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प्रश्न

समय के साथ परमेश्वर का क्या सम्बन्ध है?

उत्तर


हम भौतिक संसार में लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई (या गहराई) और समय के चार ज्ञात् अन्तरिक्षीय-समय आयामों के साथ रहते हैं। यद्यपि, परमेश्वर एक भिन्न क्षेत्र अर्थात् — आत्मिक लोक — में वास करता है जो कि हमारी शारीरिक इन्द्रियों की धारणा से परे है। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर वास्तविक नहीं है; परन्तु यह विषय उसके द्वारा हमारे संसार को नियन्त्रित करने वाले भौतिक कानूनों और आयामों द्वारा सीमित नहीं होने का है (यशायाह 57:15)। यह जानते हुए कि “परमेश्वर आत्मा है” (यूहन्ना 4:24), समय के साथ उसका क्या सम्बन्ध है?

भजन संहिता 90:4 में, मूसा ने परमेश्वर की कालातीतता अर्थात् समय से परे होने का वर्णन करने में अभी तक की एक सरल परन्तु गहन उपमा का उपयोग किया गया है: “क्योंकि हज़ार वर्ष तेरी दृष्‍टि में ऐसे हैं जैसा कल का दिन जो बीत गया, या जैसे रात का एक पहर।” परमेश्वर मनुष्य के अस्थायी होने के विपरीत है। हमारा जीवन छोटा और कमजोर है, परन्तु समय के बीतने के साथ ही परमेश्वर कमजोर या असफल नहीं होता है।

एक अर्थ में, समय को चिन्हित करना परमेश्वर के लिए अप्रासंगिक है क्योंकि वह इससे परे अर्थात् ऊपर है। 2 पतरस 3:8 में, पतरस अपने पाठकों को सावधान करता है कि वे अपने ध्यान में इस महत्वपूर्ण तथ्य को अनदेखा न करे — कि समय के ऊपर परमेश्वर का दृष्टिकोण मानव जाति से भिन्न है (भजन संहिता 102:12, 24-27 को देखें)। हम जैसे समय के साथ बन्धे हुए हैं वैसे ही प्रभु समय के साथ बन्धा हुआ नहीं हैं। वह समय के क्षेत्र से ऊपर और परे है। परमेश्वर अनन्त काल के अतीत और अनन्त काल के भविष्य को देखता है। पृथ्वी पर जो समय बीतता है वह परमेश्वर के समयहीन या कालातीत दृष्टिकोण की एक झपकी मात्र है। एक सेकण्ड एक कल्प से भिन्न नहीं है; एक अरब वर्ष अनन्त परमेश्वर के लिए मानो सेकण्डों की तरह बीत जाते हैं।

यद्यपि हम अनन्त काल या परमेश्वर के समय के साथ बन्धे हुए हैं या उसकी शाश्वतता के इस विचार को सम्भवतः समझ नहीं सकते हैं, हम अपने सीमित मनों में एक अनन्त परमेश्वर के द्वारा हमारे समय को निर्धारित करने का प्रयास करते हैं। जो लोग मूर्खतापूर्वक मांग करते हैं कि परमेश्वर उनकी समय सीमा के अनुसार काम करता है, इस तथ्य को अनदेखा कर देते हैं कि वह “महान् और उत्तम है... जो सदैव स्थिर रहता” (यशायाह 57:15)। परमेश्वर का यह वर्णन मनुष्य की परिस्थिति से बहुत दूर का है: “हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं, और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष भी हो जाएँ, तौभी उनका घमण्ड केवल कष्‍ट और शोक ही शोक है; वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं” (भजन संहिता 90:10)।

एक बार फिर से, हमारे सीमित मनों के कारण, हम परमेश्वर के कालातीत अर्थात् समयहीन अस्तित्व की अवधारणा के एक भाग को ही समझ सकते हैं। और ऐसा करते हुए, हम उसे एक परमेश्वर के रूप में जो अनादि से अनन्त तक, अनन्त, शाश्वत, सदैव बने रहने वाले, इत्यादि के रूप में वर्णित करते हैं। भजन संहिता 90:2 में घोषणा की गई है कि, “अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू ही परमेश्‍वर है” (भजन संहिता 93:2 को भी देखें)। वह सदैव था और सदैव रहेगा।

