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प्रश्न

यदि हमारे पापों के लिए दण्ड नरक में अनन्त काल का है, तो यीशु की मृत्यु ने हमारे दण्ड का भुगतान कैसे अदा किया यदि उसने नरक में अनन्त काल व्यतीत नहीं किया?

उत्तर


यदि हम यीशु को केवल एक व्यक्ति के रूप में सोचते हैं, तो ऐसा प्रश्न पूछना स्वाभाविक है। परन्तु यीशु को नरक में अनन्त काल बिताना इसलिए नहीं पड़ा, क्योंकि वह केवल एक व्यक्ति नहीं, अपितु ईश्‍वर-मनुष्य है। ईश्‍वरत्व के दूसरे व्यक्ति ने स्वयं के ऊपर शरीर को धारण कर लिया और मनुष्य के रूप में मनुष्यों के मध्य में रहा। परन्तु वह किसी अन्य व्यक्ति की तरह मात्र एक व्यक्ति नहीं था, क्योंकि उसका स्वभाव ईश्‍वरीय — अर्थात् पवित्र, पूर्ण और अनन्तकालीन था।

कई सन्दर्भ इस सच्चाई को प्रमाणित करते हैं, जैसे यूहन्ना का सुसमाचार के आरम्भ का सन्दर्भ। वहाँ हम निम्नलिखित को पढ़ते हैं:

"आदि में वचन था, और वचन परमेश्‍वर के साथ था, और वचन परमेश्‍वर था। यही आदि में परमेश्‍वर के साथ था। सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ, और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नहीं हुई। और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्‍चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा" (यूहन्ना 1:1–3, 14)।

यह सन्दर्भ स्पष्ट रूप से गवाही देता है कि शाश्‍वतकालीन वचन, जो परमेश्‍वर के साथ सह-शाश्‍वतकालीन है, और परमेश्‍वर के जैसे तत्व में है, ने मानवीय शरीर को स्वयं के ऊपर धारण कर लिया और हमारे मध्य में ("अपना तम्बू लगाया" या "डेरा किया") रहा। जैसा कि प्रेरित पौलुस ने यीशु के बारे में कहा था, "मसीह में ईश्‍वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है" (कुलुस्सियों 2: 9)।

इसे उपरोक्त बात को ध्यान में रखते हुए, आइए प्रश्न पर अधिक निकटता के साथ देखें। यह निश्‍चित रूप से सच है कि हमारे पापों के लिए दण्ड नरक में अनन्त काल का जीवन है। बाइबल कहती है कि सभों ने पाप किया है (रोमियों 3:23) और हमारे पाप की मजदूरी मृत्यु है (रोमियों 6:23)। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक कहती है कि जिनके नाम मेम्ने की जिंदगी की पुस्तक में नहीं हैं, उन्हें आग की झील में डाला जाएगा है, जहाँ उन्हें "युगानुयुग" के लिए पीड़ा दी जाएगी (प्रकाशितवाक्य 20:10,15)।

परन्तु यीशु की मृत्यु कैसे हर व्यक्ति के पापों के लिए प्रायश्‍चित की जा सकती है? यही वह स्थान है, जहाँ यीशु के ईश्‍वरीय व्यक्ति होने की चर्चा आती है। यदि यीशु मात्र एक व्यक्ति (स्वयं के पाप के साथ) ही होता, तो उसकी मृत्यु उसके पाप के लिए भी प्रायश्‍चित नहीं हो सकती थी, तब तो यह दूसरे के पापों के लिए कितनी अधिक कम होगी। परन्तु यीशु मात्र एक व्यक्ति नहीं है; वह मानवीय शरीर में परमेश्‍वर है। एक व्यक्ति के रूप में, वह उन लोगों के साथ पहचान कर सकता है, जिनके लिए उसने स्वयं का बलिदान दिया है। पूरी तरह से पापहीन व्यक्ति होने के कारण वह अपने पाप के लिए प्रायश्‍चित किए बिना मानव जाति के पापों के लिए प्रायश्‍चित कर सकता है। अन्त में, परमेश्‍वर के रूप में, वह परमेश्‍वर के क्रोध को पूरी तरह से सन्तुष्ट कर सकता है, जिसे हमारे पाप ने अर्जित किया है।

एक अनन्तकालीन परमेश्‍वर के विरूद्ध पाप अनन्त काल के दण्ड का भुगतान किया जाना चाहिए। यही कारण है कि हमारे पाप के लिए दण्ड का भुगतान अनन्तकालीन होना चाहिए। दण्ड के अनन्तकालीन भुगतान के लिए केवल दो ही विकल्प पाए जाते हैं। या तो एक सीमित सृष्टि (मनुष्य) को अपने पाप के लिए अनन्त काल के दण्ड लिए भुगतान करना होगा, या अनन्तकालीन (यीशु) को सभी मनुष्यों के लिए एक ही बार भुगतान करना होगा। कोई और दूसरा विकल्प नहीं है। एक अनन्त पवित्र परमेश्‍वर के विरूद्ध किया गया एक पाप समान रूप से अनन्तकालीन सन्तुष्टि की मांग करता है, और यहाँ तक कि नरक में अनन्त काल के लिए पाप का रहना परमेश्‍वर के अनन्तकालीन धर्मी क्रोध को समाप्त नहीं कर सकता है। केवल एक ईश्‍वरीय व्यक्ति ही हमारे पाप के लिए एक पवित्र परमेश्‍वर के अनन्तकालीन क्रोध का सामना कर सकता है। मानव जाति के विरूद्ध परमेश्‍वर के क्रोध की तुष्टि करने के लिए उसके तुल्य ही एक अनन्तकालीन व्यक्ति का होना आवश्यक है। यीशु, ईश्‍वर-मनुष्य के रूप में, एकमात्र सम्भावित उद्धारकर्ता है।

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यदि हमारे पापों के लिए दण्ड नरक में अनन्त काल का है, तो यीशु की मृत्यु ने हमारे दण्ड का भुगतान कैसे अदा किया यदि उसने नरक में अनन्त काल व्यतीत नहीं किया?
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