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प्रश्न

क्या परमेश्‍वर हरेक को प्रेम करता या केवल मसीही विश्‍वासियों को?

उत्तर


एक अर्थ में परमेश्‍वर इस संसार के प्रत्येक व्यक्ति को प्रेम करता है (यूहन्ना 3:16; 1 यूहन्ना 2:2;) रोमियों 5:8)। यह प्रेम शर्त वाला नहीं है – यह परमेश्‍वर के स्वभाव में निहित है और इस तथ्य के ऊपर आधारित है कि वह प्रेम का परमेश्‍वर है (1 यूहन्ना 4:8, 16)। परमेश्‍वर का प्रेम हरेक के लिए ऐसे हो सकता है कि जैसे कि उसका “दया से भरा हुआ प्रेम” होता है, क्योंकि यह इस सच्चाई का परिणाम है कि परमेश्‍वर तुरन्त लोगों को उनके पापों के कारण दण्डित नहीं कर देता है (रोमियों 3:23; 6:23). “स्वर्गीय पिता...भले और बुरे दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी दोने पर मेंह बरसाता है” (मत्ती 5:45)। प्रत्येक के लिए परमेश्‍वर के प्रेम अर्थात् – उसके दया से भरे हुए प्रेम - का यह एक और उदाहरण है। उसकी परोपकारिता प्रत्येक व्यक्ति तक आती है, न कि केवल मसीही विश्‍वासियों तक।

इस संसार के प्रति परमेश्‍वर की दया से भरा हुआ प्रेम साथ ही इस बात में प्रकाशित होता है कि परमेश्‍वर प्रत्येक व्यक्ति को पश्चाताप का अवसर प्रदान करता है: “प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय दे नहीं करता...पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता है कि कोई नष्ट हो, वरन् यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले” (2 पतरस 3:9)। परमेश्‍वर का शर्तरहित प्रेम उसके उद्धार की ऊँची बुलाहट के साथ सम्बन्धित है और जिसे अक्सर अनुमति दी गई या सिद्ध इच्छा कह कर पुकारा जाता है – परमेश्‍वर की इच्छा का यह पहलू उसके गुणों को प्रगट करता है और यह परिभाषित करता है कि उसे कौन सी बात प्रसन्न करती है।

परन्तु फिर भी, प्रत्येक व्यक्ति के लिए परमेश्‍वर के प्रेम का अर्थ यह बिल्कुल भी नहीं है कि हर एक व्यक्ति उद्धार पा लेगा (देखें मत्ती 25:46)। परमेश्‍वर की इच्छा का अर्थ पाप को अन्देखा करना नहीं है, क्योंकि वह न्याय का परमेश्‍वर है (2 थिस्सलुनीकियों 1:6)। पाप सदैव के लिए दण्ड पाए बिना नहीं रह सकता है (रोमियों 3:25-26)। यदि परमेश्‍वर पाप को बस केवल अन्देखा करता रहे और निरन्तर

इसे सदैव के लिए सृष्टि में गड़बड़ी फैलाते रहने की अनुमति देता रहे, तब यह उसका प्रेम नहीं होगा। परमेश्‍वर की दयामयी प्रेम को अन्देखा करना, मसीह का इन्कार करना, या उद्धारकर्ता को अस्वीकार कर देना जिस ने हमें खरीदा है (2 पतरस 2:1) स्वयं को अनन्तकाल के लिए परमेश्‍वर के प्रेम के नहीं, अपितु क्रोध के अधीन लाना होगा (रोमियों 1:18)।

परमेश्‍वर का प्रेम जो पापियों को धर्मी ठहराता है हर एक लिए नहीं दिया गया है, अपितु केवल उनके लिए जिनका विश्‍वास यीशु मसीह में है (रोमियों 5:1)। परमेश्‍वर का प्रेम जो लोगों को उसकी ओर घनिष्ठता में ले आता है प्रत्येक व्यक्ति के लिए नहीं दिया गया है, अपितु केवल उन्हें ही दिया गया है जो परमेश्‍वर के पुत्र को प्रेम करते हैं (यूहन्ना 14:21)। इस प्रेम के बारे में ऐसा सोचा गया है कि यह मानो परमेश्‍वर का “वाचाई प्रेम” है, और यह शर्तसहित है, केवल उन्हें ही दिया गया है जो उद्धार के लिए अपने विश्‍वास को मसीह में रखते हैं (यूहन्ना 3:36)। वे जो यीशु मसीह में विश्‍वास करते हैं उन्हें शर्तरहित, सुरक्षित रूप से, शाश्वतकाल के लिए प्रेम किया जाता है।

क्या परमेश्‍वर हरेक को प्रेम करता है? हाँ, वह अपनी दया और कृपालुता को प्रत्येक को दिखाता है। क्या परमेश्‍वर अविश्‍वासियों की अपेक्षा मसीही विश्‍वासियों को ज्यादा प्रेम करता है? नहीं, अपने प्रेममयी दया के सम्बन्ध में बिल्कुल भी नहीं। क्या परमेश्‍वर विश्‍वासियों को प्रेम किए जाने के अपने तरीके से भिन्न होकर अविश्‍वासियों को प्रेम करता है? हाँ; क्योंकि विश्‍वासियों ने अपने विश्‍वास को परमेश्‍वर के पुत्र में रख दिया है, वे उद्धार पा चुके हैं। परमेश्‍वर का मसीही विश्‍वासियों के साथ एक विशेष तरह का सम्बन्ध है जिसमें केवल विश्‍वासी ने ही परमेश्‍वर के शाश्वतकाल के अनुग्रह पर आधारित हो कर क्षमा को प्राप्त किया है। परमेश्‍वर का शर्तरहित, दयामयी प्रेम प्रत्येक व्यक्ति को विश्‍वास तक लाते हुए, धन्यवाद के साथ शर्तसहित, वाचाई प्रेम को प्राप्त करते हुए यह उन लोगों को प्रदान किया जाता है जो यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण करते हैं।

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क्या परमेश्‍वर हरेक को प्रेम करता या केवल मसीही विश्‍वासियों को?
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