे एक राजा ने अपने पुत्रों से कहा कि: 'तुम जानते हो कि मैं लोगों के मृत्युदण्ड सम्बन्धी आरोपों का न्याय करता हूँ और उन्हें दोषी ठहराता हूँ। इसलिए मुझे एक भेंट दो, ताकि यदि तुम मेरे न्याय के सिंहासन के सामने लाए जाते हो तो मैं तुम्हारे विरूद्ध अभियोग स्थापित कर सकूँ।' इस कारण परमेश्वर ने इस्राएल से कहा कि: 'मैं अब मृत्युदण्ड के कारण चिन्तित हूँ, परन्तु मैं तुम्हें बताऊँगा कि मैं कैसे तुम्हारे ऊपर दया प्रगट करूँगा और फसह के लहू और खतने के लहू के कारण मैं तुम्हारे लिए प्रायश्चित करूँगा''' (उदाहरण. राशी. 15.12, की टीका निर्गमन 12:10 के ऊपर)।

फसह का मेम्ना प्रायश्चित को लेकर न्याय और छुटकारे वाली संकेत भरी रात में विश्वास करने वाले यहूदी के घरों के ऊपर लाया। रब्बी अब्राहम इब्न एज्रा भी फसह को प्रायश्चित के साथ जोड़ते हैं: "लहू के चिन्ह को घर के भीतर उन लोगों के लिए प्रायश्चित के रूप में रूपरेखित किया गया था, जो फसह की भेंट चढ़ाते हैं, और साथ ही यह घर के आगे से जाने वाले नाश करने वाले स्वर्गदूत के लिए भी चिन्ह था" (सोनसिनो कुमॉश, पृष्ठ 388)।

जब यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने मसीह को देखा, तो उसने उसकी ओर संकेत किया और कहा, "देखो, यह परमेश्‍वर का मेम्ना है, जो जगत का पाप उठा ले जाता है!" (यूहन्ना 1:29)। यीशु "फसह का मेम्ना" है, जिसमें वह स्वयं के ऊपर दोष लगाने वालों के सामने चुप था (यशायाह 53:7) और उसने अपनी मृत्यु में परमेश्वर के क्रोध को सहन किया, उन सभी के जीवन को सुरक्षित किया जो उस पर भरोसा करते हैं, और पाप में रहने वाले भूतपूर्व गुलामों को स्वतन्त्रता प्रदान की।

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यदि यीशु हमारा प्रायश्चित है, तो वह प्रायश्चित के दिन के स्थान पर फसह के दिन क्यों मरा?
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