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प्रश्न

यीशु और बाइबल दोनों ही परमेश्वर का वचन कैसे हो सकते हैं?

उत्तर


वाक्यांश "परमेश्वर का वचन" बाइबल में अक्सर दिखाई देता है और इसका अर्थ सन्दर्भ और इब्रानी या यूनानी शब्द के आधार पर थोड़ा सा भिन्न हो सकता है। यूहन्ना 1:1-2 कहता है, "आदि में वचन था, और वचन परमेश्‍वर के साथ था, और वचन परमेश्‍वर था। यही आदि में परमेश्‍वर के साथ था।" यहाँ, शब्द वचन प्रभु यीशु की उपाधि के अर्थ को देता है। जिस शब्द का अनुवाद "वचन" के लिए यहाँ किया गया है, वह लॉगोस है, जिसका मूल अर्थ "एक विचार की अभिव्यक्ति" से है। लॉगोस को मनुष्य के लिए परमेश्वर के पूर्ण सन्देश के रूप में सोचा जा सकता है (प्रेरितों के काम 11:1; 1 थिस्सलुनीकियों 2:13)। यीशु ने उस पूर्ण सन्देश को मूर्त रूप दिया, और इसीलिए उसे परमेश्वर का "लॉगोस" या "वचन" कहा जाता है (कुलुस्सियों 1:19; 2:9)।

परमेश्वर के लिखित सन्देश का वर्णन करते समय लॉगोस का भी कई बार उपयोग किया जाता है (यूहन्ना 17:17; 1 तीमुथियुस 4:5; प्रकाशितवाक्य 1:2; कुलुस्सियों 1:25)। इब्रानियों 4:12 कहता है, "क्योंकि परमेश्‍वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है; और प्राण और आत्मा को, और गाँठ-गाँठ और गूदे-गूदे को अलग करके आर-पार छेदता है और मन की भावनाओं और विचारों को जाँचता है।" यीशु ने परमेश्वर के लिखित वचन और स्वयं के वचन होने के बीच एक सम्पर्क को दिखाया है, जिसमें वह स्वयं लिखित वचन की विषय-वस्तु है: "तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है" (यूहन्ना 5:39)।

एक और यूनानी शब्द जिसका उपयोग "वचन" के लिए किया जाता है, वह रेहमा है। रेहमा परमेश्वर के द्वारा वास्तविक रूप से बोले गए/लिखित वचनों को उद्धृत करता है (इब्रानियों 6:5)। जब यीशु की परीक्षा शैतान के द्वारा की जा रही थी, तब उसने उत्तर दिया था कि, "मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन [रेहमा ] से जो परमेश्‍वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा" (मत्ती 4:4)। हमें इफिसियों 6:17 में कहा गया है, "और उद्धार का टोप, और आत्मा की तलवार, जो परमेश्‍वर का वचन [रेहमा ] है, ले लो।" यीशु ने प्रदर्शित किया कि हमें शैतान के आक्रमणों पर जय पाने के लिए परमेश्वर के वास्तविक लिपिबद्ध वचनों की आवश्यकता है।

वाक्यांश "परमेश्वर का वचन" का अर्थ एक पृष्ठ पर मुद्रित शब्दों से कहीं अधिक है। परमेश्वर संवाद स्थापित करने वाला है और आरम्भ से ही मानवीय लोक में बोल रहा है। वह अपनी सृष्टि के माध्यम से (भजन संहिता 19:1), प्राचीन भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से (होशे 12:10; इब्रानियों 1:1), पवित्र आत्मा के माध्यम से (यूहन्ना 16:13; प्रेरितों के काम 16:6), पवित्रशास्त्र के माध्यम से (इब्रानियों 4:12), और अपने पुत्र, यीशु मसीह के व्यक्तित्व के माध्यम से (यूहन्ना 14:9) बोलता है। हम प्रत्येक उस तरीके से उसे सुनने का प्रयास करके जिसमें उसने बोला परमेश्वर को उत्तम रीति से जानना सीख सकते हैं।

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यीशु और बाइबल दोनों ही परमेश्वर का वचन कैसे हो सकते हैं?
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