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प्रश्न

क्या एक मसीही विश्वासी में शौक होना चाहिए?

उत्तर


एक शौक वह बात होती है, जिसे हम अपने नियमित काम से बाहर सुख या विश्राम की प्राप्ति के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए, यह पर्वतारोहण, लकड़ी का कार्य, वाद्ययन्त्र बजाना, पढ़ना, खेल खेलना या असँख्य अन्य बातें हो सकती हैं। परमेश्वर जानता है कि हमें विभिन्न समयों पर विश्राम लेने और मनोरंजन प्राप्ति की आवश्यकता होती है, परन्तु हमें भक्तिपूर्ण और शुद्ध तरीके से मनोरंजन को पाने की आवश्यकता है, न कि सांसारिक और पाप से भरे हुए मनोरंजन को। तो क्या मसीहियों के लिए शौक रखना गलत है? ऐसा आवश्यक नहीं है। अधिकांश शौक तटस्थ होते हैं और न तो सही और न ही गलत होते हैं। कुँजी शौक में भाग लेने वाले व्यक्ति का दृष्टिकोण होता है।

पौलुस ने यह लिखा है कि, "मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो, और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ और चिताओ, और अपने अपने मन में अनुग्रह के साथ परमेश्‍वर के लिये भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ" (कुलुस्सियों 3:17)। उसने यह भी लिखा है कि, "इसलिये तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिये करो" (1 कुरिन्थियों 10:31)। हमारे शौक के लिए सच्चा बैरोमीटर यही होना चाहिए कि ये परमेश्वर की महिमा करते हैं या नहीं, हम उन्हें परमेश्वर की ओर से मिले वरदान के रूप में देखते हैं या नहीं, जिसके लिए हम धन्यवादी है और चाहे वे हमारा ध्यान अपनी ओर खींचते हों या नहीं। आज हमारे मनोरंजन का अधिकांश भाग, शरीर और आँखों की लालसा के पाप को पूरा करने में निहित है। हमें सावधान रहना होगा कि कहीं हमारे शौक पाप में निहित तो नहीं हैं।

शौक गलत हो सकते हैं, यदि ये हमारे पास परमेश्वर से बचने के लिए या गलत दृष्टिकोण के साथ पाए जाते हैं। हम खेलकूद में भाग ले सकते हैं और खेलकूद और व्यायाम से प्राप्त होने वाले आनन्द को ले सकते हैं। परन्तु यदि हमारा प्रतिस्पर्धी से भरा हुआ स्वभाव हमें हमारे द्वारा हारने या खराब रीति से खेलने के लिए अभिशाप देता है, यदि हमारे द्वारा प्राप्त अंकों के साथ धोखा किया जाता है, या यदि हम अपने विरोधियों को शत्रुओं के रूप में देखना आरम्भ कर देते हैं, तो यह गलत होगा और परमेश्वर की महिमा नहीं करेगा। खेल स्वयं में गलत नहीं हैं, परन्तु हमारे व्यवहार और उन तक हमारी पहुँच के कारण उनमें हमारी भागीदारी पापपूर्ण हो जाती है। परन्तु यदि हम परमेश्वर के प्रति धन्यवादी होने और उनके भाग लेने के दृष्टिकोण के साथ इन गतिविधियों का आनन्द लेते हैं, तो हमारी परमेश्वर के साथ सम्बन्ध में कोई बाधा नहीं आती है, तब खेल या शौक हमारे जीवन में एक सकारात्मक प्रभाव को ले आता है।

शौक के साथ प्रलोभन यह है कि इनका उपयोग जीवन से छिपने और फलस्वरूप परमेश्वर से छिपने के लिए उपयोग किया जाता है। वे हमारे समय को लूट सकते हैं, हमारे जीवन में मूर्तियाँ बन सकते हैं, और हमें प्रत्येक बात में परमेश्वर की महिमा करने से विचलित कर सकते हैं। मसीह में हमारे पास अद्भुत स्वतन्त्रता दी गई है, परन्तु पौलुस ने हमें सचेत किया है कि: “हे भाइयो, तुम स्वतन्त्र होने के लिये बुलाए गए हो; परन्तु ऐसा न हो कि यह स्वतन्त्रता शारीरिक कामों के लिये अवसर बने, वरन् प्रेम से एक दूसरे के दास बनो” (गलातियों 5:13)।

एक बार फिर से, अवश्यक नहीं है कि शौक गलत हो, परन्तु जब वे हमें उपयोग करने लग जाते हैं और हमारी आँखें मसीह से हटा देते हैं, तो वे निश्चित रूप से गलत हैं। यहाँ तक कि सबसे अधिक निर्दोष शौक जो हमें उपयोग करने लगता है, ऐसे रूकावटें हैं, जिन्हें हमें दूर रखना चाहिए, क्योंकि वे हमें हमारी दौड़ में धीमा कर देते हैं, जो कि मसीही जीवन में हमें दी गई है (इब्रानियों 12:1)। एक अच्छी जाँच के लिए प्रश्न यह है: यह शौक मेरे लिए कितना महत्वपूर्ण है? क्या प्रभु मेरे लिए पर्याप्त है? यदि शौक को मुझसे छीन लिया गया, तो क्या मैं तब भी मसीह में सन्तुष्ट रहूँगा? यदि, हाँ, तो मसीहियों में शौक हो सकते हैं, परन्तु हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वे कभी भी मसीह का स्थान न लें। यह प्रलोभन है, और हमें इससे बचने को सुनिश्चित करना चाहिए।

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