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प्रश्न

इसका क्या अर्थ है कि परमेश्‍वर प्रबन्ध करता है?

उत्तर


बाइबल में 169 से अधिक वचन हैं जो परमेश्‍वर के द्वारा प्रबन्ध या मुहैया कराए जाने के तरीकों का उल्लेख करते हैं। फिलिप्पियों 4:19 इसे कुछ ऐसे बताता है: "मेरा परमेश्‍वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है, तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा।" जबकि समृद्धि की चाह रखने वाले सदैव आश्‍चर्यजनक तरीके से धन या सम्पत्ति के आने की खोज कर रहे हैं, हमें यह देखना चाहिए कि परमेश्‍वर हमारे लिए क्या प्रबन्ध करने की इच्छा रखता है।

किसी भी अच्छे माता-पिता की तरह, परमेश्‍वर कभी हमें वह नहीं देगा जिसे वह जानता है कि हमें नुकसान पहुँचाएगा। उसकी मंशा हम में मसीह को विकसित करने में हमारी सहायता करना है ताकि हम संसार में नमक और ज्योति बन सकें (मत्ती 5:13-14)। परमेश्‍वर नहीं चाहते है कि हम उसे केवल भौतिक सम्पत्तियों को देने वाला स्वर्गीय स्रोत ही मानें। वस्तुओं को प्राप्त करना इस जीवन का मूल लक्ष्य नहीं है (लूका 12:15)।

परमेश्‍वर हमारी आवश्यकताओं और हमारी इच्छाओं के मध्य में अन्तर करता है क्योंकि वह जानता है कि जहाँ हमारा खजाना है वहीं हमारा मन होता है (मत्ती 6:21)। वह चाहता है कि हम यह जान लें कि यह संसार हमारा घर नहीं है और हमें जो कुछ चाहिए, उसका बड़ा भाग हमें अभी इसी जीवित जीवन में ही अपने जीवन को अनन्त जीवन में परिवर्तित करने के लिए केन्द्रित करना है।

परमेश्‍वर हमारे अस्तित्व के प्रत्येक भाग: आत्मा, प्राण, और शरीर से सम्बन्धित है। जैसे उसके चरित्र के पहलू अनन्तकालीन हैं, वैसे ही परमेश्‍वर हमारे लिए जिन तरीके को प्रदान करता है, वे ऐसे कुछ हैं जिन्हें हम पूछ सकते हैं या जिनकी हम कल्पना कर सकते हैं (इफिसियों 3:20)। हम उसकी भलाई, मार्गदर्शन और चरवाही से भरी हुई देखभाल के ऊपर भरोसा कर सकते हैं, ताकि हम अपने लिए अधिकाधिक प्राप्त कर सकें। परमेश्‍वर हमारे लिए एक घनिष्ठ, वार्तालापी, आज्ञाकारिता से भरे हुए सम्बन्ध को विकसित करने का एक तरीका प्रदान करता है, ताकि हम स्वयं को और दूसरों को "भजन संहिता 23" में दिए हुए गुणवत्ता से भरे हुए जीवन में ले जा सकें। जिनका चरवाहा परमेश्‍वर है, कह सकते हैं, "मुझे कुछ घटी न होगी" (भजन 23:1)।

प्रभु की प्रार्थना में, यीशु अपने शिष्यों को वस्तुओं को माँगने की शिक्षा देता है, और हर बार जब हम प्रार्थना करते हैं, तो परमेश्‍वर के ऊपर हमारी निर्भरता की पुष्टि की जाती है, "हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे" (मत्ती 6:11)। मत्ती 6:25-34 में, यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वे भोजन या कपड़ों के बारे में चिन्ता न करें। पिता हमारी आवश्यकताओं को जानता है। वह हमारे साथ वाचाई सम्बन्ध को चाहता है, और इसमें उसके द्वारा प्रतिदिन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उस पर भरोसा करना और उसके राज्य और धार्मिकता की खोज सबसे पहले करना सम्मिलित हैं (मत्ती 6:33)।

भजन 84:11 कहता है कि, "...जो लोग खरी चाल चलते हैं, उनसे वह कोई अच्छी वस्तु रख न छोड़ेगा।" इस वचन में एक स्मरण दिलाने वाली बात पाई जाती है कि हमारे जीवन में फल को लाने के लिए हम परमेश्‍वर के प्रावधान को पूरा होने में भूमिका को पूरा करते हैं। हमें खराई में चलना चाहिए।

याकूब 4:3 हमारे प्रश्नों का उत्तर है कि प्रार्थनाओं को कभी-कभी क्यों उत्तर नहीं दिया जाता है: "तुम माँगते हो और पाते नहीं, इसलिये कि बुरी इच्छा से माँगते हो, ताकि अपने भोग-विलास में उड़ा दो।" परमेश्‍वर मनों को देखता है, और हमारी प्रार्थनाओं की प्रेरणा उसके लिए महत्वपूर्ण हैं।

परमेश्‍वर के प्रबन्धों के बारे में कई प्रसंग भोजन और वस्त्रों और प्रतिदिन की, और जीवन के लिए भौतिक शारीरिक आवश्यकताओं से सम्बन्धित हैं। अन्य हमारी आत्मा और प्राण, हमारे भीतर के व्यक्ति की आवश्यकताओं को सन्दर्भित करते हैं। वह हमें शान्ति (यूहन्ना 14:27), सांत्वना (2 कुरिन्थियों 1:4), और "सामर्थ्य, प्रेम और आत्म-अनुशासन" (2 तीमुथियुस 1:7) प्रदान करता है। सच्चाई तो यह है कि, उसने "...हमें मसीह में स्वर्गीय स्थानों में सब प्रकार की आत्मिक आशीष दी है" (इफिसियों 1:3)। चाहे हम कैसे भी शारीरिक अवस्था में क्यों न हों, हम प्रभु में सन्तुष्ट रह सकते हैं (फिलिप्पियों 4:12)।

गलातियों 1:15 और यिर्मयाह 1:5 जैसे प्रसंग हमें आश्‍वासन देते हैं कि गर्भ धारण से पहले भी परमेश्‍वर का प्रेम और मार्गदर्शन आरम्भ हो गया था। यह जानकारी एक उपहार है कि परमेश्‍वर बहुत पहले से ही हमारे जीवन में कार्यरत् है! हमारे लिए उसका प्रेम हमारे लिए सर्वोच्च भलाई की उसकी इच्छा में व्याप्त है। वह वास्तव में यहोवा-यिरे है, अर्थात् ऐसा परमेश्‍वर-जो-मुहैया अर्थात् प्रबन्ध करता है।

परमेश्‍वर का प्रबन्ध उसकी सारी सृष्टि के साथ उसके चलते रहने वाले सम्बन्धों तक विस्तारित होता है, जो कि उस की गहराई के ऊपर निर्भर है (भजन 104:21)। अक्सर, हम जो वर्षा गिरती है, सूर्य जो प्रतिदिन सुबह उगता है, ताज़ा हवाएँ जो उड़ती हैं, और ज्वारभाटा जो हमारे तटों को शुद्ध करते हैं और हमारे विशाल महासागरों में जीवन को सशक्त करते हैं, के महत्व को ही नहीं समझते हैं। परन्तु इन सभी बातों के द्वारा प्रेम से भरे हुए हमारे परमेश्‍वर ने हमारे लिए प्रबन्ध के रूप में देखा है।

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