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प्रश्न

मसीह की सर्वोच्चता क्या है और इसके निहितार्थ क्या हैं?

उत्तर


मसीह की सर्वोच्चता या श्रेष्ठता एक ऐसा सिद्धान्त है, जो यीशु और उसके परमेश्वरीय-स्वभाव के अधिकार के चारों ओर घुमता है। सबसे सरल शब्दों में, मसीह की सर्वोच्चता की पुष्टि करना यह पुष्टि करना है कि यीशु परमेश्वर है।

सर्वोच्च या श्रेष्ठ की एक शब्दकोश परिभाषा "पदवी या अधिकार में सर्वोच्च होना" या "स्तर या गुणवत्ता में उच्चतम" होना है। संक्षेप में, कोई भी सर्वोत्तम नहीं है। किसी वस्तु का सर्वोच्च ही उसका परम होता है। यीशु सामर्थ्य, महिमा, अधिकार और महत्व में परम है। सभी के ऊपर यीशु की श्रेष्ठता का सिद्धान्त मुख्य रूप से इब्रानियों और कुलुस्सियों में विकसित किया गया है।

इब्रानियों की पुस्तक का एक मुख्य विषय पुराने नियम की पद्धति के सन्दर्भ में यीशु के कार्य को समझाता है। यीशु पुराना नियम यहूदी परम्पराओं और भूमिकाओं की पूर्ति था। इब्रानियों का एक और मुख्य विषय यह है कि यीशु कामों को करने के केवल एक नए तरीके का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। अपितु, वह सर्वोच्च है। वह कामों को करने के पुराने तरीके की वास्तविक पूर्ति है और इसलिए उन तरीकों से कहीं अधिक बढ़कर है। मूसा की व्यवस्था के अधीन मन्दिर पद्धति के बारे में, इब्रानियों का लेखक ऐसे लिखता है, "पर उन याजकों से बढ़कर सेवा यीशु को मिली, क्योंकि वह और भी उत्तम वाचा का मध्यस्थ ठहरा, जो और उत्तम प्रतिज्ञाओं के सहारे बाँधी गई है" (इब्रानियों 8:6)। संक्षेप में, यीशु पुराने नियम की व्यवस्था से बड़ा है। वह दोनों बातों अर्थात् कामों को सम्मिलित करता है, अर्थात् पुराने तरीके को सम्मिलित करता है और उन्हें हटा देता है। यह यीशु के पुराने नियम की भूमिकाओं और अनुष्ठानों की कई तुलनाओं में से स्पष्ट हो जाता है। उदाहरण के लिए, हमें बताया गया है कि "यह युगानुयुग रहता है, इस कारण उसका याजक पद अटल है। इसी लिये जो उसके द्वारा परमेश्‍वर के पास आते हैं, वह उनका पूरा पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उनके लिये विनती करने को सर्वदा जीवित है" (इब्रानियों 7:24-25)। इसलिए, यीशु ने पुराने नियम के याजकपन को समाहित किया है और वह इस पर सर्वोच्च है।

इब्रानियों का पत्र व्याख्या करता है कि मसीह केवल भूमिकाओं और प्रद्धतियों से ही अधिक सर्वोच्च नहीं है। इब्रानियों 1:3 में कहा गया है कि, "वह उसकी महिमा का प्रकाश और उसके तत्व की छाप है, और सब वस्तुओं को अपनी सामर्थ्य के वचन से संभालता है। वह पापों को धोकर ऊँचे स्थानों पर महामहिमन् के दाहिने जा बैठा।" इसी तरह, कुलुस्सियों 2:9 में कहा गया है कि, "उसमें ईश्‍वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है।" अनिवार्य रूप से, यीशु परमेश्वर है।

कुछ बाइबल में कुलुस्सियों 1:15–23 को "मसीह की सर्वोच्चता" के रूप में वर्णित किया गया है। इस सन्दर्भ में, पौलुस यह स्पष्ट करता है कि यीशु सभी वस्तुओं से कहीं अधिक बढ़कर है। मसीह को "अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप" और "सारी सृष्टि में पहिलौठा" कहा जाता है। (कुलुस्सियों 1:15)। शब्द पहिलौठा भ्रामक प्रतीत हो सकता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि मसीह की सृष्टि सबसे पहले की गई थी (जैसा कि यहोवा विट्नेस अर्थात् यहोवा के साक्षियों से सम्बन्धित विश्वासियों के सिद्धान्त में कहा गया है)। इसकी अपेक्षा, पहिलौठे शब्द का अर्थ अधिकार की पदवी होने से है। "पहिलौठा" होना एक सम्मानित पद को धारण करना था। पौलुस तुरन्त ही सृष्टि के रचना में यीशु की भूमिका की व्याख्या करता है: "क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्‍टि हुई, स्वर्ग की हों अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएँ, क्या प्रधानताएँ, क्या अधिकार, सारी वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं" (कुलुस्सियों 1:16)। इसका अर्थ यह है कि यीशु सृजा हुआ नहीं, अपितु स्वयं सृष्टिकर्ता है। वह परमेश्वर हैं।

पौलुस ने कहता है कि, "वही सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएँ उसी में स्थिर रहती हैं। वही देह, अर्थात् कलीसिया का सिर है; वही आदि है, और मरे हुओं में से जी उठनेवालों में पहिलौठा कि सब बातों में वही प्रधान ठहरे" (कुलुस्सियों 1:17–18)। पौलुस कई क्षेत्रों — जैसे कलीसिया पर, मृत्यु के ऊपर, और अन्त में "सब वस्तुओं पर" प्रकाश डालता है, जिन पर मसीह का अधिकार है। मसीह सभी वस्तुओं से पहले है और सभी वस्तुओं को स्वयं में सम्मिलित करता है ("उसी में सभी वस्तुएँ स्थिर रहती हैं")। इसलिए, मसीह सर्वोच्च है।

