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प्रश्न

एक मसीही माता के बारे में बाइबल क्या कहती है?

उत्तर


एक माता की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है जिसे परमेश्वर बहुत सी स्त्रियों को देता चुनता है। एक मसीही माता को अपने बच्चों को प्रेम करने के लिए कहा गया है (तीतुस 2:4-5), ताकि वह प्रभु के नाम और उस उद्धारकर्ता के नाम के ऊपर किसी तरह का कोई कलंक न लाए जिसे वह अपने साथ लिए चलती है।

बच्चे यहोवा परमेश्वर की ओर दिए हुए उपहार हैं (भजन संहिता 127:3-5)। तीतुस 2:4 में, युनानी शब्द फिलोटेकिनोस का संदर्भ माताओं के द्वारा उनके बच्चों को प्रेम करने के लिए प्रगट हुआ है। यह शब्द एक विशेष तरह की "माता के प्रेम" को प्रस्तुत करता है। वह विचार जो इस शब्द के द्वारा निकल कर आता है वह अपने बच्चों की देखभाल, उनके पालन पोषण, उन्हें स्नेह से भर कर गले लगाने, उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने, और प्रेम के साथ उनमें से प्रत्येक के साथ मित्रता से भरा हुआ व्यवहार परमेश्वर के हाथों से प्राप्त एक विशेष उपहार के रूप में करने का है।

परमेश्वर के वचन में मसीही माताओं के लिए कई बातों का आदेश दिया गया है:

उपलब्धता: सुबह, दोपहर, और सांयकाल में (व्यवस्थाविवरण 6:6-7)

सम्मिलित होना: वार्तालाप, विचार-विमर्श करना, सोचना, और इक्ट्ठे जीवन की प्रक्रिया को यापन करना (इफिसियों 6:4)।

शिक्षा देना – पवित्र शास्त्र और बाइबल आधारित दृष्टिकोण का (भजन संहिता 78:5-6; व्यवस्थाविवरण 4:10; इफिसियों 6:4)।

प्रशिक्षण – एक बच्चे की उसके कौशल और उसकी योग्यताओं (नीति वचन 22:6) और आत्मिक वरदानों की खोज करने में सहायता करना (रोमियों 12:3-8 और 1 कुरिन्थियों 12)

अनुशासन – प्रभु के भय में चलने का शिक्षण देना, निरन्तर, प्रेम, दृढ़ता से सीमा रेखा को खींचते रहना (इफिसियों 6:4; इब्रानियों 12:5-11; नीतिवचन 13:24; 19:18; 22:15; 23:13-14; 29:15-17)

पालन-पोषण – निरन्तर मौखिक सहायता, असफल होने की स्वतंत्रता, स्वीकार किए जाने, स्नेह, बिना किसी शर्त के प्रेम के एक वातावरण का प्रबन्ध करना (तीतुस 2:4; 2 तीमुथियुस 1:7; इफिसियों 4:29-32; 5:1-2; गलातियों 5:22; 1 पतरस 3:8-9)।

खराई के साथ नमूने भरा जीवन यापन करना – जो कुछ आप कहते हैं उसी अनुसार जीवन यापन करना, एक ऐसा नमूने भरा जीवन यापन करना जिसमें एक बच्चा धर्मी जीवन के सार को "पकड़ने" के द्वारा सीख सके (व्यवस्थाविवरण 4:9, 15, 23; नीतिवचन 10:9; 11:3; भजन संहिता 37:18, 37)।

बाइबल ऐसा कभी नहीं कहती है कि प्रत्येक स्त्री को एक माता होना चाहिए। परन्तु, यह जरूर कहती है कि वह जिन्हें परमेश्वर माता होने की आशीष देता है, को अपने उत्तरदायित्व को गंभीरता से लेना चाहिए। माताओं का उनके बच्चों के जीवन में विशेष और महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मातृत्वपन एक घर का या अप्रिय कार्य नहीं है। जैसे एक माता एक बच्चे को गर्भधारण के समय संभालती है, और जैसे एक माता उसके दूध पिलाती है और उसके शैशवकाल में उसकी देखभाल करती है, ठीक उसी तरह से माताओं की उनके बच्चों के लिए जीवन पर्यन्त चलते रहने वाली भूमिका होती है, चाहे वे किशोर, युवा, व्यस्क, और यहाँ तक कि अपने बच्चों के साथ व्यस्क ही क्यों न हो। जबकि मातृत्वपन की भूमिका बदलती और विकसित होती रहती है, वह प्रेम, देखभाल, पालन-पोषण और प्रोत्साहन जिसे एक माता देती है, वह कभी भी रूकना नहीं चाहिए।

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