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प्रश्न

क्या परमेश्‍वर का प्रेम सशर्त या शर्तहीन है?

उत्तर


जैसा कि बाइबिल में वर्णित है, परमेश्‍वर का प्रेम स्पष्ट रूप से बिना किसी शर्त का है, जिसमें उसका प्रेम उसके प्रेम के विषय (अर्थात्, उसके लोग) के प्रति यह जानते हुए भी है कि वे उसके प्रति किसी तरह का कोई झुकाव नहीं रखते हैं, में व्यक्त किया जाता है। दूसरे शब्दों में, परमेश्‍वर प्रेम इसलिए करता है क्योंकि उसका स्वभाव ही प्रेम करना है (1 यूहन्ना 4:8), और उसका प्रेम ही उसे परोपकारिता से भरी हुई गतिविधि की ओर ले जाता है। सुसमाचार में परमेश्‍वर का प्रेम बिना किसी शर्त के सबसे अधिक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। सुसमाचार का सन्देश मूल रूप से ईश्‍वरीय छुटकारे की कहानी है। जब परमेश्‍वर उसके विद्रोही लोगों की दुर्दशा के ऊपर ध्यान देता है, वह उन्हें उनके पाप से बचाने के लिए निर्धारित करता है, और यह दृढ़ संकल्प उसके प्रेम पर आधारित होता है (इफिसियों 1:4-5)। रोमियों को लिखे अपने पत्र से प्रेरित पौलुस के इन शब्दों को सुनो:

"क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्‍तिहीनों के लिये मरा। किसी धर्मी जन के लिये कोई मरे, यह तो दुर्लभ है; परन्तु हो सकता है किसी भले मनुष्य के लिये कोई मरने का भी साहस करे। परन्तु परमेश्‍वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा" (रोमियों 5:6-8)।

रोमियों की पुस्तक के पठन् के द्वारा, हम शिक्षा पाते हैं कि हम अपने पाप के कारण परमेश्‍वर से दूर हो गए हैं। हम परमेश्‍वर के साथ शत्रुता में हैं, और उसका क्रोध दुष्टों के विरूद्ध उनके अधर्म के कारण प्रकट किया जा रहा है (रोमियों 1:18-20)। हम परमेश्‍वर को अस्वीकार करते हैं, और परमेश्‍वर हमें हमारे पाप के लिए दे देता है। हम यह शिक्षा भी पाते हैं कि हम सभी ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित हो गए हैं (रोमियों 3:23) और हममें से कोई भी परमेश्‍वर की खोज नहीं कर रहा है, हम में से कोई भी उसकी दृष्टि में वह कार्य नहीं करता जो सही है (रोमियों 3:10-18)।

परमेश्‍वर के विरूद्ध इस शत्रुता और बैर के होने के पश्‍चात् भी (जिसके लिए परमेश्‍वर पूरी तरह से हमें नष्ट करने के लिए स्वयं में धर्मी ठहरेगा), हमारे पापों के लिए परमेश्‍वर अपने पुत्र, यीशु मसीह को प्रायश्चित (अर्थात्, परमेश्‍वर के धार्मिकता से भरे हुए क्रोध की तुष्टि का होना) के रूप में दिए जाने के द्वारा हमारे प्रति अपने प्रेम को प्रगट करता है। परमेश्‍वर ने हमारे पाप के लिए प्रायश्चित करने की शर्त के रूप में हमारी अवस्था के सही हो जाने की प्रतीक्षा नहीं की। इसकी अपेक्षा, परमेश्‍वर एक व्यक्ति बनने और उसके लोगों के मध्य रहने के लिए अपने स्तर से नीचे आ गया (यूहन्ना 1:14)। परमेश्‍वर ने हमारी मानवता का सब कुछ अनुभव किया — सब कुछ का अर्थ है कि मनुष्य बनने के लिए जो कुछ चाहिए होता है — और फिर स्वयं को हमारे पापों के एक वैकल्पिक प्रायश्चित के रूप में स्वेच्छा से प्रस्तुत कर दिया।

इस ईश्‍वरीय छुटकारे के परिणामस्वरूप आत्म-बलिदान का अनुग्रह से भरा हुआ एक कार्य हुआ। जैसा कि यीशु ने यूहन्ना के सुसमाचार में कहा है, "इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे" (यूहन्ना 15:13)। मसीह में, परमेश्‍वर ने सही में इसी कार्य को किया है। पवित्र शास्त्र से दो और प्रसंगों में परमेश्‍वर के प्रेम के शर्तहीन स्वभाव को स्पष्ट किया गया है:

"परन्तु परमेश्‍वर ने जो दया का धनी है, अपने उस बड़े प्रेम के कारण जिस से उसने हम से प्रेम किया, जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे तो हमें मसीह के साथ जिलाया — अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है" (इफिसियों 2:4-5)।

"जो प्रेम परमेश्‍वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ कि परमेश्‍वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है कि हम उसके द्वारा जीवन पाएँ। प्रेम इस में नहीं कि हम ने परमेश्‍वर से प्रेम किया, पर इस में है कि उसने हम से प्रेम किया और हमारे पापों के प्रायश्‍चित के लिये अपने पुत्र को भेजा (1 यूहन्ना 4:9-10)।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि परमेश्‍वर का प्रेम ऐसा प्रेम है जो पहले आरम्भ होता है; यह एक प्रतिक्रिया नहीं है। यही वह कारण है जो इसे बिना किसी शर्त वाला बनाता है। यदि परमेश्‍वर का प्यार सशर्त होता, तो हमें इसे कमाने या योग्य होने के लिए कुछ करना पड़ता। परमेश्‍वर को प्रेम करने में सक्षम होने से पहले हमें किसी भी तरह से उसके क्रोध को तुष्ट करना होता और अपने पाप से स्वयं को शुद्ध करना होता। परन्तु यह बाइबल का सन्देश नहीं है। बाइबल का सन्देश — सुसमाचार — यह है कि परमेश्‍वर अपने प्रेम में उसके लोगों को उनके पाप से बचाने के लिए बिना किसी शर्त से प्रेरित हुआ।

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