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प्रश्न

यीशु का स्वर्ग में हमारे लिए मध्यस्थता करने का क्या उद्देश्य है?

उत्तर


यीशु की बात करते हुए, इब्रानियों के लेखक का कहना है कि, "इसी लिये जो उसके द्वारा परमेश्‍वर के पास आते हैं, वह उनका पूरा पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उनके लिये विनती करने को सर्वदा जीवित है" (इब्रानियों 7:25)। यह वचन (और इसके जैसे कई अन्य) हमें बताते हैं कि यद्यपि मसीह की ओर से चुने हुओं के लिए छुटकारे का काम क्रूस पर पूरा हो गया था, जैसा कि उसके विलाप से स्पष्ट है कि "यह पूरा हुआ!" (यूहन्ना 19:30), तथापि उसकी छुटकारा पाई हुई सन्तान के लिए उसका काम कभी भी समाप्त नहीं होगा।

यीशु अपनी पार्थिव सेवकाई के बाद स्वर्ग नहीं गया और उसने अपने लोगों के लिए अनन्त चरवाहे के रूप में अपनी भूमिका से "थोड़ा सा विश्राम" लिया। "क्योंकि बैरी होने की दशा में उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्‍वर के साथ हुआ, तो फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएँगे" (रोमियों 5:10, वचन के तिरछे शब्दों पर जोर दिया गया है)। यदि जब वह विनम्र था, तिरस्कृत हुआ, मरने के लिए आया और मर गया, तब उसके पास हमारे लिए परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप के कार्य को पूरा करने की सामर्थ्य थी, तो हम उससे कितनी अधिक आशा कर सकते हैं कि वह अब हमें बनाए रखने में सक्षम होगा, क्योंकि वह अब एक जीवित, ऊँचा किया हुआ और विजयी उद्धारक है, जो जीवित होने के बाद सिंहासन के सामने हमारी ओर से मध्यस्थता के काम को कर रहा है। (रोमियों 8:34)। स्पष्ट रूप से, यीशु स्वर्ग में हमारी ओर से अभी भी बहुत अधिक अधिक सक्रिय है।

यीशु का स्वर्गारोहण और परमेश्वर के पिता के दाहिने हाथ पर बैठने होने के बाद (प्रेरितों 1:9; कुलुस्सियों 3:1), त्रिएकत्व के दूसरे व्यक्ति के रूप में अपनी शाश्वत भूमिका — राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु को पूरा करने के लिए वह अपनी उस महिमा में वापस लौट गया जो उसके पास देहधारण से पहले थी (यूहन्ना 17:5)। जबकि पुरानी पृथ्वी के ऊपर मसीह के लिए निरन्तर "जय" प्राप्त की जा रही है, यीशु मसीहियों के लिए एडवोकेट अर्थात् अधिवक्ता है, जिसका अर्थ है कि वह हमारा सबसे बड़ा बचावकर्ता है। यही मध्यस्थता की वह भूमिका है जिसे वह वर्तमान में उन लोगों के लिए पूरा करता है, जो उसके हैं (1 यूहन्ना 2:1)। यीशु सदैव हमारी ओर से पिता के सामने हमारे बचाव के लिए पैरवी कर रहा है, मानो कि वह हमारी ओर से बचाव पक्ष का अधिवक्ता है।

यीशु हमारे लिए मध्यस्थता कर रहा है, जबकि शैतान (जिसका नाम "दोष लगाने वाला" है) हम पर दोष लगाते हुए, परमेश्वर के सामने हमारे पापों और कमजोरियों को इंगित करता है, जैसे उसने अय्यूब के साथ किया था (अय्यूब 1:6-12)। परन्तु उसके द्वारा लगाए गए दोष स्वर्ग के बहरे कानों पर जा कर टकराते हैं, क्योंकि क्रूस पर यीशु के काम ने हमारे पाप के ऋण का पूरा भुगतान कर दिया है; इसलिए, परमेश्वर सदैव अपनी सन्तान में यीशु की पूर्ण धार्मिकता को देखता है। जब यीशु क्रूस पर मरा, तो उसकी धार्मिकता (पूर्ण पवित्रता) हम में रोपित कर दी गई, जबकि हमारा पाप उसकी मृत्यु के ऊपर रोप दिया गया था। इसके बारे में 2 कुरिन्थियों 5:21 में पौलुस का सबसे बड़ा वार्तालाप पाया जाता है। वह सदैव के लिए हमारी पापी अवस्था को परमेश्वर के सामने ले गया, इसलिए परमेश्वर हमें उसके सामने दोषरहित स्वीकार करता है।

अन्त में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि यीशु परमेश्वर और मनुष्य के बीच एकमात्र मानवीय मध्यस्थक है। और कोई नहीं है — मरियम और, अतीत में हुआ कोई भी मसीही सन्त नहीं — जिसके पास सर्वशक्तिमान के सिंहासन के सामने हमारी ओर से मध्यस्थता करने की सामर्थ्य है। किसी स्वर्गदूत के पास भी यह पद नहीं है। अकेला मसीह ही ऐसा परमेश्वर-मनुष्य है, और वह परमेश्वर और मनुष्य के बीच मध्यस्थता और मध्यस्थक का काम करता है। "क्योंकि परमेश्‍वर एक ही है, और परमेश्‍वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात् मसीह यीशु जो मनुष्य है" (1 तीमुथियुस 2:5)।

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यीशु का स्वर्ग में हमारे लिए मध्यस्थता करने का क्या उद्देश्य है?
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