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प्रश्न

इसका क्या अर्थ है कि परमेश्‍वर सर्वसामर्थी है?

उत्तर


उपसर्ग ओम्नी अर्थात् सर्व लैटिन भाषा से आता है जिसका अर्थ "सभी" से और सामर्थी का अर्थ "शक्तिमान्" होने से है। इसलिये, सर्वसामर्थी कहने से अर्थ यह हुआ है, कि परमेश्‍वर सभी स्थानों पर उपस्थित है। ठीक वैसे ही जैसे सर्वज्ञानी और सर्वव्यापी गुणों के साथ है, इसका अर्थ भी यही है, कि यदि परमेश्‍वर असीमित है, और यह कि यदि वह प्रभुता सम्पन्न है, जिसे हम जानते हैं कि वह है, तब तो उसे अवश्य ही सर्वसामर्थी भी होना चाहिए। उसकी सामर्थ सभी समयों की सभी बातों के ऊपर और सभी तरीकों से है।

अय्यूब ने 42:2 में परमेश्‍वर की सामर्थ्य के बारे में बात की है : "मैं जानता हूँ कि तू सब कुछ कर सकता है, और तेरी युक्ति में से कोई रूक नहीं सकती है।" अय्यूब स्वीकार कर रहा था, कि परमेश्‍वर का सर्वसामर्थी होना उसकी योजनाओं को पूरा करता है। मूसा को भी परमेश्‍वर के द्वारा स्मरण दिलाया गया था, कि उसके पास इस्राएलियों के सम्बन्ध में उसके प्रयोजनों को पूरा करने के लिए पूरी सामर्थ्य है: "यहोवा ने मूसा से कहा, 'क्या यहोवा का हाथ छोटा हो गया है? अब तू देखेगा कि मेरा वचन जो मैं ने तुझ से कहा है वह पूरा होता है कि नहीं'" (गिनती 11:23)।

परमेश्‍वर का सर्वसामर्थी होना सृष्टि से कहीं अधिक ज्यादा स्पष्टता के साथ नहीं दिखाई देता है। परमेश्‍वर ने कहा, "उजियाला हो...." और यह हो गया (उत्पत्ति 1:3, 6, 9, इत्यादि)। मनुष्य को किसी वस्तु की रचना करने के लिए औजारों और सामग्रियों की आवश्यकता होती है" परन्तु परमेश्‍वर ने बस कहा और उसके वचन की सामर्थ्य से, शून्य में से सब कुछ रचित हो गया। "आकाशमण्डल यहोवा के वचन से, और उसके सारे गण उसके मुँह की श्‍वास से बने" (भजन संहिता 33:6)।

परमेश्‍वर की सामर्थ्य अपनी सृष्टि को संभाले रखने में भी दिखाई देती है। पृथ्वी का सभी तरह का जीवन नष्ट हो जाता यदि परमेश्‍वर इसके लिए निरन्तर प्रबन्ध नहीं करता, जैसे कि हमें भोजन, वस्त्र और रहने के लिए आश्रय की आवश्यकता पड़ती है, यह सब कुछ नवीकृत होते हुए संसाधनों से मनुष्य और जानवरों दोनों को अपनी सामर्थ्य से संभाले रखने के लिए उसने उपलब्ध किए हैं (भजन संहिता 36:6)। महासागर जो अपने में पृथ्वी के सबसे अधिक भाग को ढक लेता है, और जिसके ऊपर हम सामर्थ्यहीन हैं, यदि परमेश्‍वर इसकी सीमाओं को निर्धारित न करता तो यह हमें आश्चर्य में डाल देता (अय्यूब 38:8-11)।

परमेश्‍वर का सर्वसामर्थी होना सरकारों और अगुवों तक विस्तार है (दानिय्येल 2:21), क्योंकि वही उन्हें रोकता है या उन्हें अपनी योजनाओं और उद्देश्यों के अनुसार उनके मार्गों पर चलने की अनुमति प्रदान करता है। शैतान और उसकी दुष्टात्माओं की तुलना में उसकी सामर्थ्य असीमित है। शैतान का अय्यूब पर किया हुआ आक्रमण कुछ निश्चित कार्यों तक ही सीमित था। उसे परमेश्‍वर की असीमित सामर्थ्य के द्वारा पुनर्स्थापित अर्थात् बहाल कर दिया गया था (अय्यूब 1:12, 2:6)। यीशु ने पिलातुस को स्मरण दिलाया कि उसके पास उसके ऊपर कोई सामर्थ्य नहीं दी गई परन्तु उसे यह अधिकार सर्वसामर्थी परमेश्‍वर की ओर से प्रदान किया गया था (यूहन्ना 19:11)।