यह सिद्धान्त हमारे विचार और मसीह की आराधना के लिए आवश्यक है। मसीह की सर्वोच्चता इस बात की पुष्टि करती है कि यीशु पूरी तरह से परमेश्वर है। वह केवल अन्यों से ही बड़ा व्यक्ति नहीं है, अपितु सच्च में सारी सृष्टि के ऊपर है, जो कि केवल परमेश्वर ही हो सकता है। यह सच्चाई हमारे उद्धार के लिए आवश्यक है। परमेश्वर अनन्त है और इसलिए, उसके विरूद्ध हमारा पाप एक अनन्त अपराध है। इस अपराध का प्रायश्चित करने के लिए, बलिदान को अनन्त होना चाहिए। यीशु, परमेश्वर के रूप में, अनन्त है और इस प्रकार वह एक सक्षम बलिदान है।

वह यीशु सर्वोच्च है, हमें यह इस बात को कहने से अलग कर देता है कि वह केवल परमेश्वर के कई मार्गों में से एक है। वह केवल एक अच्छा नैतिक शिक्षक ही नहीं है, जिसे हम अनुसरण करने के लिए चुन सकते हैं; अपितु, वह परमेश्वर है, और वही सब कुछ है। यीशु की सर्वोच्चता यह भी स्पष्ट करती है कि हम स्वयं से अपने पापों का प्रायश्चित नहीं कर सकते। सच्चाई तो यह है, "क्योंकि यह अनहोना है कि बैलों और बकरों का लहू पापों को दूर करे" (इब्रानियों 10:4)। यीशु ने दोनों ही अर्थात् उस व्यवस्था को पूरा और उसके स्थान पर दूसरी को दे दिया। मुक्ति कर्मों पर आधारित नहीं है (इफिसियों 2:1-10 को देखें)। और, एक बार जब हम बच जाते हैं, तो यीशु की सर्वोच्चता हमें दिखाती है कि हम अपनी सामर्थ्य में उसके समान होने की अभिलाषा नहीं कर सकते। यीशु पूर्ण रूप से अन्य है, सब कुछ पर सर्वोच्च है। मसीहियों को यीशु के जैसा कहा जाता है, परन्तु ऐसा पवित्र आत्मा के कार्य के माध्यम से होता है (फिलिप्पियों 2:12–13; रोमियों 8)।

यीशु की सर्वोच्चता हमें सिखाती है कि वह शेष सभों के ऊपर मात्र एक आत्मिक प्राणी नहीं है। पौलुस हमें बताता है कि उसके माध्यम से दृश्य और अदृश्य, स्वर्ग में और पृथ्वी पर, अर्थात्, आत्मिक और भौतिक सभी वस्तुओं की सृष्टि की गई थी (कुलुस्सियों 1:16 को देखें)। इब्रानियों 1:4 स्वर्गदूतों से यीशु को श्रेष्ठ होना कहता है। यह सच्चाई स्वर्गदूत की पूजा अर्थात् आराधना किए जाने के प्रति किसी भी प्रवृत्ति को नकारती है। यीशु ने स्वर्गदूतों की सृष्टि की और वही उनके ऊपर हैं। हमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वह उनसे बड़ा है। इसलिए, हमें केवल यीशु की उपासना करनी चाहिए। इसी तरह, कि यीशु ने पृथ्वी की वस्तुओं की सृष्टि की जिसका अर्थ यह है कि सृष्टि हमारे द्वारा आराधना के योग्य नहीं है। यीशु भौतिक और आत्मिक दोनों क्षेत्रों में सर्वोच्च है, इस प्रकार दोनों को महत्व देते हुए भी उन पर उसका प्रभुत्व बना हुआ है।

जब हम मसीह की सर्वोच्चता को समझते हैं, तो हमारे पास उसके बारे में बहुत ही सटीक दृष्टिकोण होता है। हम उसके प्रेम की गहराई को पूरी तरह से समझते हैं; हम उसके प्रेम को प्राप्त करने और उसका उत्तर देने में अधिक सक्षम हो जाते हैं। धर्मशास्त्रियों का मानना है कि कुलुस्सियों के पत्र का एक भाग कुलुस्सियों के विश्वासियों में उठने वाली गलत शिक्षाओं का सामना करने के लिए लिखा गया था। इन गलत दिशा में ले जाती हुई मान्यताओं को समाप्त करने के लिए मसीह की सर्वोच्चता की पुष्टि करने के लिए पौलुस को ऐसा लिखना सही प्रतीत हुआ। उसने मसीह के वर्चस्व, उसके आधिपत्य और हमारे लिए उसकी पर्याप्तता की पुष्टि की। इब्रानियों ने पुराने नियम की वाचा और यीशु की नई वाचा के बीच में पाई जाने वाली कड़ी की व्याख्या की है। यह यीशु मसीह में अन्तिम पूर्ति की छाया के रूप में पुराने नियम की पद्धति को प्रकट करता है। मसीह की सर्वोच्चता उसके व्यक्तित्व, उसके कार्य, विश्वासियों और राज्य के रूप में हमारी स्थिति के बारे में एक सटीक दृष्टिकोण के प्रति ध्यान केन्द्रित करती है।

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मसीह की सर्वोच्चता क्या है और इसके निहितार्थ क्या हैं?
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