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प्रश्न

यीशु ने बपतिस्मा क्यों लिया था? यीशु का बपतिस्मा लिया जाना क्यों महत्वपूर्ण था?

उत्तर


पहली दृष्टि में तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि यीशु के बपतिस्मा का कोई उद्देश्य ही नहीं है। यूहन्ना का बपतिस्मा पश्‍चाताप का बपतिस्मा था (मत्ती 3:11), परन्तु यीशु पापहीन था और उसे पश्‍चाताप की आवश्यकता नहीं थी। यहाँ तक कि यूहन्ना भी यीशु के आने पर भी अचम्भित हो गया था। यूहन्ना ने स्वयं के पाप की पहचान की और उसे पता था कि वह एक पापी व्यक्ति है, जिसे स्वयं ही पश्‍चाताप करने की आवश्यकता है, वह निर्दोष मेम्ने को बपतिस्मा देने के लिए उपयुक्त नहीं था: "मुझे तो तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है, और तू मेरे पास आया है?" (मत्ती 3:14)। यीशु ने उत्तर दिया कि ऐसा ही होना चाहिए क्योंकि "इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है" (मत्ती 3:15)।

यीशु की सार्वजनिक सेवकाई के आरम्भ में ही यूहन्ना के द्वारा यीशु को बपतिस्मा देने के लिए कई कारण पाए जाते हैं। यीशु अपने महान काम को आरम्भ करने पर था, और यह उचित था कि उसे अपने अग्रदूत के द्वारा सार्वजनिक रूप से पहचाना जाए। यूहन्ना "जंगल में पुकारने वाली की आवाज" थी, जैसा कि यशायाह ने भविष्यद्वाणी की थी, जो उसके लोगों को उनके मसीह के आगमन की तैयारी में पश्‍चाताप करने के लिए बुलाने आई थी (यशायाह 40: 3)। उसे बपतिस्मा देकर, यूहन्ना यह घोषणा कर रहा था कि वह जिस व्यक्ति की प्रतीक्षा कर रहा था, वह यही परमेश्‍वर का पुत्र था, जिस की उसने भविष्यद्वाणी की थी कि वह "पवित्र आत्मा और आग के साथ" बपतिस्मा देगा (मत्ती 3:11)।

यूहन्ना के द्वारा यीशु के बपतिस्मा लेने में एक अतिरिक्त आयाम जुड़ जाता है, जब हम यह मानते हैं कि यूहन्ना लेवी के गोत्र से और हारून का सीधा वंशज था। लूका विशेष रूप से बताता है कि यूहन्ना के माता-पिता दोनों ही हारून के वंशज में से आने वाले याजक थे (लूका 1: 5) के थे। पुराने नियम में याजकों के दायित्वों में से एक परमेश्‍वर के सामने बलिदान को प्रस्तुत करना था। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के द्वारा यीशु को बपतिस्मा दिया जाना एक याजक के रूप में अन्तिम बलिदान के रूप में देखा जा सकता है। बपतिस्मा के एक दिन पश्‍चात् यूहन्ना के शब्दों में निश्‍चित रूप से याजक के निर्णायक शब्द पाए जाते हैं: "देखो, यह परमेश्‍वर का मेम्ना है जो जगत का पाप उठा ले जाता है!" (यूहन्ना 1:29)।

यीशु के बपतिस्मा ने यह भी दिखाया कि उसने स्वयं की पहचान पापियों के साथ की। उसके बपतिस्मा ने पापियों के बपतिस्मा को मसीह की धार्मिकता में उसके साथ मरने और पाप से मुक्त होने और जीवन की नवीनता में चलने में सक्षम होने का प्रतीक बताया। उसकी सिद्ध धार्मिकता पापियों के लिए व्यवस्था की सभी शर्तों को पूरी करेगी जिसे कोई भी पापी कभी भी स्वयं से पूरी करने की आशा नहीं कर सकता था। जब यूहन्ना परमेश्‍वर के निर्दोष पुत्र को बपतिस्मा देने में हिचकिचाया, तो यीशु ने उत्तर दिया कि "सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है" (मत्ती 3:15)। इसके द्वारा उसने उस धार्मिकता की ओर संकेत दिया जिसे वह उन सभी को प्रदान करता है, जो अपने पापों के स्थान पर उसकी धार्मिकता को ले लेते हैं (2 कुरिन्थियों 5:21)।

इसके अतिरिक्त, यीशु का यूहन्ना के पास आना यूहन्ना के द्वारा दिए जाने वाले बपतिस्मे पर सहमति को दिखाता है, उसकी गवाही देता है, कि वह स्वर्ग की ओर से था और परमेश्‍वर के द्वारा उसे स्वीकृत किया गया था। भविष्य के लिए यह महत्वपूर्ण होगा जब अन्य लोग हेरोदेस की गिरफ्तारी के पश्‍चात् यूहन्ना के अधिकार पर सन्देह करना आरम्भ कर देंगे (मत्ती 14:3-11)।

कदाचित् सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए सार्वजनिक बपतिस्मा का अवसर स्वर्ग से महिमा को प्रकट करना होगा जो कि त्रिएक परमेश्‍वर के सिद्ध देहधारण का प्रतीक है। पुत्र के साथ पिता की प्रसन्नता के स्वर्ग से सीधे ही और यीशु के ऊपर पवित्र आत्मा के उतरने की गवाही (मत्ती 3:16-17) है, जो कि परमेश्‍वर के त्रिएक स्वभाव का एक सुन्दर चित्रण है। यह उन लोगों के उद्धार में पिता, पुत्र और आत्मा को एक साथ कार्य करते हुए भी दर्शाता है, जिन्हें यीशु बचाने के लिए आया था। पिता चुने हुओं को संसार की नींव रखने से पहले ही से प्रेम करता है (इफिसियों 1:4); वह अपने पुत्र को खोए हुओं को बचाने के लिए भेजता है (लूका 1 9:10); और पवित्र आत्मा पाप के प्रति निरूत्तर करता है (यूहन्ना 16:8) और पुत्र के माध्यम से विश्‍वास करने वाले को विश्‍वास दिलाता है। यीशु मसीह के माध्यम से परमेश्‍वर की दया की सारी महिमामयी सच्चाई उसके बपतिस्मा के ऊपर प्रदर्शित होती है।

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