सर्वसामर्थी होने के नाते, परमेश्‍वर कुछ भी कर सकता है। तथापि, इसका अर्थ यह नहीं है, कि परमेश्‍वर ने अपनी सामर्थ्य को तब खो दिया जब बाइबल कहती है, कि वह केवल कुछ ही निश्चित कार्यों को नही कर सकता है । उदाहरण के लिए, इब्रानियों 6:18 कहता है, कि वह झूठ नहीं बोल सकता है। इसका अर्थ यह नहीं है, कि उसके पास झूठ बोलने की सामर्थ्य की कमी है, अपितु इसका अर्थ यह है, कि परमेश्‍वर ने अपनी नैतिक सिद्धता के अनुरूप बने रहने के लिए झूठ बोलना नहीं चुना है। इसी तरह से, उसके सर्व सामर्थी और बुराई से घृणा करने के पश्चात् भी, वह बुराई को अपने भले प्रयोजन के अनुसार घटित होने देता है। वह अपने प्रयोजनों को प्रगट करने के लिए कुछ बुरी घटनाओं को घटित होने देता है, जैसे कि जब अभी तक के समय की सबसे बुरी घटना घटित हुई थी – अर्थात् सिद्ध, पवित्र, निर्दोष परमेश्‍वर के मेम्ने की मानवजाति के छुटकारे के लिए हत्या कर दी गई थी।

देहधारी परमेश्‍वर होने के नाते, यीशु मसीह सर्वसामर्थी है। उसकी सामर्थ्य उन आश्चर्यकर्मों में प्रगट हुई जिन्हें उसे प्रगट किया था – उसके अँसख्य चंगाई के कार्यों में, पाँज हजार को भोजन खिलाने में (मरकुस 6:30-44), तूफान को शान्त करने में (मरकुस 4:37-41), और आखिरकार सामर्थ्य का अन्तिम प्रगटीकरण, लाजर और याईर की पुत्री को मृतकों में से जीवित करने में प्रगट हुआ (यूहन्ना 11:38-44, मरकुस 5:35-43), जो कि मृत्यु और जीवन के ऊपर उसके नियंत्रण का एक उदाहरण था। मृत्यु ही वह आखिरी कारण है, जिसके कारण यीशु आया था – कि इसका नाश कर दे (1 कुरिन्थियों 15:22, इब्रानियों 2:14) और पापियों को परमेश्‍वर के साथ सही सम्बन्ध में ले आए। प्रभु यीशु ने स्पष्टता से कहा है, कि उसके पास अपने जीवन को दे देने की सामर्थ्य है, और इसे फिर से जिला उठाने की सामर्थ्य थी, जो एक ऐसा सत्य था जिसे उसने मन्दिर के बारे में बात करते हुए रूपक के रूप में प्रस्तुत किया (यूहन्ना 2:19)। यदि आवश्यकता पड़ती तो उसके पास स्वयं को अपनी जाँच के समय बचाने के लिए स्वर्गदूतों की बारह पलटन को भी बुलाने की सामर्थ्य थी, (मत्ती 26:53), तथापि उसने स्वयं को अन्यों के स्थान पर मनुष्य के लिए बलिदान स्वरूप दे दिया (फिलिप्पियों 2:1-11)।

सबसे महान् रहस्य यह है, कि इस सामर्थ्य को उन विश्‍वासियों के द्वारा साझा किया जा सकता है, जो यीशु मसीह में हो परमेश्‍वर के साथ एक हो गए हैं। पौलुस कहता है, "इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं में घमण्ड करूँगा कि मसीह की सामर्थ्य मुझ पर छाया करती रहे" (2 कुरिन्थियों 12:9ब)। परमेश्‍वर की सामर्थ्य हम में तब सबसे अधिक महिमा पाती है, जब हम सबसे अधिक कमजोर होते हैं, क्योंकि "अब जो ऐसा सामर्थी है, कि हमारी विनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ्य के अनुसार जो हम में कार्य करती है" (इफिसियों 3:20)। यह परमेश्‍वर की ही सामर्थ्य है, जो हमें हमारे पाप के पश्चात् भी हमें अनुग्रह की अवस्था (2 तीमुथियुस 1:12), और अपनी सामर्थ्य के द्वारा हमें पाप में गिरने से बचाए रखती है (यहूदा 24)। उसकी सामर्थ्य स्वर्ग के सभी प्राणियों के द्वारा शाश्‍वतकाल से घोषित की जा रही है (प्रकाशितवाक्य 19:1)। ऐसा हो कि यही हमारी न समाप्त होने वाली प्रार्थना बन जाए!

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