इस कारण, समय क्या है? इसे सीधे शब्दों में कहें तो समय एक अवधि है। हमारी घड़ियों में परिवर्तन होता है या, अधिक सटीक रूप से, हमारी समय-सीमा में होने वाले परिवर्तन ऐसे मापदण्ड हैं जो समय बीतने का संकेत देते हैं। इसलिए, हम कह सकते हैं, परिवर्तन के लिए समय एक आवश्यक पूर्व निर्धारित शर्त है और परिवर्तन समय के बीतने को स्थापित करने के लिए एक पर्याप्त शर्त है। दूसरे शब्दों में, जब भी किसी प्रकार का परिवर्तन होता है तो हम जानते हैं कि समय बीत चुका है। हम इसे जीवन के बीतने के माध्यम से देखते हैं, जैसे कि जब हम आयु में आगे बढ़ते हैं। और हम उन मिनटों को पुन: प्राप्त नहीं कर सकते हैं जो बीत चुके हैं।

इसके अतिरिक्त, भौतिकी का विज्ञान हमें बताता है कि समय पदार्थ के अस्तित्व में आने व उत्पन्न होने वाली एक सम्पत्ति है। जैसे, समय तब विद्यमान होता है जब पदार्थ विद्यमान होता है। परन्तु परमेश्वर पदार्थ नहीं है; परमेश्वर, सच्चाई तो यह है कि, निर्मित पदार्थ ही नहीं है। निर्णायक बात यह है कि: समय तब आरम्भ हुआ जब परमेश्वर ने ब्रह्माण्ड की सृष्टि की। इससे पहले, केवल परमेश्वर ही विद्यमान था। चूंकि कोई पदार्थ अस्तित्व में नहीं था, और क्योंकि परमेश्वर बदलता नहीं है, इसलिए समय का कोई अस्तित्व नहीं था और इसलिए समय का कोई अर्थ नहीं है, समय का परमेश्वर के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है।

और यह हमें शब्द अनन्त काल के अर्थ तक लाता है। अनन्त काल एक ऐसी शब्दावली है जिसका उपयोग किसी ऐसी चीज़ की अवधारणा को व्यक्त करने के लिए किया जाता है जिसका कोई अन्त नहीं है और/या कोई आरम्भ नहीं है। परमेश्वर का कोई आरम्भ या अन्त नहीं है। वह समय की सीमा से बाहर है। अनन्त काल एक ऐसी चीज नहीं है जो परमेश्वर से पूरी तरह से सम्बन्धित हो सकती है। परमेश्वर भी अनन्त काल से परे है।

जैसा कि हम जानते हैं कि पवित्रशास्त्र से पता चलता है कि परमेश्वर समय के बन्धन से बाहर रहता है। हमारे गंतव्य की योजना “समय के आरम्भ से पहले” (2 तीमुथियुस 1:9; तीतुस 1:2) और “संसार की सृष्टि से पहले” (इफिसियों 1:4; 1 पतरस 1:20) बनाई गई थी। “विश्‍वास ही से हम जान जाते हैं कि सारी सृष्‍टि की रचना परमेश्‍वर के वचन के द्वारा हुई है। पर यह नहीं कि जो कुछ देखने में आता है, वह देखी हुई वस्तुओं से बना हो” (इब्रानियों 11:3)। दूसरे शब्दों में, जिस भौतिक ब्रह्माण्ड को हम देखते हैं, सुनते हैं, महसूस करते हैं और अनुभव करते हैं, वह विद्यमान पदार्थ से नहीं, अपितु भौतिक आयामों से भिन्न एक स्वतंत्र स्रोत के द्वारा रचा हुआ है।

“परमेश्वर आत्मा है” (यूहन्ना 4:24), और, इसी प्रकार, परमेश्वर अनादि काल या समय से परे होने की अपेक्षा कालातीत अर्थात् समयहीन है। समय को परमेश्वर के द्वारा केवल एक सीमित भाग के रूप में ब्रह्माण्ड को संचालित करने और उसकी सृष्टि में किए जाने वाले कार्य के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए रचा था (2 पतरस 3:10-12 को देखें)।

समय की रचना सहित सृष्टि की रचना की गतिविधि के पूरा होने पर, परमेश्वर ने क्या निष्कर्ष निकाला? “परमेश्‍वर ने जो कुछ बनाया था सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है” (उत्पत्ति 1:31)। वास्तव में, परमेश्वर का आत्मा होने के कारण वह कालातीतता अर्थात् समय के क्षेत्र में है।

विश्वासियों के रूप में, हमें यह जानकर सांत्वना की गहरी अनुभूति होती है कि परमेश्वर, यद्यपि कालातीत और शाश्वत है, तौभी हमारे साथ समय में है; वह पहुँच के प्रति पारलौकिक नहीं है, परन्तु हमारे साथ इसी क्षण में यहीं है। और क्योंकि वह इस क्षण में उपस्थित है, वह हमारी आवश्यकताओं और प्रार्थनाओं का उत्तर दे सकता है।

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