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प्रश्न

क्या यह पता लगाना सम्भव है कि यीशु कब आ रहा है?

उत्तर


मत्ती 24:36-44 घोषित करता है, "उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत, और न पुत्र, परन्तु केवल पिता... इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा...इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।" पहली दृष्टि में, ऐसा प्रतीत होता है कि ये वचन इस प्रश्‍न का एक स्पष्ट और मुखर उत्तर प्रदान करते हैं। परन्तु ऐसा नहीं है, कोई भी नहीं जानता कि यीशु कब वापस आ रहा है। तथापि, ये वचन यह नहीं कहते हैं कि कोई भी कभी भी यह नहीं जान सकता है कि यीशु कब वापस आएगा। बाइबल के अधिकांश विद्वान ऐसा कहेंगे कि यीशु, जो अब स्वर्ग में महिमान्वित है, उसके पुन: आगमन के समय के विषय में जानता है, इस वाक्यांश की ओर संकेत करते हुए कि "न ही पुत्र" का अर्थ यह है कि कोई भी कभी नहीं जानता है कि यीशु कब वापस आएगा। इसी तरह से, यह सम्भव है कि, जबकि मत्ती 24:36-44 यह संकेत देता है कि कोई भी किसी समय यह नहीं जान सकता है कि यीशु का पुन: आगमन कब होगा, परमेश्‍वर भविष्य में किसी के ऊपर यीशु के पुन: आगमन के समय को प्रगट कर सकता है।

इसके अतिरिक्त, प्रेरितों के काम 1:7 वचन है, जो यह कहता है, "उन समयों या कालों को जानना, जिनको पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं है।" यह यीशु के द्वारा तब कहा गया है, जब यीशु शिष्यों ने उससे पूछा कि क्या वह इस समय इस्राएल के राज्य की पुनर्स्थापित करने पर था। यह मत्ती 24 में दिए हुए सन्देश की पुष्टि करते हुआ प्रतीत होता है। यह हमारे लिए नहीं है कि हम यीशु के पुन: आगमन के समय को जानें। परन्तु साथ ही यहाँ पर यह प्रश्‍न भी उठ खड़ा होता है कि ये सन्दर्भ किस आगमन को उद्धृत कर रहे हैं। क्या ये मेघारोहण या द्वितीय आगमन के बारे में बात कर रहे हैं। कौन सा आगमन अज्ञात् है — मेघारोहण, द्वितीय आगमन या फिर दोनों ही अज्ञात् हैं? जबकि मेघारोहण अतिशीघ्र घटित होने वाला और रहस्यमयी रूप में प्रस्तुत किया गया है, द्वितीय आगमन का समय अन्त के समय की भविष्यद्वाणी के आधार पर ज्ञात हो सकता है।

इतना कहने के पश्चात्, आइए बहुतायत के साथ स्पष्ट हो जाएँ : हम यह विश्‍वास नहीं करते हैं कि परमेश्‍वर ने किसी के ऊपर यीशु के पुन: आगमन को प्रकाशित किया है, और हम पवित्र शास्त्र में भी ऐसा कुछ नहीं देखते हैं, जो यह संकेत देता है कि परमेश्‍वर किसी के ऊपर यह प्रकाशित करेगा कि यीशु कब आ रहा है। मत्ती 24:36-44, जबकि सीधे ही यीशु के समय के लोगों के लिए बोला गया था, में साथ ही सामान्य सिद्धान्त भी पाया जाता है। यीशु के आगमन और युग के अन्त का समय हमारे जानने का विषय नहीं है। पवित्र शास्त्र कहीं पर हमें तिथि निर्धारित करने के प्रयास के लिए उत्साहित नहीं करता है। इसकी अपेक्षा, हमें सचेत करता है कि, "जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा" (वचन 42)। हमें "तैयार रहना है, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा" (वचन 44)। यीशु मसीह के शब्दों का महत्व तब समाप्त हो जाएगा जब भविष्य में किसी समय कोई यह निर्धारित करने के योग्य हो जाएगा कि वह कब आ रहा है। यदि तिथि की खोज कर ली जाती है, तब हमें और अधिक "जागते रहने" या "तैयार रहने" की कोई आवश्यकता नहीं है। इस तरह से मत्ती 24:36-44 के सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए, किसी के लिए भी उस तिथि का पता लगाना सम्भव नहीं कि यीशु कब आ रहा है।

