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प्रश्न

परमेश्वर बीमारी की अनुमति क्यों देता है?

उत्तर


सदैव से ही बीमारी या रोग निपटारा करने के लिए एक कठिन विषय रहा है। स्मरण रखने की कुंजी यह है कि कि परमेश्वर के मार्ग हमारे मार्गों से उच्च हैं (यशायाह 55:9)। जब हम किसी रोग, बीमारी या चोट से पीड़ित होते हैं, तो हम सामान्य रूप से पूरी तरह से अपने दु:ख पर ध्यान केंद्रित होते हैं। बीमारी की परीक्षा के बीच में, इस बात पर ध्यान केंद्रित करना बहुत ही कठिन हो जाता है कि परमेश्वर भले परिणाम के रूप में क्या ला सकता है। रोमियों 8:28 हमें स्मरण दिलाता है कि परमेश्‍वर किसी भी परिस्थिति में से भलाई को ला सकता है। बहुत से लोग बीमारी के समय को ऐसे समय के रूप में देखते हैं जब वे परमेश्वर के निकटता में आगे बढ़ते हैं, और उस पर अधिक विश्वास करना सीखते हैं, और/या वास्तव में यह सीखते हैं कि जीवन सच में कितना अधिक मूल्यवान है। यह परमेश्वर का दृष्टिकोण है क्योंकि वह प्रभुता सम्पन्न है और अन्तिम परिणाम को जानता है।

इसका अर्थ यह नहीं है कि बीमारी सदैव परमेश्वर की ओर से आती है या यह कि परमेश्वर सदैव हमें आत्मिक शिक्षा देने के लिए रोग से पीड़ित करता है। रोग, बीमारी और मौत इत्यादि पाप से विकृत संसार में सदैव हमारे साथ रहेंगे। हम पाप में गिरे हुए प्राणी हैं, हमारा भौतिक शरीर रोग और बीमारी से ग्रसित होने की प्रवृति रखता है। कुछ बीमारियाँ इस संसार में स्वाभाविक सांसारिक चक्र के चलने का परिणाम होती है। बीमारी एक शैतानिक आक्रमण का परिणाम भी हो सकती है। बाइबल में ऐसे कई उदाहरणों का वर्णन किया गया है जब शैतान और उसकी दुष्टात्माओं के कारण शारीरिक पीड़ा आई थी (मत्ती 17:14-18; लूका 13:10-16)। इसलिए, कुछ बीमारियाँ परमेश्वर की ओर से नहीं, अपितु शैतान की ओर से हैं। इन उदाहरणों में भी, परमेश्वर का नियंत्रण पाया जाता है। परमेश्वर कभी-कभी पाप और/या शैतान को शारीरिक पीड़ा देने का कारण बनाता है। यहाँ तक कि जब बीमारी सीधे परमेश्वर की ओर से नहीं होती है, तब भी वह अपनी सिद्ध इच्छा के अनुसार इसका उपयोग करता है।

यद्यपि, यह सत्य निर्विवाद है, परमेश्वर कभी-कभी जानबूझकर बीमारी को आने की अनुमति देता है, या यहाँ तक कि बीमारी का कारण बनता है ताकि वह अपने प्रभुता सम्पन्न उद्देश्यों को पूरा कर सके। जबकि बीमारी को सीधे इस सन्दर्भ के साथ सम्बोधित नहीं किया गया है, तौभी इब्रानियों 12:5-11 वर्णित करता है कि परमेश्वर हमें धर्म के प्रतिफल या “धार्मिकता की फसल” को उत्पन्न करने के लिए अनुशासित करता है (वचन 11)। बीमारी परमेश्वर के प्रेमपूर्ण अनुशासन का एक साधन हो सकती है। हमारे लिए यह समझना कठिन है कि परमेश्वर क्यों इस तरीके से काम करता है। परन्तु, परमेश्वर की संप्रभुता में विश्वास करते हुए, हमें परमेश्वर द्वारा अनुमति दिए जाने और/या उसके द्वारा ही बीमारी के लिए कारण बनने के विकल्प को छोड़कर और कुछ प्राप्त नहीं होता है।

पवित्रशास्त्र में इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण भजन संहिता 119 में पाया जाता है। वचन 67, 71 और 75 में विकसित होते हुए क्रम के ऊपर ध्यान केन्द्रित करें — “उससे पहले कि मैं दु:खित हुआ, मैं भटकता था; परन्तु अब मैं तेरे वचन को मानता हूँ... मुझे जो दु:ख हुआ वह मेरे लिये भला ही हुआ है, जिससे मैं तेरी विधियों को सीख सकूँ... हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं, और तू ने अपनी सच्‍चाई के अनुसार मुझे दु:ख दिया है।” भजन संहिता 119 का लेखक पीड़ा को परमेश्वर के दृष्टिकोण से देख रहा है। उसके लिए पीड़ा में होना अच्छा है। यह उसकी विश्वासयोग्यता थी जिसके कारण परमेश्वर ने उसे पीड़ित किया था। पीड़ा का परिणाम यह हुआ कि वह परमेश्वर की विधियों को सीख सका और उसके वचन का पालन कर सका।

एक बार फिर से, बीमारी और पीड़ा से निपटना कभी भी आसान नहीं होता है। एक बात तो सुनिश्चित है कि, बीमारी के कारण हमें परमेश्वर में अपने विश्वास को नहीं खोना चाहिए। परमेश्वर भला है, तब भी जब हम पीड़ित होते हैं। यहाँ तक कि अन्तिम दु:ख “मृत्यु” भी परमेश्वर की भलाई का ही कार्य है। यह कल्पना करना कठिन है कि बीमारी या दु:ख के परिणामस्वरूप स्वर्ग में जो कोई भी है, वह जो कुछ इस जीवन में से होकर गया है उसके प्रति पछतावा करता है।

एक अन्तिम टिप्पणी: जब लोग दुखित होते हैं, तो यह हमारा दायित्व है कि हम उनकी देखभाल करें, उनकी परवाह करें, उनके लिए प्रार्थना करें और उन्हें सांत्वना दें। जब कोई व्यक्ति पीड़ित होता है, तो सदैव इस बात पर जोर देना उचित नहीं है कि परमेश्वर इस दु:ख से भलाई को ही लेकर आएगा। हाँ, यही सच है। तथापि, दु:ख के बीच में, सदैव इस सच्चाई को साझा करने का सबसे अच्छा समय नहीं होता है। पीड़ित लोगों को हमारे प्रेम और प्रोत्साहन की आवश्यकता है, न कि बाइबल आधारित शुद्ध धर्मविज्ञान को स्मरण दिलाने की।

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