बाइबल आधारित इस स्पष्ट सिद्धान्त के होने के पश्चात् भी, मसीही इतिहास में अभी तक कइयों ने यीशु के पुन: आगमन की भविष्यद्वाणी करने का प्रयास किए हैं। ऐसी बहुत सी तिथियों को प्रस्तावित किया गया है, और इनमें से सभी गलत ठहरी हैं। दो तिथियाँ अभी वर्तमान समय में लोकप्रिय रूप से प्रस्तावित की गई हैं: मई 21, 2011, और दिसम्बर 21, 2012 हैं। दिसम्बर 21, 2012, की तिथि माया सभ्यता के पंचांग से सम्बन्धित है, जिसके लिए बाइबल आधारित किसी भी प्रमाण को उपयोग नहीं किया गया है। मई 21, 2011 की तिथि को, " न्याय के दिन" की तिथि के रूप में फैमली रेडियो के हेरोल्ड कैंपिंग के द्वारा प्रस्तावित किया गया था। इस बात पर भी ध्यान दिया जाना कि हेरोल्ड कैंपिंग ने पहले भी एक तिथि की भविष्यद्वाणी की थी कि यीशु 1994 में पुन: वापस आ जाएगा। स्पष्ट है, कैंपिंग झूठे ठहरे। कैंपिंग मई 21, 2011 के लिए, पवित्र शास्त्र में प्रमाण होने का दावा करते हैं। जल प्रलय के लिए एक अनुमानित 4990 ईसा पूर्व की तिथि का उपयोग करते हुए और इसे तब 2 पतरस 3:8 में वर्णित "प्रभु के यहाँ एक दिन एक हजार वर्ष के बराबर है" को उत्पत्ति 7:4 में वर्णित सात दिनों के ऊपर लागू करते हुए, और तत्पश्चात् 4990 से 7,000 वर्षों की गणना करते हुए, वह 2011 को परिणामस्वरूप पाते हैं। तब उत्पत्ति 7:11 में प्रयुक्त "दूसरे महीने के सत्रहवें दिन" और इब्रानी पंचांग पर आधारित हो, मई 21 निर्धारित की गई थी। इस कारण क्या कैंपिंग की पद्धति में किसी तरह की कोई वैधता पाई जाती है?

प्रथम, कैंपिंग ने बड़ी ही सुविधा से 2 पतरस 3:8 के अन्तिम आधे हिस्से, "और हजार वर्ष एक दिन के बराबर है," को अनदेखा कर दिया। इसके अतिरिक्त, 2 पतरस 3:8 अन्त के समय के लिए तिथि निर्धारित करने के लिए कोई पद्धति को प्रदान नहीं करता है। इसकी अपेक्षा, यह तो मात्र यह कह रहा है कि परमेश्‍वर समय से परे और इसके ऊपर है। परमेश्‍वर समयहीन, असीम और शाश्‍वतकालीन है। दूसरा, उत्पत्ति 7:4-11 की पृष्ठभूमि में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह संकेत देता है कि "सात दिन" और "दूसरे महीने के सत्रहवें दिन" की व्याख्या जो कुछ परमेश्‍वर ने कहा है, उसे छोड़ कर उसके ऊपर लागू करना चाहिए जो विशेष रूप से परमेश्‍वर नूह से कह रहा है। तीसरा, जल प्रलय की तिथि को सर्वोत्तम तरीके से 4990 ईसा पूर्व में, बिना किसी स्पष्ट बाइबल आधारित प्रमाण के साथ निर्धारित किया गया है। कैंपिंग की मई 21, 2011 की गणना, यहाँ तक कि बाइबल की सबसे सरल मूल जाँच में ही नीचे गिर जाती है। अब, क्या यह यीशु के लिए सम्भव था कि वह मई 21, 2011 के दिन वापस आ जाता? हाँ, परन्तु साथ ही यह उतना ही अधिक सम्भव है कि वह किसी भी अन्य तिथि को भी आ सकता है। क्या कैंपिंग के द्वारा विशेष रूप से तिथि निर्धारण की पद्धति की कोई बाइबल आधारित वैधता पाई जाती है? नहीं, बिल्कुल भी नहीं पाई जाती है। दुर्भाग्य से, कैंपिंग और अन्य लोग निश्चित रूप से भविष्य की कोई नई तिथि की गणना करें और किसी "सूत्र में त्रुटियों" या किसी ऐसी बात की व्याख्या करें जो यह प्रभावित करें कि क्यों उनसे तिथि निर्धारण में गलतियाँ हुई हैं।

मुख्य बिन्दु यह हैं (1) बाइबल कहीं पर भी हमें यीशु के पुन: आगमन की तिथि की खोज करने के प्रयास के लिए प्रोत्साहित नहीं करती है और (2) बाइबल हमें कोई भी ऐसे स्पष्ट आँकड़े नहीं देती है, जिसके द्वारा यीशु के पुन: आगमन की तिथि को निर्धारित किया जा सके। अर्थहीन और अनुमानित गणनाओं को विकसित करते हुए यीशु के पुन: आगमन को निर्धारित करने की अपेक्षा, बाइबल हमें "जागते रहने" और "तैयार रहने" के लिए उत्साहित करती है (मत्ती 24:42-44)। यीशु के आगमन के दिन का अज्ञात् रहना हमें इस बात के लिए प्रेरित करना चाहिए कि हम प्रतिदिन मसीह के आगमन के शीघ्र होने के आलोक में अपने जीवन को व्यतीत करें।

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